पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१६०

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स्थायी पूंजी तथा प्रचल पूंजी १५६ - . है। उदाहरण के लिए, यह वात रेलवे स्टेशनों में पटरियों पर लागू होती है, जिन्हें शेप रेलमार्ग की पटरियों की अपेक्षा जल्दी-जल्दी प्रतिस्थापित करना होता है। यही वात स्लीपरों पर भी लागू होती है, जिन्हें वेल्जियमी रेलवे पर लार्डनर के अनुसार पांचवें दशक में सालाना पाठ फ़ीसदी के हिसाब से बदलना पड़ा था, जिससे साढ़े बारह साल के भीतर सभी स्लीपरों का नवीकरण हो गया। इसलिए यहां हमारे सामने निम्न स्थिति है : एक ख़ास राशि एक विशेष प्रकार की स्थायी पूंजी की तरह , मसलन , दस साल के लिए पेशगी दी जाती है। यह खर्च एकबारगी किया जाता है। किन्तु इस स्थायी पूंजी का एक निश्चित भाग, जिसका मूल्य उत्पाद के मूल्य में प्रवेश कर गया है और उसके साथ द्रव्य में परिवर्तित हो गया है, प्रति वर्ष वस्तुरूप में प्रतिस्थापित होता है , जब कि उसका शेष भाग अपने मूल भौतिक रूप में बना रहता है। यह इकमुश्त पेशगी दिया जाना और भौतिक रूप में केवल अांशिक पुनरुत्पादन ही इस , स्थायी , पूंजी का प्रचल पूंजी से अंतर करते हैं। स्थायी पूंजी के अन्य भागों में विजातीय घटक समाविष्ट होते हैं, जो असमान अवधियों में छीजते हैं और इसलिए इसी तरह उन्हें प्रतिस्थापित भी करना होता है। यह वात मशीनों पर खास तौर से लागू होती है। स्थायी पूंजी के विभिन्न संघटक अंशों के विभिन्न टिकाऊपन पर हमने अभी जो कुछ कहा है, इस मामले में इस स्थायी पूंजी के हिस्से की तरह आनेवाली किसी भी मशीन के विभिन्न संघटक अंशों के टिकाऊपन पर भी लागू होता है। जहां तक आंशिक नवीकरण के दौरान व्यवसाय के क्रमिक विस्तार का सम्बन्ध है, हम निम्न बातें कहेंगे : यद्यपि जैसा कि हम देख चुके हैं, स्थायी पूंजी उत्पादन प्रक्रिया में अपने कार्य वस्तुरूप में करती रहती है, फिर भी उसकी औसत छीजन के यथानुपात उसके मूल्य का एक भाग उत्पाद के साथ परिचालित हो चुका है, द्रव्य में परिवर्तित हो चुका है और पूंजी की -उसका वस्तुरूप में पुनरुत्पादन होने तक - प्रतिस्थापना के लिए उद्दिष्ट आरक्षित द्रव्य निधि का एक तत्व बन जाता है। द्रव्य में परिवर्तित स्थायी पूंजी का यह मूल्यांश व्यवसाय का विस्तार करने अथवा व्यवसाय की कार्य-कुशलता बढ़ाने के लिए यंत्र-सज्जा में सुधार करने का काम कर सकता है। इस प्रकार पुनरुत्पादन न्यूनाधिक अवधि में होता है और सामाजिक दृष्टिकोण से यह विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन होता है - उत्पादन क्षेत्र का विस्तार किया जाये, तो विस्तृत और यदि उत्पादन साधन की कार्य-कुशलता वढ़ाई जाये, तो गहन होता है। विस्तारित पैमाने का यह पुनरुत्पादन संचय - वेशी मूल्य के पूंजी में परिवर्तन - के फलस्वरूप नहीं , बल्कि मूल्य के पुनःरूपांतरण के फलस्वरूप होता है, जो द्रव्य के रूप में स्थायी पूंजी के काय से अलग होकर उसी प्रकार की नई स्थायी पूंजी, या कम से कम अधिक कार्यक्षम स्थायी पूंजी-बन जाता है। निस्सन्देह यह अंशतः व्यवसाय के स्वरूप विशेप पर निर्भर करता है कि वह किस सीमा तक और किस अनुपात में ऐसी ऋमिक वृद्धि कर सकता है और इसलिए इस प्रकार पुनःनिवेशन के लिए कितनी आरक्षित निधि एकत्र की जानी चाहिए और इसके लिए कितना समय आवश्यक होगा। विद्यमान मशीनों के कल-पुरजों में किस हद तक सुधार किये जा सकते हैं, यह स्पप्ट ही इन सुधारों के स्वरूप पर और खुद मशीन की रचना पर निर्भर करता है। रेलमार्गों के निर्माण में बिल्कुल प्रारम्भ में ही इस बात पर कितनी अच्छी तरह विचार किया गया था, इसे ऐडम्स दिखाते हैं : सारा ढांचा उसी नियम पर खड़ा मारना चाहिए, जो मधुमक्खियों के छत्ते को शासित करता है - असीम विस्तार की क्षमता।