पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१२९

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१२८ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ , प्रक्रिया से निकाल लिया जाता है और परिचलन लागत में कुल प्राप्ति से कटौती ( जिसमें स्वयं वह श्रम शक्ति भी शामिल है, जो इसी कार्य के लिए व्यय की जाती है) में प्रा जाता है। लेकिन एक ओर लेखाकरण की प्रासंगिक लागत अथवा श्रम काल के अनुत्पादक व्यय , और दूसरी ओर क्रय-विक्रय काल मात्र की लागत में कुछ फ़र्क है। अंतोक्त उत्पादन प्रक्रिया के निश्चित सामाजिक रूप से , इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि वह मालों के उत्पादन की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का नियामक और अधिकल्पित संश्लेपण होने के कारण लेखाकरण उतना ही अधिक आवश्यक होता जाता है, जितना यह प्रक्रिया सामाजिक पैमाना ग्रहण करती जाती है और अपना विशुद्ध वैयक्तिक स्वरूप गंवाती जाती है। इसलिए वह कृषक अर्थतंत्र और दस्तकारी के विखरे हुए उत्पादन की अपेक्षा पूंजीवादी उत्पादन में और पूंजीवादी उत्पादन की अपेक्षा सामाजिक उत्पादन में और भी आवश्यक है। पर जैसे-जैसे उत्पादन का केन्द्रीकरण होता है और लेखाकरण कार्य सामाजिक होता जाता है, वैसे-वैसे लेखाकरण की लागत भी कम होती जाती है। यहां हमारा सिर्फ़ परिचलन लागत के सामान्य स्वरूप से ही सरोकार है, जो केवल रूपों के परिवर्तन से उत्पन्न होती है। यहां उसके सभी रूपों पर विस्तार से विचार करना अनावश्यक है। किन्तु ऐसे रूप , जो मूल्य रूप के विशुद्ध परिवर्तनों के क्षेत्र से सम्बद्ध हैं और इसलिए जो उत्पादन प्रक्रिया के विशिष्ट सामाजिक रूप से उत्पन्न होते हैं, जो वैयक्तिक माल उत्पादक के मामले में केवल अस्थायी, कठिनाई से बोधगम्य तत्व होते हैं, और उसके उत्पादक कार्यों के साथ-साथ चलते हैं या उनके साथ. अंतर्ग्रथित हो जाते हैं, - ये परिचलन की भारी लागतों की तरह क्योंकर दिखाई दे सकते हैं, यह सब उस समय लिये गये और चुकाये गये धन से ही देखा जा सकता है, जब ये क्रियाएं स्वतंत्र और बैंकों, आदि अथवा पथक व्यव में खजांचियों के अनन्य कार्य के रूप में संकेंद्रित हो चुकी होती हैं। पर यह वात ध्यान में जमाकर रखनी चाहिए कि परिचलन की इस लागत का स्वरूप उसकी वाह्याकृति के परिवर्तन से बदल नहीं - जाता। ३) द्रव्य किसी उत्पाद का निर्माण माल के रूप में हो या न हो, वह सदा धन का एक भौतिक वैयक्तिक अथवा उत्पादक उपभोग के लिए उद्दिष्ट एक उपयोग मूल्य होता है। माल की हैसियत से उसका मूल्य अधिकल्पित रूप में उसकी कीमत में प्रकट होता है, जो उसके वास्तविक उपयोग रूप में ज़रा भी परिवर्तन नहीं करती। किन्तु यह तथ्य कि सोना और चांदी जैसे कुछ माल द्रव्य का काम करते हैं और इस हैसियत से वे अनन्यतः परिचलन प्रक्रिया में ही रहते हैं (अपसंचय, आरक्षित निधि , आदि के रूप में भी वे परिचलन क्षेत्र में ही रहते हैं, यद्यपि अंतर्हित रूप में), उत्पादन प्रक्रिया के, मालों की उत्पादन प्रक्रिया के एक विशेष सामाजिक रूप का विशुद्ध उत्पाद है। पूंजीवादी उत्पादन में चूंकि उत्पाद मालों का सामान्य रूप धरते हैं और उत्पादों के विपुल वहुलांश का निर्माण माल रूप में होता है और इसलिए उन्हें द्रव्य रूप ग्रहण करना होता है और चूंकि मालों का बहुलांशं , सामाजिक संपदा का माल रूप में कार्यशील भाग निरन्तर बढ़ता जाता है, इसलिए परिचलन साधनों, भुगतान के माध्यम ,