पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१२६

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परिचलन की लागत १२५ 11 . कराता है, मात्र ग्राहक और विक्रेता है ) अपनी कार्यवाही से. बहुत से उत्पादकों के लिए क्रय- विक्रय काल घटा सकता है। ऐसे प्रसंग में उसे एक मशीन माना जाना चाहिए, जो ऊर्जा का अपव्यय घटाती है, अथवा उत्पादन काल को मुक्त करने में सहायक होती है। विपय को सरल रूप देने के लिए (क्योंकि हम व्यापारी पर पूंजीपति की हैसियत से और व्यापारी पूंजी पर आगे चलकर विचार करेंगे) हम यह मान लेंगे कि यह क्रय-विक्रय अभिकर्ता ऐसा, आदमी है, जो अपना श्रम वेचता है। वह अपनी श्रम शक्ति और श्रम काल. मा द्र और द्र- मा क्रियाओं में व्यय करता है। और वह इसी तरह अपनी रोज़ी कमाता है, जैसे कोई दूसरा आदमी कताई करके या गोलियां बनाकर अपनी रोजी कमाता है। वह एक आवश्यक कार्य सम्पन्न करता है, क्योंकि स्वयं पुनरुत्पादन प्रक्रिया में अनुत्पादक कार्य सम्मिलित होते हैं। वह वैसे ही काम करता है, जैसे कोई और आदमी काम करता है, किन्तु तत्वतः उसका श्रम न तो मूल्य का सृजन करता है, और न उत्पाद का। वह स्वयं उत्पादन के faux frais [अनुत्पादक व्यय ] का अंश होता है। उसकी उपयोगिता एक अनुत्पादक कार्य को उत्पादक कार्य में या अनुत्पादक श्रम को उत्पादक श्रम में परिणत करना नहीं है। यदि ऐसा रूपान्तरण केवल कार्य के बदलने से सम्पन्न हो जाये, तो यह एक चमत्कार होगा। बल्कि उसकी उपयोगिता इसमें है कि इस अनुत्पादक कार्य में समाज की श्रम शक्ति और श्रम काल का अपेक्षाकृत अल्प भाग ही लगा रहता है। यही नहीं। हम मान लेंगे कि वह केवल उजरती श्रमिक है, बल्कि अच्छी मजदूरी पानेवालों में ही है, क्योंकि इससे कुछ अन्तर नहीं पड़ता। उसकी मजदूरी जो भी हो, उजरती श्रमिक की हैसियत से वह अपने समय के एक अंश में जो काम करता है, उसके लिए उसे कुछ भी नहीं मिलता। वह प्रतिदिन आठ कार्य घण्टे के उत्पाद का मूल्य पा सकता है, फिर भी वह कार्य दस घण्टे ही करता है। किन्तु वेशी श्रम के दो घण्टों में वह जो कुछ करता है, उससे वैसे ही किसी मूल्य का निर्माण नहीं होता, जैसे आवश्यक श्रम के उसके आठ घण्टों के काम से, यद्यपि आठ घण्टों के काम के द्वारा सामाजिक उत्पाद का एक हिस्सा उसे अंतरित हो जाता है। पहली बात , सामाजिक दृष्टिकोण से इस पर विचार करें, तो श्रम शक्ति अव भी पहले की तरह दस घण्टे केवल परिचलन कार्य में प्रयुक्त होती है। वह किसी और चीज़ के लिए , उत्पादक श्रम के , . . 11" यद्यपि व्यापार की लागत आवश्यक होती है, फिर भी उसे दुःसह परिव्यय ही समझना चाहिए। (Quesnay, Analyse du Tableau Economique, in Daire, Physiocra- tes, Part I, Paris, 1846, p. 71.) केने के अनुसार व्यापारियों की आपसी होड़ जो "मुनाफ़ा" पैदा करती है, क्योंकि वह उन्हें " कुछ कम पुरस्कार या फ़ायदे से सन्तोष' करने के लिए बाध्य करती है, वह "सही अर्थों में प्रत्यक्षतः विक्रेता के लिए तथा ग्राहक उपभोक्ता के लिए हानि निवारण (privation de perte) के अलावा और कुछ नहीं है। लेकिन वाणिज्य की लागत में हानि का निवारण अगर उसे केवल विनिमय के रूप में- परिवहन की लागत सहित या उसके विना- देखा जाये, तो वह कोई विशुद्ध उत्पाद या वाणिज्य द्वारा धन की वृद्धि नहीं है" (पृष्ठ १४५ और १४६)। “वाणिज्य की लागत हमेशा वे लोग चुकाते हैं, जो उत्पाद वेचते हैं और- अगर मध्यवर्ती खर्च न हों, तो-जो उनके लिए ग्राहकों द्वारा दी पूरी कीमतों का उपभोग करेंगे" (पृष्ठ १६३ )। मालिक और उत्पादक "salariants" (भृतिदाता ) हैं, व्यापारी "salariés" (भृतिपादाता) हैं। (P. 164, Quesnay, Dialogues sur le Commerce et sur les Travaux des Artisans. In Daire, Physiocrales, Part I, Paris, 1846.)