पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१५९

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पूंजी का प्रावत . a U1 में नहीं।” (पार० पी० विलियम्स , “On the Maintenance of Permanent Tra". सिविल इंजीनियर संस्थान में पढ़ा हुया निबन्ध , शरत, १८६७ 1) अन्त में, प्राधुनिक उद्योग में और सभी जगहों की तरह यहां भी, नैतिक ह्रास की भी भूमिका होती है। दानाल बीतने पर उतनी ही गाड़ियां और इंजन ३० हजार पाउंड में गरीदे जा सकते हैं, जितने पहले ४० हजार पाउंड में खरीदे जाते। चल स्टॉक के इस मूल्य हास को तब भी बाजार भाव का २५ प्रतिशत रखना होगा, जव उसके उपयोग मूल्य में ज़रा नी हाल नहीं हुया होता है। (लार्डनर, Railway Economy)। "सुरंग रेल पुल अपने वर्तमान रूप में प्रतिस्थापित नहीं किये जायेंगे।" ( क्योंकि अव ऐसे पुलों के बेहतर रूप सुलभ है।) 'साधारण मरम्मत , धीरे-धीरे हटाना और प्रतिस्थापना करना व्यवहार्य नहीं हैं" (डब्ल्यू० पी० ऐडम्स , Rcads and Rails, लन्दन , १८६२)। प्रौद्यो- गिक प्रगति के साथ-साथ श्रम उपकरण लगातार बहुत कुछ परिशोधित होते रहते हैं। अतः अपने मूल रूप में नहीं, परिशोधित रूप में प्रतिस्थापित होते हैं। एक ओर, किसी विशेष मांतिक रूप में निवेगित और उस रूप में एक विशेष प्रोसत जीवन काल से युक्त स्थायी पूंजी की राशि नई मशीनों, आदि के सिर्फ़ धीमी गति से ही प्रचलन का कारण होती है और इसलिए उद्योग में उन्नत श्रम उपकरणों के तेजी से व्यापक पैमाने पर प्रचलन में बाधा होती है। दूसरी ओर प्रतिद्वन्द्विता पुराने श्रम उपकरणों की , उनकी नैसर्गिक जिन्दगी के खात्मे से पहले ही, नये उपकरणों से प्रतिस्थापना के लिए मजबूर करती है, खास तौर से निर्णायक परिवर्तनों के होने पर। काफ़ी बड़े सामाजिक पैमाने पर कारखानों की यंत्र-सज्जा के इस तरह के समयपूर्व नवीकरण मुख्यतः विपत्तियों या संकटों के कारण करने पड़ते हैं। टूट-फूट या छीजन (नैतिक ह्रास को छोडकर ) का अर्थ यह होता है कि मूल्य का वह भाग , जिसे स्थायी पूंजी उपयोग में लाये जाने पर उत्पाद को क्रमशः अपने उपयोग मूल्य की श्रीसत हानि के अनुपात में अंतरित कर देती है। यह छीजन अंशतः इस प्रकार होती है कि स्थायी पूंजी का एक ख़ास असत टिकाऊपन रहता है। वह इस समूची अवधि के लिए इकमुम्त पेशगी दी जाती है। यह मीयाद ख़त्म होने पर उसे पूरी तरह प्रतिस्थापित करना होता है। जहां तक श्रम के जीवित उपकरणों, जैसे घोड़ों का सम्बन्ध है, उनका पुनरुत्पादन काल स्वयं प्रकृति द्वारा निर्धारित होता है। श्रम उप- करणों के नाते उनका औसत जीवन काल प्रकृति के नियमों द्वारा निश्चित किया जाता है। जैसे ही यह अवधि समाप्त होती है, उनकी नये उपकरणों से प्रतिस्थापना करना जरूरी होता है। घोड़े की थोड़ा-थोड़ा करके प्रतिस्थापना सम्भव नहीं है, उसकी दूसरे ही घोड़े से प्रतिस्था- पना होगी। स्थायी पूंजी के अन्य तत्वों का प्रावधिक अथवा आंशिक नवीकरण करना संभव है। इस प्रसंग में प्रांशिक अथवा प्रावधिक प्रतिस्थापना को व्यवसाय के प्रमिक विस्तार से भिन्न समझना चाहिए। न्यायी पूंजी में ग्रंशतः सजातीय संघटक अश समाविष्ट होते हैं, किन्तु वे सब कुछ ही अवधि तक काम नहीं देते, वरन उन्हें विभिन्न अन्तरालों पर थोड़ा-थोड़ा करके नवीकृत किया जाता 3

  • प्रार० पी० विलियम्स का निबन्ध २ दिसंबर, १८६७ के Mcney Market Review

में प्रकाशित हुया था।-२०