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पूंजी का आवर्त

मूल्य का एक संघटक अंश स्थायी पूंजी के रूप की स्पष्टता सिर्फ तभी प्राप्त करता है कि जव वे उत्पादन साधन, जिनमें वह विद्यमान है, उत्पाद निर्माण के लिए और माल के रूप में उत्पादन प्रक्रिया से उसके निष्कासन की आवश्यक अवधि में पूरी तरह से छीज नहीं जाते। उनके मूल्य का एक भाग अब भी परिरक्षित पुराने उपयोग रूप में बंधा रहेगा, जब कि दूसरा भाग तैयार उत्पाद द्वारा परिचालित होगा और दूसरी तरफ़ यह परिचलन पूंजी के अस्थिर संघटक अंशों के समग्र मूल्य को एक साथ परिचालित करता है।

३. उत्पादक पूंजी का मूल्यांश , स्थायी पूंजी में निवेशित अंश , उस समूची अवधि के लिए इकमुश्त पेशगी दिया जाता है, जिसमें उत्पादन साधनों का वह अंश प्रयुक्त होता है, जिसमें स्थायी पूंजी समाहित होती है। इसलिए पूंजीपति यह सारा मूल्य एकवारगी परिचलन में डाल देता है। किन्तु इसे परिचलन से उन मूल्यांशों के सिद्धिकरण द्वारा, जिन्हें स्थायी पूंजी मालों में थोड़ा-थोड़ा करके जोड़ती है, केवल क्रमशः और थोड़ा-थोड़ा करके ही निकाला जाता है। दूसरी ओर स्वयं उत्पादन साधन, जिनमें उत्पादक पूंजी का एक संघटक अंश नियत हो जाता है, परिचलन से सब एकवारगी निकाल लिये जाते हैं और उन्हें उत्पादन प्रक्रिया में उनके कार्यशील रहने के सारे समय के लिए समाविष्ट कर लिया जाता है। किन्तु उन्हें इस अवधि में उसी प्रकार के नये नमूनों द्वारा प्रतिस्थापना की ज़रूरत नहीं होती, न पुनरुत्पदन की ही ज़रूरत होती है। स्वयं अपने नवीकरण के तत्वों को परिचलन से निकाले विना वे परिचलन में डाले माल के निर्माण में न्यूनाधिक काल तक योगदान करते रहते हैं। अतः उनके लिए यह आवश्यक नहीं होता कि इस अवधि में पूंजीपति अपनी पेशगी का नवीकरण करे। अन्ततः स्थायी पूंजी में निवेशित पूंजी मूल्य उन उत्पादन साधनों की, जिनमें यह पूंजी मूल्य अस्तित्वमान होता है, कार्यशीलता की अवधि में अपने रूपों के परिपथ से भौतिक रूप में नहीं गुज़रता , वरन केवल अपने मूल्य के संदर्भ में ही गुजरता है और वह भी केवल थोड़ा-थोड़ा करके और क्रमशः ही। दूसरे शब्दों में उसके मूल्य का एक भाग द्रव्य से अपने मूल भौतिक रूप में पुन:परिवर्तित हुए विना निरन्तर परिचालित होता और मालों के मूल्यांश के रूप में द्रव्य में परिवर्तित होता रहता है। उत्पादन साधनों के भौतिक रूप में द्रव्य का यह पुनःपरिवर्तन उसकी कार्यशीलता की अवधि के समाप्त होने तक सम्पन्न नहीं होता , जब उत्पादन साधन पूरी तरह उपयुक्त हो चुके होते हैं।

४. उत्पादन प्रक्रिया को अविछिन्न वना रहना हो, तो उसमें प्रचल पूंजी के तत्व उतने ही स्थायी रूप में नियत होते हैं, जितने स्थायी पूंजी के तत्व । किन्तु प्रचल पूंजी के इस प्रकार नियत तत्वों का वस्तुरूप में निरन्तर नवीकरण होता रहता है (उत्पादन साधनों का उसी प्रकार के नये उत्पादों द्वारा , श्रम शक्ति का निरन्तर नयी खरीदों द्वारा), जव कि स्थायी पूंजी के मामले में न तो उसके तत्व स्वयं नवीकृत होते हैं और न जब तक वे बने रहते हैं, तव तक उनकी खरीद का नवीकरण आवश्यक होता है। उत्पादन प्रक्रिया में कच्चा माल और सहायक सामग्री सदा ही विद्यमान रहते हैं, परन्तु तैयार उत्पाद के निर्माण में पुराने तत्वों के खप चुकने पर हमेशा उसी प्रकार के नये उत्पाद ही होते हैं। इसी तरह श्रम शक्ति भी उत्पादन प्रक्रिया में निरन्तर रहती है, लेकिन हमेशा नई ख़रीदों के जरिये ही, जिसमें अक्सर व्यक्तियों का बदलना सन्निहित रहता है। किन्तु विल्कुल वही इमारतें , मशीनें, वगैरह प्रचल पूंजी के पुनरावृत्त प्रावों के दौरान उत्पादन की पुनरावृत्त प्रक्रियाओं में कार्य करती रहती हैं।