पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१५३

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१५२ पूंजी का प्रावर्त बदल सकता है, उसे बेचा और खरीदा जा सकता है, और इस सीमा तक वह अधिकल्पित रूप में परिचलन कर सकती है। ये स्वत्वाधिकार विदेशी बाजारों में भी परिचालित हो सकते हैं, यया, उदाहरण के लिए, शेयरों या अंशों [स्टॉक ] के रूप में। किन्तु स्थायी पूंजी के इस वर्ग के मालिकों में व्यक्तियों के बदलने से राष्ट्रीय संपदा के अचल और भौतिक रूप से स्थायी भाग तथा उसके चल भाग के बीच का संबंध नहीं बदल जाता। , स्थायी पूंजी के असामान्य परिचलन का परिणाम होता है असामान्य आवर्त। स्थायी पूंजी अपने भौतिक रूप में मूल्य का जो भाग छीजन में खोती है, वह उत्पाद के मूल्यांश के रूप में परिचलन करता है। अपने परिचलन द्वारा उत्पाद अपने को माल से द्रव्य में परिवर्तित कर लेता है, इसलिए यही वात श्रम उपकरण के उस मूल्यांश पर भी लागू होती है , जो उत्पाद द्वारा परिचालित होता है और यह मूल्यांश द्रव्य रूप में परिचलन प्रक्रिया से उसी अनुपात में निकलता रहता है, जिसमें यह श्रम उपकरण उत्पादन प्रक्रिया में मूल्य का निधान नहीं रहता है। इस प्रकार इसका मूल्य दोहरा अस्तित्व प्राप्त कर लेता है। उसका एक भाग उत्पादन प्रक्रिया में उसके उपयोग रूप अथवा भौतिक रूप से जुड़ा रहता है। दूसरा भाग द्रव्य की शक्ल में उससे जुदा हो जाता है। श्रम उपकरण का वह मूल्यांश , जो भौतिक रूप में विद्यमान रहता है, अपना कार्य करते हुए निरन्तर घटता जाता है , जव कि द्रव्य में परिवर्तित मूल्यांश लगातार तव तक बढ़ता जाता है कि श्रम उपकरण अन्ततः निःशेष हो जाता है और उसका समस्त मूल्य उसके काय से जुदा होकर द्रव्य में परिवर्तित हो जाता है। यहां उत्पादक पूंजी के इस तत्व के प्रावर्त की असामान्यता स्पष्ट हो जाती है। उसके मूल्य का द्रव्य में रूपान्तरण उसी गति से होता है, जिससे इस मूल्य के वाहक का द्रव्य में प्यूपीकरण या कोपी- करण होता है। किन्तु द्रव्य रूप से उसका उपयोग रूप में पुनःपरिवर्तन मालों के उनके अन्य उत्पादन तत्वों में पुनःपरिवर्तन से अलग सम्पन्न होता है और उसका निर्धारण स्वयं अपने पुनरुत्पादन काल , अर्थात उस समय द्वारा होता है, जिसके दौरान श्रम उपकरण क्षय होता है और उसकी वैसे ही दूसरे उपकरण से प्रतिस्थापना करना ज़रूरी हो जाता है। मान लीजिये, १०,००० पाउंड की मशीन दस साल काम देती है ; तव उसके लिए मूलतः पेशगी दिये मूल्य का आवर्त काल दस वर्प होगा। इस काल के समाप्त होने तक उसका नवीकरण आवश्यक न होगा और वह अपने भौतिक रूप में कार्य करती रहेगी। इस बीच उसका मूल्य उन मालों के मूल्यांश के रूप में थोड़ा-थोड़ा करके परिचालित होता रहता है, जिनके निरन्तर उत्पादन का वह काम करती और इस प्रकार वह धीरे-धीरे द्रव्य में बदलती जाती है, यहां तक कि दस वर्ष समाप्त होने पर वह अन्ततः पूरी तरह द्रव्य रूप धारण कर लेती है और फिर द्रव्य से मशीन में पुनःपरिवर्तित की जाती है, दूसरे शब्दों में अपना आवर्त पूरा कर चुकती है। जब तक यह पुनरुत्पादन काल नहीं पाता, तब तक उसका मूल्य धीरे-धीरे प्रारक्षित द्रव्य निधि के रूप में संचित होता रहता है। उत्पादक पूंजी के शेप तत्व अंशतः स्थिर पूंजी के वे तत्व होते हैं, जो सहायक सामग्री और कच्चे माल की तरह विद्यमान होते हैं, और अंशतः उस परिवर्ती पूंजी के तत्व होते हैं, जो श्रम शक्ति में लगाई गई है। 1 21 पाण्डुलिपि ४ का अन्त , पाण्डुलिपि २ का प्रारम्भ। - फ्रे० एं०