पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१६१

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१६० पूंजी का आवर्त 1 ऐसे हर स्थायी और पूर्णतः सममित ढांचे से बचना चाहिए, जिसे आगे चलकर विस्तार की जरूरत होने पर गिराना पड़े" (पृष्ठ १२३) । यह सब बहुत कुछ उपलब्ध स्थान पर निर्भर करता है। कुछ इमारतों पर अतिरिक्त मंज़िलें उठाई जा सकती हैं, कुछ का वग़ली विस्तार करना होगा, इसलिए अधिक भूमि दरकार होगी। पूंजीवादी उत्पादन में, एक अोर, सामग्री की वहुत वरवादी होती है , दूसरी ओर व्यवसाय के क्रमिक प्रसार के दौरान इस तरह का बहुत सा अव्यावहारिक वग़ली विस्तार होता है (जिससे अंशतः श्रम शक्ति को क्षति पहुंचती है), क्योंकि सामाजिक योजना के अनुसार कोई भी काम नहीं उठाया जाता, बल्कि सब कुछ उन अंतहीन परिस्थितियों, साधनों, आदि पर निर्भर करता है, जिनके सहारे वैयक्तिक पूंजीपति काम करता है। इसका परिणाम उत्पा- दक शक्तियों की भारी वरवादी होता है। आरक्षित द्रव्य निधि का यह खंडशः पुनर्निवेश (अर्थात द्रव्य में पुनःपरिवर्तित स्थायी पूंजी के एक भाग का ) खेती में सबसे आसान होता है। एक नियत क्षेत्रफल का उत्पादन क्षेत्र यहां धीरे-धीरे लगाई गई अधिकतम पूंजी को आत्मसात कर सकता है। जहां नैसर्गिक पुनरुत्पा- दन होता है, वहां भी यही बात लागू होती है, यथा पशुपालन में। स्यायी पूंजी के लिए अनुरक्षण खर्च ज़रूरी होता है। इस अनुरक्षण का एक भाग स्वयं श्रम प्रक्रिया जुटाती है-स्थायी पूंजी का उपयोग श्रम प्रक्रिया में न हो, तो वह वरवाद होती है ( इस्तेमाल न होने पर मशीनों की छीजन के बारे में Buch I, Kap. VI, S. 196 और Kap. XIII , S. 423* देखें)। इसलिए किराये पर ली हुई जमीन को देश की प्रथा के अनुसार काश्त न किया जाये, तो अंग्रेज़ी कानून स्पष्टतः इसे वरवादी मानता है । ( डब्ल्यू० ए० होल्ड्सवर्थ , Barrister at Law : The Law of Landlord and Tenant, लन्दन , १८५७, पृष्ठ ६६ ।) प्रक्रिया में उपयोग से उत्पन्न यह अनुरक्षण जीवित श्रम के स्वरू में सन्निहित एक मुफ्त उपहार है। इसके अलावा श्रम की परिरक्षी शक्ति का स्वरूप दोहरा होता है। एक ओर श्रम सामग्री के मूल्य को उत्पाद को अंतरित करके वह उसे परिरक्षित रखती है ; दूसरी ओर श्रम उपकरणों के मूल्य को उत्पाद को अंतरित किये बिना, उत्पादन प्रक्रिया में उनकी क्रियाशीलता द्वारा उनके उपयोग मूल्य को परिरक्षित रखते हुए इनका मूल्य परिरक्षित रखती है। किन्तु स्थायी पूंजी के दुरुस्त ढंग से अनुरक्षण के लिए श्रम का निरपेक्ष व्यय भी आव- श्यक होता है। समय-समय पर मशीनों की सफ़ाई जरूरी होती है। यहां सवाल अतिरिक्त मेहनत का होता है, जिसके विना मशीनें वेकार हो जाती हैं। यह प्रकृति के हानिकर प्रभावों को दूर रखने मात्र का प्रश्न है, जो उत्पादन प्रक्रिया से अवियोज्य हैं। अतः यह मशीनों को, शब्दशः, काम लायक बनाये रखने का सवाल है। कहना न होगा कि स्थायी पूंजी के सामान्य टिकाऊपन का परिकलन इस अनुमान पर किया जाता है कि जिन परिस्थितियों में वह अपने कार्य सामान्य रूप में कर सकती है, वे सभी उस अवधि में सुलभ होंगी, जैसे कि हम किसी आदमी की औसत उम्र तीस साल मानते हुए यह अनुमान भी करते हैं कि इस बीच वह नहाता-धोता रहेगा। यहां सवाल मशीन में समाविष्ट श्रम के प्रतिस्थापन का नहीं, वरन निरन्तर जोड़े जानेवाले अतिरिक्त श्रम का है, जो उसके उपयोग से आवश्यक हो जाता है। प्रश्न उस श्रम का नहीं है, जिसे मशीन करती है, वरन उस मशीन पर खर्च किये जानेवाले श्रम का 'हिन्दी संस्करण : अध्याय ८ और १५।-सं०