पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१६२

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स्थायी पूंजी तथा प्रचल पूंजी १६१ , है, जिसमें वह उत्पादन का अभिकर्ता नहीं, कच्चा माल होता है। इस श्रम पर खर्च की हुई पूंजी को प्रचल पूंजी के रूप में वर्गीकृत करना होगा, यद्यपि वह उस ख़ास श्रम प्रक्रिया में दाखिल नहीं होती, जिससे उत्पाद का अस्तित्व सम्भव होता है। इस श्रम को उत्पादन में निरन्तर खर्च करना होगा, इसलिए उसके मूल्य की उत्पाद के मूल्य से निरन्तर प्रतिस्थापना करनी होगी। इसमें लगाई हुई पूंजी प्रचल पूंजी के उस भाग में आती है, जिसे अनुत्पादक व्यय पूरा करना होता है और जो उत्पादित मूल्यों में सालाना औसत के हिसाब से वितरित होता है। हम देख चुके हैं कि वास्तविक उद्योग में सफ़ाई की यह मेहनत मजदूर मुफ्त , विश्राम काल में करते हैं, और इसी कारण स्वयं उत्पादन प्रक्रिया के दौरान भी करते हैं और अनेक दुर्घटनाओं के मूल को इसी स्रोत में ढूंढा जा सकता है । यह श्रम उत्पाद की कीमत में नहीं शामिल होता। इस माने में वह उपभोक्ता को मुफ्त मिलता है। दूसरी ओर इस प्रकार पूंजीपति अपनी मशीन का अनुरक्षण व्यय नहीं देता। उसे मजदूर व्यक्तिशः देता है और यह पूंजी के प्रात्मरक्षण के रहस्यों में एक है, जो तथ्यतः मशीन पर मजदूर का कानूनी दावा जताता है और वुर्जुआ कानून के दृष्टिकोण से भी वह इस के बल पर मशीन का सहस्वामी होता है। लेकिन उत्पादन की उन विभिन्न शाखाओं में , जिनमें मशीनों को सफ़ाई के लिए उत्पादन प्रक्रिया से हटाना होता है और इसलिए जहां सफ़ाई का काम बीच के समय में नहीं किया जा सकता, जैसे कि मिसाल के लिए रेल इंजनों के मामले में, यह अनुरक्षण कार्य चालू ख़र्च माना जाता है और इसलिए वह प्रचल पूंजी का तत्व होता है। मसलन मालगाड़ी के इंजन को एक दिन शेड में रखे विना तीन दिन से ज्यादा नहीं चलाया जाना चाहिए ... वायलर के ठंडा होने से पहले उसकी धुलाई का प्रयत्न अत्यन्त हानिकारक होगा (आर० सी०, क्रमांक १७८२३)। वास्तविक मरम्मत या जोड़ाजाड़ी के लिए पूंजी और श्रम का ऐसा व्यय करना होता है, जो मूलतः पेशगी दी गई पूंजी में समाविष्ट नहीं होता और इसलिए स्थायी पूंजी के मूल्य के क्रमिक प्रतिस्थापन द्वारा उसे प्रतिस्थापित और पूरा नहीं किया जा सकता, कम से कम हमेशा ऐसा नहीं ही किया जा सकता। मिसाल के लिए अगर स्थायी पूंजी का मूल्य १०,००० पाउंड और उसका कुल जीवन काल १० साल हो, तो १० साल बीतने पर ये १०,००० पाउंड पूरी तरह द्रव्य में परिवर्तित हो चुकने पर केवल मूलतः निवेशित पूंजी के मूल्य को ही प्रति- स्थापित करेंगे, लेकिन वे इस वीच मरम्मत के लिए जोड़ी पूंजी या श्रम को प्रतिस्थापित नहीं करेंगे। यह मूल्य का एक अतिरिक्त संघटक अंश है, जो पूरा का पूरा एकसाथ पेशगी नहीं दिया जाता , वरन जब भी ज़रूरत हो, तभी दिया जाता है, और उसे पेशगी देने की वारियां स्वभावतः ही आकस्मिक होती हैं। हर तरह की स्थायी पूंजी के लिए श्रम शक्ति तथा श्रम उपकरणों का इस प्रकार का उत्तरवर्ती , थोड़ा-थोड़ा अतिरिक्त पूंजी का परिव्यय आवश्यक होता है। मशीनों, आदि के अलग हिस्सों को होनेवाला नुक़सान स्वभावतः अाकस्मिक होता है और इसलिए ज़रूरी मरम्मत भी आकस्मिक होती है। फिर भी दो तरह की मरम्मतों को ग्राम क़िस्मों से अलग करना होगा, जो वहुत कुछ स्थिर स्वरूप की होती हैं और स्थायी पूंजी के जीवन काल की विभिन्न मीयादों के भीतर आती हैं। ये बचपन के रोग श्री टिकाऊपन की आधी मीयाद के वादवाले और भी अधिक संख्या के रोग हैं। उदाहरण के लिए, कोई मशीन वहुत ही चुस्त-दुरुस्त हालत में चालू की जा सकती है, लेकिन उसके वास्तविक इस्तेमाल से खामियां जाहिर होंगी, जिन्हें वाद की मेहनत से ही दूर करना होता है। दूसरी ओर जितना कार्ल मार्क्स , 'पूंजी', हिन्दी संस्करण , खंड १, पृष्ठ ३६६, पादटिप्पणी २1-सं० , . 11-1150