पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१२४

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१२३ अध्याय ६ परिचलन की लागत १. परिचलन की विशुद्ध लागत १) क्रय-विक्रय काल माल से द्रव्य रूप में और द्रव्य से माल रूप में पूंजी के रूप परिवर्तन साथ ही पूंजीपति के सौदे , क्रय-विक्रय की क्रियाएं भी होते हैं। रूपों के ये परिवर्तन जितने समय में घटित होते हैं, वह अात्मगत दृष्टि से, पूंजीपति के दृष्टिकोण से क्रय-विक्रय काल होता है। यह वह समयं होता है, जिसके दौरान वह वाज़ार में ग्राहक और विक्रेता के कार्य करता है। ठीक जैसे पूंजी का परिचलन काल उसके पुनरुत्पादन काल का एक आवश्यक खंड होता है, वैसे ही जितने समय में पूंजीपति क्रय-विक्रय करता है और वाज़ार छानता है, वह समय उस काल का आवश्यक खंड होता है, जिसमें वह पूंजीपति की, अर्थात साकार पूंजी की हैसियत से कार्य करता है। यह उसके व्यवसाय काल का एक हिस्सा है। [चूंकि हमने यह मान लिया है कि मालों का क्रय-विक्रय उनके मूल्यों पर ही होता है, इसलिए ये क्रियाएं किसी मूल्य का एक रूप से दूसरे रूप में, माल रूप से द्रव्य रूप में , अथवा द्रव्य रूप से माल रूप में परिवर्तन मान हैं- उनके अस्तित्व की अवस्था में एक परिवर्तन हैं। माल अपने मूल्य पर वेचे जायें, तो ग्राहक और विक्रेता के हाथ में मूल्य परिमाण अपरि- वर्तित रहते हैं। केवल मूल्य के अस्तित्व का रूप बदलता है। यदि माल अपने मूल्य पर न बेचे जायें, तो वदले हुए मूल्यों का योग अपरिवर्तित रहता है, एक तरफ़ जो जोड़ा जाता है, वह दूसरी तरफ़ घटा दिया जाता है। मा द्र और द्र मा के रूपान्तरण ग्राहकों और विक्रेताओं के बीच के लेन-देन हैं। सौदा करने के लिए उन्हें वक्त चाहिए, इसलिए और भी कि एक संघर्ष जारी रहता है, जिसमें प्रत्येक दूसरे से बाजी मारने की कोशिश करता है और यहां व्यवसायी लोग ही एक दूसरे के मुकाबले में होते हैं, और “जब यूनानी यूनानी के सामने आता है, तो रस्साकशी शुरू हो जाती है"। अस्तित्व की अवस्था बदलने में समय लगता है और श्रम शक्ति लगती है, किन्तु यह सब मूल्य निर्माण के लिए नहीं होता, वरन मूल्य को एक रूप से दूसरे में बदलने के लिए होता है। इस अवसर पर इस मूल्य का एक अतिरिक्त टुकड़ा हथिया लेने के परस्पर प्रयत्न से स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ता। दोनों ही पक्षों की कुटिल योजनाओं से बढ़ा यह श्रम किसी 1 'नेथिनियेल ती कृत सत्रहवीं शताब्दी के दुखांतक नाटक The Rival Queens, or the Death of Alexander the Great से लिये शब्दों का पदान्वय । - सं०