पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१५४

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स्थायी पूंजी तथा प्रचल पूंजी १५३ . श्रम प्रक्रिया तथा वेशी मूल्य की उत्पादन प्रक्रिया के विश्लेपण (Buch I, Kap. V)* ने दिखाया था कि पूंजी के ये विभिन्न संघटक उत्पाद के सृजकों तथा मूल्यों के सृजकों के रूप में नितान्त भिन्न प्राचरण करते हैं। स्थिर पूंजी के उस भाग का मूल्य , जिसमें सहायक सामग्री और कच्चा माल समाहित होते हैं, मात्र अंतरित मूल्य की तरह ही उत्पाद मूल्य में पुनः प्रकट होता है, जैसे उस भाग का मूल्य , जिसमें श्रम उपकरण समाहित होते हैं, जब कि श्रम शक्ति श्रम प्रक्रिया के माध्यम अपने मूल्य का समतुल्य उत्पाद में जोड़ देती है ; दूसरे शब्दों में यथार्थतः अपने मूल्य का पुनरुत्पादन करती है। इसके अलावा सहायक सामग्री का एक भाग - ईंधन , रोशनी की गैस , वगैरह - भौतिक रूप से उत्पाद में दाखिल हुए विना श्रम प्रक्रिया के दौरान खप जाता है, जव कि दूसरा भाग भौतिक रूप से उत्पाद में प्रवेश करता है और उसका भौतिक सार तत्व बन जाता है। किन्तु जहां तक परिचलन का , और इसलिए आवर्त विधि का सम्बन्ध है, ये सब भेद महत्वहीन हैं। चूंकि उत्पाद के निर्माण में सहायक सामग्री और कच्चा माल पूरी तरह खप जाते हैं, इसलिए वे अपना मूल्य पूरी तरह उत्पाद को अंतरित कर देते हैं। अतः यह मूल्य समग्रतः उत्पाद द्वारा परिचालित होता है, अपने को द्रव्य में और द्रव्य से फिर माल के उत्पादन तत्वों में रूपांतरित करता है। उसके आवर्त में व्यवधान नहीं पड़ता , जैसे स्थायी पूंजी के आवर्त में पड़ता है, वरन वह अपने रूपों के समूचे परिपथ से निर्वाध गुज़र जाता है, जिससे उत्पादक पूंजी के ये तत्व वस्तुरूप में निरन्तर नवीकृत होते रहते हैं। जहां तक श्रम शक्ति में निविष्ट उत्पादक पूंजी के परिवर्ती घटक का सम्बन्ध है, इस पर ध्यान देना चाहिए कि श्रम शक्ति एक निश्चित अवधि के लिए ख़रीदी जाती है। जैसे ही पूंजीपति उसे ख़रीदता है और उत्पादन प्रक्रिया में समाविष्ट करता है, वह उसकी पूंजी का एक संघटक अंश, उसका परिवर्ती संघटक अंश बन जाती है। एक कालावधि में श्रम शक्ति प्रति दिन कार्य करती है, जिसमें वह उत्पाद में अपना दिन भर का मूल्य ही नहीं, वरन उसके ऊपर वेशी मूल्य भी जोड़ती है। यहां अभी हम इस वेशी मूल्य पर विचार नहीं करेंगे। जव श्रम शक्ति खरीदी जा चुकी होती है और अपना कार्य , मसलन , हफ्ते भर के लिए सम्पन्न कर चुकी होती है, तव हस्वमामूल , एक मीयाद के भीतर उसकी ख़रीद का लगातार नवीकरण ज़रूरी होता है। उसके मूल्य के समतुल्य को, जिसे श्रम शक्ति अपने कार्य के दौरान उत्पाद में जोड़ती है और जो उत्पाद के परिचलन के फलस्वरूप द्रव्य में रूपान्तरित होता है , द्रव्य से श्रम शक्ति में लगातार पुनःपरिवर्तित किया जाना चाहिए अथवा अपने रूपों के पूरे परिपथ से गुज़रना चाहिए, अर्थात यदि निरन्तर उत्पादन के परिपथ में व्यवधान नहीं डालना है, तो उसका आवर्त होना चाहिए। इसलिए उत्पादक पूंजी के मूल्य का वह भाग, जो श्रम शक्ति के लिए पेशगी दिया जाता है, पूर्णतः उत्पाद को अंतरित हो जाता है ( हम यहां वेशी मूल्य के प्रश्न का विवेचन लगातार छोड़ रहे हैं), उसके साथ परिचलन क्षेत्र से सम्बद्ध दोनों रूपान्तरणों से गुजरता है और इस निरन्तर नवीकरण के फलस्वरूप उत्पादन प्रक्रिया में सदा समाविष्ट रहता है। इसलिए जहां तक मूल्य सृजन का प्रश्न है, श्रम शक्ति तथा स्थिर पूंजी के उन संघटक अंशों का, जो स्यायो पूंजी के अंगीभूत नहीं होते , संबंध अन्यथा चाहे जितना भिन्न हो, स्थायी पूंजी के विपरीत . , . . हिन्दी संस्करण : अध्याय ७।-सं०