पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिचलन की लागत १३१ सबसे बचाने के लिए अंशतः श्रम उपकरणों में-भौतिक रूप में - और अंशतः श्रम शक्ति में अतिरिक्त पूंजी लगाना जरूरी होता है। 14 इस प्रकार पूंजी का अपने माल पूंजी के रूप में और इसलिए माल पूर्ति के रूप में अस्तित्व ऐसी लागत को जन्म देता है, जिसे परिचलन लागत की कोटि में रखना होगा, क्योंकि वह उत्पादन क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं पाती है। यह लागत परिच्छेद १ में उल्लिखित परिचलन लागत से इस बात में भिन्न है कि वह एक हदं तक मालों के मूल्य में शामिल होती है, अर्थात वह मालों की क़ीमत में वृद्धि करती है। जो भी हो, माल पूर्ति को सुरक्षित रखने और भंडारित करने के लिए आवश्यक पूंजी और श्रम शक्ति उत्पादन प्रक्रिया से निकाल ली जाती हैं। दूसरी ओर, इस तरह प्रयुक्त पूंजियों को, जिनमें पूंजी के संघटक अंश के रूप में श्रम शक्ति शामिल है, सामाजिक उत्पाद में से एक भाग देकर प्रतिस्थापित करना होता है। इसलिए उनका व्यय श्रम की उत्पादक शक्ति पर ह्रासकारी प्रभाव डालता है, फलतः कोई विशेप उपयोगी परिणाम प्राप्त करने के लिए पूंजी और श्रम की और बड़ी राशि दरकार होती है। ये सब अनुत्पादक लागत हैं। चूंकि माल पूर्ति के निर्माण से आवश्यक. वनी परिचलन लागत केवल विद्यमान मूल्यों को माल रूप से द्रव्य रूप में बदलने के लिए ज़रूरी समय के कारण ही और इसलिए उत्पादन प्रक्रिया के किसी विशेष सामाजिक रूप के कारण ही होती है (अर्थात केवल इस तथ्य के कारण होती है कि उत्पाद माल के रूप में सामने लाया जाता है और इसलिए उसे द्रव्य रूप में रूपांतरण से गुजरना होता है), इसलिए इस लागत. का स्वरूप परिच्छेद १ में उल्लिखित परिचलन लागत के स्वरूप से पूरी तरह से मेल खाता है। दूसरी ओर मालों का मूल्य यहां केवल इसलिए सुरक्षित रहता या बढ़ता है कि उपयोग मूल्य , स्वयं उत्पाद सुनिश्चित भौतिक परिस्थि- तियों में रखा जाता है, जिनके लिए पूंजी व्यय करना होता है और उस पर ऐसी क्रियाएं की जाती हैं, जिससे अतिरिक्त श्रम उपयोग मूल्यों पर प्रभाव डालता है। किन्तु मालों के मूल्यों का अभिकलन , इस प्रक्रिया के साथ-साथ चलनेवाला लेखाकर्म , क्रय-विक्रय के सौदें उपयोग मूल्य को प्रभावित नहीं करते , जिसमें माल मूल्य विद्यमान होता है। इन सब का केवल माल मूल्यं के रूप से सरोकार होता है । यद्यपि प्रस्तुत प्रसंग में* पूर्ति निर्माण की लागतं (जो यहां अनैच्छिक रूप से किया गया है ) केवल रूप परिवर्तन में विलम्व से और इसकी आवश्यकता से उत्पन्न होती है, फिर भी यह लागत परिच्छेद १ में उल्लिखित लागत से इस बात में भिन्न है कि उसका उद्देश्य मूल्य का रूप परिवर्तन नहीं है, वरन उत्पाद की हैसियत से माल में विद्यमान 1.1 . १८४१ में कॉर्बेट ने हिसाव लगाया था कि नौ महीने की अवधि के लिए गेहूं को गोदाम में रखने की लागत इस प्रकार आती है : मात्र हानि १/२ प्रतिशत , गेहूं की कीमत पर व्याज ३ प्रतिशत , गोदाम का भाड़ा २ प्रतिशत , गेहूं को छानने और ढोने पर १ प्रतिशत , सुपुर्दगी पर १/२ प्रतिशत ; ७ प्रतिशत अथवा ५० शिलिंग प्रति क्वार्टर की कीमत पर ३ शिलिंग & TRT I (Th. Corbet, An Inquiry into the Causes and Modes of the Wealth of individuals etc., London, 1841.) रेलवे आयोग के सामने लिवरपूल के व्यापारियों के बयान के अनुसार १८६५ में गोदाम में ग़ल्ला रखने की (ख़ालिस ) लागत प्रति मास प्रति क्वार्टर लगभग २ पेंस, अथवा प्रति टन ६ या १० पेंस , आई थी (Royal Commission on Railways, 1867. Evidence, p. 19, No. 331) ' अर्थात पादटिप्पणी १४ में दिया कॉर्बेट का हिसाब । - सं०