पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१५१

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१५० पूंजी का प्रावर्त जाता। खरीदार पूंजीपति द्वारा उसे उत्पादक ढंग उपयोग में नहीं लाया अन्य परिस्थितियां समान हों, तो स्थायित्व की मात्रा श्रम उपकरण के टिकाऊपन के साथ बढ़ती है। यह टिकाऊपन ही श्रम उपकरणों में नियत पूंजी मूल्य और उसके मूल्य के उस भाग के बीच , जो वह वारंवार प्रावर्तित श्रम ‘प्रक्रियाओं के दौरान उत्पाद को देता है , अन्तर के परिमाण को निर्धारित करता है। यह मूल्य जितना ही धीरे दिया जाता है - और श्रम प्रक्रिया की प्रत्येक आवृत्ति में श्रम उपकरण मूल्य देते हैं - उतना ही स्थायी पूंजी बड़ी होती है और उत्पादन प्रक्रिया में लगी हुई पूंजी तथा उसमें खपनेवाली पूंजी का अन्तर अधिक होता है। इस अन्तर के समाप्त हो जाने के साथ श्रम उपकरण की उपयोगिता ख़त्म हो चुकी होती है और वह अपने उपयोग मूल्य के साथ अपने मूल्य को भी खो चुका होता है। वह अब मूल्य का निधान नहीं रह जाता है। स्थिर पूंजी के किसी भी अन्य भौतिक वाहक के समान श्रम उपकरण भी उत्पाद में अपना मूल्य उसी सीमा तक पहुंचाता है, जिस सीमा तक वह उपयोग मूल्य साथ-साथ अपना मूल्य भी खोता जाता है, अतः यह स्पष्ट है कि वह जितना ही धीरे अपना उपयोग मूल्य गंवाता है, उतना ही अधिक समय तक वह उत्पादन प्रक्रिया में बना रहता है, उतना ही अधिक समय तक स्थिर पूंजी मूल्य उसमें नियत रहता है। यदि ऐसा उत्पादन साधन , जो सही अर्य में श्रम उपकरण नहीं है, जैसे सहायक सामग्री, कच्चा माल , अवतैयार माल , वगैरह, किन्तु मूल्य देने के और इसलिए अपने मूल्य परिचलन के ढंग के सिलसिले में श्रम उपकरणों जैसा ही आचरण करे, तो वह भी उसी तरह स्थायी पूंजी का भौतिक निधान , उसके अस्तित्व का एक रूप होता है। पूर्वोक्त मिट्टी के सुधारों के साथ ऐसी ही वात है, जिसमें भूमि में रासायनिक पदार्थ डाले जाते हैं, जिनका प्रभाव उत्पादन की अनेक नियतकालिक अवधियों अयवा वर्षों पर फैला होता है। यहां मूल्य का एक अंश उत्पाद के साथ-साथ अपने स्वतंत्र रूप में अथवा स्थायी पूंजी के रूप में विद्यमान रहता है, जव कि दूसरा अंश उत्पाद को अंतरित कर दिया गया है और इसलिए उसके साथ परिचलन करता है। इस मामले में उत्पाद में स्थायी पूंजी के मूल्य का एक अंश ही नहीं, वरन उपयोग मूल्य भी, वह पदार्थ, जिसमें मूल्य का यह अंश विद्यमान है, दाखिल होता है। बुनियादी ग़लती- “स्थायी 'प्रचल पूंजी" संवर्गों को “ स्थिर" पूंजी" संवर्गों के साथ उलझाने - के अलावा धारणाओं की परिभाषा में अब तक अर्थशास्त्रियों की उलझन के मूल आधार ये हैं : श्रम उपकरणों में भौतिक रूप से अन्तर्निहित कुछेक गुणों को स्थायी पूंजी के प्रत्यक्ष गुणों में बदल दिया जाता है ; यथा कहिये कि किसी घर की भौतिक निश्चलता। लेकिन इस तरह के मामलों में यह सावित करना हमेशा आसान होता है कि श्रम के अन्य उपकरणों में, जो उसी तरह स्थायी पूंजी हैं, विपरीत गुण मौजूद हैं ; जैसे जहाज़ की भौतिक गतिशीलता । अथवा मूल्य के परिचलन से रूप की जो आर्थिक निश्चयात्मकता उत्पन्न होती है, उसे वस्तुगत गुण से उलझा दिया जाता है; मानो जो वस्तुएं स्वयं पूंजी हैं ही नहीं, वरन किन्हीं निश्चित सामाजिक परिस्थितियों में ही पूंजी वनती हैं, वे किसी निश्चित - स्थायी अथवा प्रचल पूंजी- के रूप में अपने पापसे, अपनी प्रकृति से ही पूंजी बन सकती हों। हम देख चुके हैं (Buch !, Kap. V)* कि प्रत्येक श्रम प्रक्रिया में, चाहे वह कैसी भी सामाजिक परिस्थितियों , 11 16 तथा तथा "परिवर्ती

  • हिन्दी संस्करण : अध्याय ७1-सं०