पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१६६

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स्थायी पूंजी तथा प्रचल पूंजी १६५ ~ - . 11 . स्थायी पूंजी के प्रतिस्थापन तथा अनुरक्षण को अलग करना खेती में व्यवहारतः व्यर्थ और असम्भव हो जाता है, कम से कम जहां भाप की मशीनों से खेती न होती हो । किर्कोफ़ के अनुसार (किर्कोफ़, Handbuch der landwirtschaftlichen Betriebslehre, ड्रेस्डेन , १८५२, पृष्ठ १३७), "जहां भी औजारों की ( खेती के तथा अन्य औज़ारों की और हर प्रकार के कृषि साधनों की) पूर्ति पूर्ण, यद्यपि अतिशय नहीं होती, वहां विद्यमान विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार औजारों के सालाना रख-रखाव और छीजन को मूल कोष के १५ से २५ प्रतिशत साधारण औसत के अनुसार आंकने का रिवाज है।" रेलमार्ग के चल स्टॉक के मामले में मरम्मत और प्रतिस्थापन को जुदा किया ही नहीं जा सकता। "हम अपने स्टॉक को संख्या के अनुसार कायम रखते हैं। हमारे पास इंजनों की जो भी संख्या हो, उसे हम कायम रखते हैं। समय बीतने पर अगर एक इंजन नष्ट हो जाये और एक नया इंजन बनाना बेहतर हो, तो हम उसे आय के ख़र्च से बनाते हैं, वेशक , जहां तक मुमकिन हो, पुराने इंजन के सामान की रक़म को जमा करते हुए काफ़ी सामान बचा रहता है ; पहिये, धुरियां, वायलर बचे रहते हैं , और दरअसल पुराने इंजन का काफ़ी हिस्सा वचा रहता है।" (टी० गूच , Chairman of Great Western Railway Co., रेलमार्गो पर पार० सी०, पृष्ठ ८५८, क्रमांक १७३२७-१७३२६ ! ) मरम्मत का अर्थ है नवीकरण ; मैं प्रतिस्थापन शब्द पर विश्वास नहीं करता एक वार कोई रेलवे कम्पनी गाड़ी या इंजन ख़रीद ले, तो उसकी मरम्मत करना ज़रूरी होता है, और इस तरह वह हमेशा चालू रह सकता है" ( क्रमांक १७७८४) । इस ८ १/२ पेंस से इंजनों को हमेशा ठीकठाक रखा जाता है। हम अपने इंजनों का पुनर्निर्माण करते हैं। यदि पूरा का पूरा इंजन खरीदा जाये, तो इसमें ज़रूरत से ज्यादा पैसा खर्च होगा फिर भी पहियों की जोड़ी, धुरी या इंजन का कोई भी हिस्सा, हमेशा होता ही है, जो काम दे जाता है, और इसलिए उससे व्यवहारतः नया इंजन बनाने की लागत सस्ती हो जाती है" (क्रमांक १७७६०)। समय में प्रति सप्ताह एक नया इंजन अथवा व्यवहारतः नया इंजन तैयार करता हूं, क्योंकि उसका वायलर, सिलिण्डर या ढांचा नया होता है।" ( क्रमांक १७८२३', आर्चिवाल्ड स्टुर्राक , Locomotive Superintendent of Great Northern Railway, आर० सी०, १८६७ में।) यहीं वात डिब्बों के बारे में भी है : “ समय के साथ इंजनों और गाड़ियों के स्टॉक की लगातार मरम्मत होती रहती है। कभी नये पहिये लगाये जाते हैं, तो कभी नया ढांचा। सबसे ज्यादा छीजनेवाले विभिन्न चलनशील पुरज़ों को क्रमशः नवीकृत किया जाता है; और इंजनों और गाड़ियों को तो मरम्मत के ऐसे ऋमिक सिलसिले के अधीन माना जा सकता है कि जिससे उनमें से बहुतों में मूल सामग्री का लेश भी नहीं रह जाता है लेकिन इस मामले में भी डिब्बों और इंजनों का पुराना सामान न्यूनाधिक दूसरी गाड़ियों और इंजनों में काम आ जाता है और वह रेलमार्ग से पूरी तरह कभी ग़ायव नहीं होता। इसलिए माना जा सकता है कि चल पूंजी निरन्तर पुनरुत्पादन की अवस्था में रहती है और जो पुनरुत्पादन स्थायी मार्ग के मामले में किसी विल्कुल ही अगले जमाने में ही होगा, जब समूचा रेलमार्ग फिर विछाया जायेगा, वह चल स्टॉक में वर्षानुवर्ष धीरे-धीरे होता रहता है। उसका अस्तित्व चिरन्तन है और वह सतत कायाकल्प की अवस्था में रहती है" (लार्डनर , उप० पृष्ठ ११५-११६ ) । लार्डनर ने यहां एक रेलमार्ग के सिलसिले में जिन प्रक्रिया का वर्णन किया है, वह किसी अलग कारखाने के मामले पर लागू नहीं होती, किन्तु वह किसी समूची उद्योग शाखा में 1