पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१३९

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१३८ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ . . उसका परिमाण औसत बिक्री या औसत मांग की अपेक्षा बड़ा होना चाहिए , अन्यथा इन प्रासतों के उपर जो प्राधिक्य होगा, उसकी तुष्टि न की जा सकेगी। दूसरी ओर पूर्ति का निरन्तर नवीकरण होते रहना चाहिए, क्योंकि उससे निरन्तर माल निकाला जा रहा है। अन्ततोगत्वा यह नवीकरण और कहीं से नहीं, उत्पादन से ही मालों की पूर्ति से सम्पन्न किया जायेगा। यह महत्वहीन है कि यह नवीकरण विदेश से पूरा होता है या नहीं। यह नवीकरण मालों के पुनरुत्पादन के लिए आवश्यक कालावधियों पर निर्भर होता है। माल पूर्ति इस सारे समय कायम रहनी चाहिए। इस तथ्य से कि माल पूर्ति मूल उत्पादक के हाथ में नहीं रहती , वरन विभिन्न अागारों से होकर थोक व्यापारी से खुदरा व्यापारी तक गुज़रती है, उसकी वाह्याकृति ही बदलती है, प्रकृति नहीं। समाज के दृष्टिकोण से जब तक माल उत्पादक अथवा वैयक्तिक उपभोग में प्रवेश नहीं करते, तब तक दोनों ही स्थितियों में पूंजी का एक भाग माल पूर्ति का रूप लिये रहता है। उत्पादक अपने पास अपनी औसत मांग के अनुरूप भंडार रखने का प्रयत्न करता है, जिससे उसे सीधे उत्पादन पर निर्भर न रहना पड़े और नियमित ग्राहक समुदाय सुनिश्चित रहे। उत्पादन अवधियों के अनुरूप क्रय अवधियां बना ली जाती हैं, और माल तव तक न्यूनाधिक समय के लिए पूर्ति का काम करते हैं कि जब तक उनका उसी तरह के नये माल द्वारा प्रतिस्थापन न हो जाये। परिचलन प्रक्रिया का, इसलिए पुनरुत्पादन प्रक्रिया का भी, जिसमें परिचलन प्रक्रिया शामिल है, स्थायित्व और सातत्य इस प्रकार की पूर्ति के निर्माण द्वारा ही सुरक्षित रहते हैं। यह याद रखना चाहिए कि सम्भव है कि मा के उत्पादक के लिए मा'-द्र' सम्पन्न हो चुका हो, भले ही मा अव भी वाज़ार में हो। यदि उत्पादक अपने ही माल को तब तक जमा रखे कि वह अन्तिम उपभोक्ता के हाथ विक न जाये , तो उसे दो पूंजियों को गतिशील करना होगा - एक पूंजी माल उत्पादक की हैसियत से और दूसरी व्यापारी की हैसियत से। जहां तक स्वयं माल का सम्बन्ध है, हम चाहे उसे अलग माल मानें, चाहे सामाजिक पूंजी का संघटक अंश , इससे कुछ अाता-जाता नहीं कि पूर्ति निर्माण की लागत का वहन उसका उत्पादक करेगा या अ से लेकर ह तक व्यापारियों की पूरी शृंखला। चूंकि माल पूर्ति उत्पाद के माल रूप के अलावा और कुछ नहीं है, जो सामाजिक उत्पादन के किसी ख़ास स्तर पर या तो उत्पादक पूर्ति (अंतर्हित उत्पादन निधि) की हैसियत से , या उपभोग निधि ( उपभोग साधनों प्रारक्षित निधि) की हैसियत से- यदि वह पहले माल पूर्ति की तरह विद्यमान न रही हो, तो-विद्यमान होती है, इसके परिरक्षण पर होने- वाला व्यय अर्थात पूर्ति निर्माण की लागत - यानी इस प्रयोजन पर खर्च मूर्त अथवा सजीव श्रम - केवल उत्पादन की सामाजिक निधि को बनाये रखने के लिए या उपभोग की सामाजिक निधि को बनाये रखने के लिए किया गया ख़र्च होता है। इस ख़र्च से मालों के मूल्य में आई वृद्धि इस लागत' को विभिन्न मालों में pro rata [यथानुपात.] वांट देती है, क्योंकि विभिन्न प्रकारों के मालों के अनुरूप लागत भिन्न-भिन्न होती है और पूर्ति निर्माण की लागत सामाजिक धन से हमेशा की तरह ही कटौती होती है, यद्यपि यह उसके अस्तित्व की एक शर्त होती है। इस तरह की गतिहीनता केवल उसी सीमा तक सामान्य होती है कि जिस सीमा तक माल पूर्ति माल परिचलन का पूर्वाधार होती है और स्वयं माल परिचलन से अनिवार्यतः -