पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१५६

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स्थायी पूंजी तथा प्रचल पूंजी १५५ . तक परिचलन से निकाल लिये जाते हैं, किन्तु उन्हें वापस खरीदकर, द्रव्य रूप से उत्पादन तत्वों में पुनःपरिवर्तित करके निरंतर प्रतिस्यापित और नवीकृत करते रहना होता है। उन्हें वाज़ार से एक वार में स्थायी पूंजी के तत्वों के मुक़ावले थोड़ी मात्रा में निकाला जाता है ; किन्तु उन्हें बाजार से इतनी ही ज्यादा प्रायिकता से निकालना और उनमें निवेशित पेशगी पूंजी को अल्पतर अन्तरालों के वाद नवीकृत करना होता है। यह निरन्तर नवीकरण उनके समग्र मूल्य को परिचालित करनेवाले उत्पाद के सतत परिवर्तन द्वारा सम्पन्न किया जाता है। और अन्ततः वे न केवल अपने मूल्य ही, वरन भौतिक रूप में भी रूपान्तरणों के समूचे परिपथ से गुज़र जाते हैं। वे मालों से उन्हीं मालों के उत्पादन तत्वों में निरन्तर पुनःपरिवर्तित होते हैं । श्रम शक्ति अपने मूल्य के साथ उत्पाद वेशी मूल्य जोड़ती है- साकार निर्वेतन श्रम । तैयार उत्पाद द्वारा यह निरन्तर परिचालित होता और उसके मूल्य के अन्य तत्वों की ही तरह द्रव्य में परिवर्तित होता रहता है। किन्तु यहां, जहां हमारा मुख्यतः पूंजी मूल्य के आवर्त से हो सरोकार है और उसी के साथ होनेवाले वेशी मूल्य के आवर्त से नहीं, हम फ़िलहाल उसकी चर्चा नहीं करेंगे। इस विवेचन से निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं : १. स्थायी तथा प्रचल पूंजी के रूपों की निश्चयात्मकता केवल उत्पादन प्रक्रिया में कार्यशील पूंजी मूल्य के विभिन्न आवर्तों अथवा उत्पादक पूंजी के विभिन्न आवों से उत्पन्न होती है। अपनी वारी में आवर्त का यह अन्तर उत्पादक पूंजी के विभिन्न घटकों द्वारा अपना मूल्य उत्पाद को अंतरित करने के ढंग से उत्पन्न होता है, यह न तो उत्पाद के मूल्य सृजन में इन घटकों की भिन्न-भिन्न भूमिका के कारण होता है और न स्वप्रसार प्रक्रिया में उनके अपने विशेष आचरण के कारण ही। अन्ततः उत्पाद को मूल्य पहुंचाने में अन्तर और इसलिए उत्पाद द्वारा इस मूल्य को परिचालित करने और उत्पाद के रूपांतरणों द्वारा अपने मूल भौतिक रूप में नवीकरण करने के ढंगों का अन्तर उत्पादक पूंजी के अस्तित्व के आकारों के अन्तर से उत्पन्न होता है, जहां उसका एक भाग किसी अलग उत्पाद की रचना के दौरान पूरी तरह खप जाता है और दूसरा केवल धीरे-धीरे उपयोग में आता है। इसलिए सिर्फ़ उत्पादक पूंजी को ही स्थायी और प्रचल पूंजी में विभाजित किया जा सकता है। किन्तु यह विपर्यय प्रौद्योगिक पूंजी के अस्तित्व के अन्य दो रूपों, अर्थात माल पूंजी और द्रव्य पूंजी पर लागू नहीं होता, न ही वह उत्पादक पूंजी के प्रति इन दोनों रूपों के विपर्यय की तरह विद्यमान रहता है। वह केवल उत्पादक पूंजी के लिए और उसकी परिधि के भीतर ही विद्यमान रहता है। द्रव्य पूंजी और माल पूंजी की कितनी ही माता पूंजी रूप में कार्यशील हो और उनके परिचलन में चाहे जितना प्रवाह हो, वे उत्पादक पूंजी के प्रचल घटकों में परिवर्तित हुए विना स्थायी पूंजी से भिन्न प्रचल पूंजी नहीं बन सकतीं। किन्तु चूंकि पूंजी के ये दोनों रूप परिचलन क्षेत्र में रहते हैं, इसलिए जैसा कि हम देखेंगे, ऐडम स्मिथ के ज़माने से ही राजनीतिक अर्थशास्त्र को उन्हें उत्पादक पूंजी के प्रचल भाग के समान समझने और उन्हें प्रचल पूंजी के संवर्ग में रखने की भ्रांति में डाला जाता रहा है। उत्पादक पूंजी के मुकावले वे सचमुच प्रचल पूंजी हैं, किन्तु स्थायी पूंजी के मुकावले वे प्रचल पूंजी नहीं हैं। २. पूंजी के स्थायी संघटक अंश के आवर्त में, अतः उसके लिए आवश्यक प्रावर्त काल में भी पूंजी के प्रचल संघटक अंशों के अनेक आवर्त समाहित होते हैं। जिस अवधि में स्थायी पूंजी एक आवर्त करती है, उसमें प्रचल पूंजी कई बार यावर्त कर लेती है। उत्पादक पूंजी के 7