पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ 1 1 . अंततोगत्वा समाज के सदस्यों का बहुसंख्यक भाग उजरती मजदूरों में, रोज़ कुनां खोदकर पानी पीनेवाले लोगों में बदल जाता है, जिन्हें मजदूरी हपतावार मिलती है, पर जिसे खर्च वे रोजाना करते हैं, इसलिए जिनको अपनी रोटी-रोजी के साधन पूर्ति के रूप में सुलभ होने चाहिए। यद्यपि इस पूर्ति के अलग-अलग तत्वों का निरन्तर प्रवाह बना रह सकता है, किन्तु उनका एक भाग हमेशा गतिरुद्ध होता ही है, जिससे समूचे तौर पर पूर्ति अस्थिरता की अवस्था में बनी रहती है। इन सारी विशेषताओं का उद्गम उत्पादन के रूप में और रूप के प्रासंगिक परिवर्तन में है, जिसमें होकर परिचलन प्रक्रिया के अन्तर्गत उत्पाद को अवश्य गुजरना होता है। उत्पादों की पूर्ति का सामाजिक रूप जो भी हो, उसके परिरक्षण के लिए इमारनों, बरतनों, आदि के लिए, जो उत्पाद के भंडारण के साधन हैं, परिव्यय चाहिए; उत्पादन और श्रम के उन साधनों के लिए भी पूंजी परिव्यय चाहिए, जिन्हें उत्पाद के स्वरूप के अनुसार हानिकर प्रभावों की रोकथाम के लिए न्यूनाधिक मात्रा में खर्च करना होता है। सामाजिक रूप से पूर्ति जितना ही संकेन्द्रित होती है, उतना ही उसकी लागत अपेक्षाकृत कम होती है। यह परिव्यय हमेशा मूर्त अथवा सजीव रूप में सामाजिक श्रम का एक अंश होता है - अतः उत्पादन के पूंजी- वादी रूप में यह पूंजी का परिव्यय होता है। यह परिव्यय स्वयं उत्पाद के निर्माण में शामिल नहीं होता और इस प्रकार वह उत्पाद से कटौती होता है। सामाजिक धन का यह अनुत्पादक व्यय आवश्यक है। यह परिव्यय सामाजिक उत्पाद के परिरक्षण की लागत होता है, चाहे माल पूर्ति के तत्व की हैसियत से उसका अस्तित्व केवल उत्पादन के सामाजिक रूप के कारण, अतः माल रूप और उसके अनिवार्य रूप परिवर्तन के कारण हो अथवा चाहे हम माल पूर्ति को उत्पाद की पूर्ति का एक विशेष रूप भर मान लें, जो सभी समाजों के लिए सामान्य है, यद्यपि माल पूर्ति के रूप में नहीं, क्योंकि उत्पाद पूर्ति का यह रूप परिचलन प्रक्रिया में आता है। अब यह पूछा जा सकता है कि यह लागत मालों के मूल्यों को कहां तक बढ़ाती है। अगर पूंजीपति श्रम शक्ति और उत्पादन साधनों के रूप में पेशगी दी अपनी पूंजी को उत्पाद में, विक्री के लिए तैयार माल की निश्चित मात्रा में बदल लेता है, और ये माल गोदाम में अनविके पड़े रहते हैं, तो हमारे सामने केवल इस अवधि में उसके पूंजी मूल्य की स्वप्रसार प्रक्रिया के अवरुद्ध रहने का मामला ही नहीं होगा। इस पूर्ति को इमारतों में परिरक्षित रखने की, अतिरिक्त श्रम की लागत, वगैरह का मतलव निश्चित घाटा होगा। आखिर उसे जो ग्राहक मिले , उससे यदि वह कहे : “ मैं छः महीने अपना माल वेच नहीं पाया, और इस बीच उसे बनाये रखने के लिए मेरी इतनी-इतनी पूंजी वेकार ही नहीं पड़ी रही, वल्कि इतना-इतना खर्च भी मुझे ऊपर से उठाना पड़ा," तो ग्राहक हंसकर कहेगा, "Tant pis pour vous! *, आपके पड़ोस में ही दूसरा दूकानदार है, जिसका माल अभी परसों ही तैयार हुआ है। आपकी चीजें दुकान में रखे-रखे पुरानी पड़ गई हैं और समय के प्रभाव से वे कमोवेश खराव भी हो गई हैं। इसलिए आपको अपने प्रतिस्पर्धी के मुकावले सस्ता वेचना पड़ेगा।" माल जिन परिस्थितियों में रहता है, उन पर इसका ज़रा भी प्रभाव नहीं पड़ता कि उसका निर्माता वास्तविक निर्माता है अथवा पूंजीवादी निर्माता और इसलिए दरअसल .. 1 . 'आपके लिए ही बुरा है! -सं०