पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१३०

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परिचलन की लागत १२६ . प्रारक्षित निधि , आदि के रूप में कार्यशील सोने-चांदी की मात्रा भी इसी प्रकार बढ़ती जाती है। द्रव्य का कार्य करनेवाले ये माल न तो वैयक्तिक और न उत्पादक उपभोग में प्रवेश करते हैं। वे ऐसे रूप में स्थिर सामाजिक श्रम व्यक्त करते हैं, जिसमें वह केवल परिचलन यंत्र का काम करता है। इस वात के अलावा कि सामाजिक संपदा के एक भाग के लिए यह अनुत्पादक रूप धारण करना नियत हो गया है, द्रव्य की घिसाई उसका निरन्तर प्रतिस्थापित अथवा उत्पाद के रूप में और अधिक सामाजिक श्रम के और अधिक सोने-चांदी में परिवर्तित किया जाना आवश्यक बना देती है। पूंजीवादी दृष्टि से विकसित राष्ट्रों में ऐसी प्रतिस्थापन लागत काफ़ी बड़ी है, क्योंकि सामान्यत: संपदा का वह भाग, जो द्रव्य रूप में बंध जाता है, बहुत विशाल होता है। द्रव्य माल की हैसियत से समाज के लिए सोने-चांदी का अर्थ है परिचलन लागत , जो एकमात्र उत्पादन के सामाजिक रूप से उत्पन्न होती है। यह सामान्य माल उत्पादन का faux frais [ अनुत्पादक व्यय ] है, और इस उत्पादन के विकास के साथ , खास तौर से पूंजीवादी उत्पादन के विकास के साथ उसमें वृद्धि होती जाती है। वह सामाजिक संपदा का ऐसा भाग व्यक्त करती है, जिसे परिचलन प्रक्रिया के लिए बलि करना होता है। 13 २. भंडारण लागत . अधिकल्पित रूप में लेने पर मूल्य के रूप परिवर्तन मान से परिचलन में पैदा होनेवाली परिचलन लागत मालों के मूल्य में शामिल नहीं होती। जहां तक पूंजीपति का सम्बन्ध है, पूंजी के ऐसी लागत के रूप में ख़र्च किये गये भाग उत्पादक ढंग व्यय की गई पूंजी से कटौती मात्र होते हैं। परिचलन की जिस लागत पर हम अव विचार करेंगे , उसका स्वरूप दूसरा है । वह उत्पादन की ऐसी प्रक्रियाओं से उत्पन्न हो सकती है, जो परिचलन में जारी रहती हैं, इसलिए जिनका उत्पादक स्वरूप परिचलन रूप द्वारा आच्छादित मान रहता है। दूसरी ओर, समाज के दृष्टिकोण से वह मात्र लागत , सजीव अथवा मूर्त श्रम का अनुत्पादक व्यय हो सकती है, किन्तु इसी कारण वैयक्तिक पूंजीपति के लिए वह मूल्य की उत्पादक हो सकती है, उसके मालों के विक्रय मूल्य में वृद्धि बन सकती है। यह वात इस तथ्य के फलस्वरूप पहले ही प्रकट हो जाती है कि यह लागत उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग होती है, और जहां-तहां एक ही उत्पादन क्षेत्र में विभिन्न वैयक्तिक पूंजियों के लिए भी अलग-अलग होती है। मालों की कीमत में जोड़े जाने पर वह उस राशि के अनुपात में बंट जाती है, जिसे प्रत्येक वैयक्तिक पूंजीपति वहन करेगा। किन्तु वह सभी श्रम, जो मूल्य जोड़ देता है, वेशी मूल्य भी जोड़ सकता है और पूंजीवादी उत्पादन में वह सदैव वेशी मूल्य जोड़ेगा, क्योंकि श्रम निर्मित मूल्य स्वयं उस श्रम के परिमाण पर निर्भर होता है , जव कि उस श्रम द्वारा सृजित वेशी मूल्य उसके लिए पूंजीपति जहां तक पैसा देता है, उस पर निर्भर करता है। फलतः जो लागत किसी माल 2 13" किसी भी देश में जो मुद्रा परिचलन में होती है, वह उस देश की पूंजी का ऐसा भाग होती है, जिसे उत्पादक उद्देश्यों में पूर्णतः हटा लिया जाता है, जिससे कि शेष पूंजी की उत्पादिता सुगम हो या वढ़े। इसलिए संपदा की एक मात्रा सोने को परिचलन का माध्यम बनाने के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना कि अन्य किसी भी उत्पादन को सुगम बनाने के लिए किसी मशीन का बनाया जाना।" (Economist, खंड ५, पृष्ठ ५२०।) 9-1150