पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१३६

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परिचलन की लागत १३५ पर अपेक्षाकृत अल्प भागों में अपनी पूर्ति का नवीकरण कर सके। किन्तु उस हालत में लिवरपूल के व्यापारियों के हाथ में कपास माल पूर्ति की हैसियत से उतने ही बड़े परिमाण में पड़ी होगी। इसलिए यह पूर्ति का रूप परिवर्तन मात्र है, और लैलोर , अादि ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया है। और यदि सामाजिक पूंजी पर विचार किया जाये , तो दोनों ही मामलों में उत्पाद का वही परिमाण पूर्ति रूप में विद्यमान होता है। किसी एक देश को, मसलन साल भर के लिए जितना परिमाण चाहिए , वह परिवहन की उन्नति के साथ घटता जाता है। यदि अमरीका और इंगलैण्ड के बीच बादवानी जहाज़ और स्टीमर बड़ी संख्या में चलने लगें, तो कपास की पूर्ति के नवीकरण के लिए इंगलैण्ड को ज्यादा अवसर मिलेगा, जब कि उसके गोदामों में जमा रखी जानेवाली कपास का ग्रीसत परिमाण घट जायेगा। विश्व बाज़ार के विकास से और फलतः एक ही तिजारती माल की पूर्ति के स्रोतों के कई गुना बढ़ जाने से भी यही परिणाम उत्पन्न होता है। सामान की विभिन्न देशों से थोड़ी-थोड़ी करके और विभिन्न अन्तरालों पर पूर्ति हो जाती है। २) वास्तविक माल पूर्ति . . हम पहले ही देख चुके हैं कि पूंजीवादी उत्पादन में उत्पाद माल का सामान्य रूप धारण करता है, और ऐसा जितना ही ज्यादा होता है, उतना ही उत्पादन प्राकार और विस्तार में बढ़ता है। फलतः यदि उत्पादन का परिमाण उतना ही वना रहे, तो भी उत्पादन की पूर्ववर्ती पद्धतियों की अथवा पूंजीवादी उत्पादन पद्धति की अल्पविकसित मंजिल की तुलना में उत्पाद का कहीं बड़ा भाग माल रूप में विद्यमान रहता है। और प्रत्येक माल - अतः प्रत्येक माल पूंजी भी, जो असल में माल ही होती है, पर पूंजी मूल्य के अस्तित्व रूप का काम देनेवाले माल - माल पूर्ति का एक तत्व होती है, बशर्ते कि वह अपने उत्पादन क्षेत्र से निकलकर तुरंत उत्पादक अथवा वैयक्तिक उपभोग में दाखिल न हो जाये., अर्थात इस बीच वाज़ार में न पड़ी रहे। अतः यदि उत्पादन का परिमाण उतना ही बना रहता है., तो माल पूर्ति (अर्थात उत्पाद के माल रूप का यह वियोजन और स्थिरीकरण) पूंजीवादी उत्पादन के साथ- साथ स्वतः बढ़ती जाती है। ऊपर हम देख चुके हैं कि यह केवल पूर्ति का रूप परिवर्तन ही है ; दूसरे शब्दों में एक ओर मालों के रूप में पूर्ति बढ़ती है, क्योंकि दूसरी ओर उत्पादन अथवा उपभोग के लिए प्रत्यक्षतः उद्दिष्ट रूप. में पूर्ति घटती है। यह केवल पूर्ति का परिवर्तित सामाजिक रूप है। यदि इसके साथ कुल सामाजिक उत्पाद की तुलना में माल पूर्ति का सापेक्ष परिमाण ही नहीं, वरन उसका निरपेक्ष परिमाण भी बढ़ता है, तो इसलिए कि पूंजीवादी उत्पादन के बढ़ने के साथ कुल उत्पाद की राशि भी बढ़ती है। पूंजीवादी उत्पादन के विकास के साथ-साथ उत्पादन का पैमाना उत्पाद की प्रत्यक्ष मांग ते कम और वैयक्तिक पूंजीपति के हाथों में उपलभ्य पूंजी की राशि से, उसकी पूंजी में निहित स्वप्रसार की प्रवृत्ति से और उत्पादन प्रक्रिया के प्रसार और उसे लगातार चालू रखने की अावश्यकता से अधिकाधिक निर्धारित होता जाता है। इस प्रकार उत्पादन की प्रत्येक शाखा विशेष में बाजार में माल रूप में उपलभ्य , अर्थात ग्राहकों की खोज में , उत्पादों की राशि में अनिवार्य वृद्धि होती है। पूंजी की न्यूनाधिक अवधि के लिए माल पूंजी के रूप में नियत की गयी राशि भी बढ़ती है। इसलिए माल पूर्ति भी बढ़ती है। -