पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१६८

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स्थायी पूंजी तथा प्रचल पूंजी -

7 है कि व्यावहारिक परिकलन में उसे लाना आवश्यक न हो, और इसलिए यहां उसका प्रसंगवश उल्लेख मात्र पर्याप्त है।" (लार्डनर, उप० , पृष्ठ ३८, ३६ ।) यह बात दीर्घकालिक स्थायित्व के इसी प्रकार के अन्य सभी ढांचों पर भी लागू होती है, इसलिए इन मामलों में पेशगी पूंजी का उनकी छीजन के अनुरूप क्रमशः प्रतिस्थापन ज़रूरी नहीं होता ; बल्कि उत्पाद की कीमत में अनुरक्षण और मरम्मत की सालाना अौसत लागत का अंतरण ही आवश्यक होता है। यद्यपि, जैसा कि हम देख चुके हैं, स्थायी पूंजी की छीजन की प्रतिस्थापना के लिए वापस पानेवाले द्रव्य का एक बड़ा भाग वर्ष भर में अथवा इससे कम अवधि में भी अपने भौतिक रूप में, पुनःपरिवर्तित हो जाता है, फिर भी हर पूंजीपति को अपनी स्थायी पूंजी के उस भाग के लिए निक्षेप निधि की ज़रूरत होती है, जिसके पुनरुत्पादन का समय अनेक वर्ष बीत जाने पर ही आता है, किन्तु तव जिसे पूर्णतः प्रतिस्थापित करना ज़रूरी होता है। स्थायी पूंजी का काफ़ी संघटक अंश ऐसा होता है, जिसका क्रमशः पुनरुत्पादन उसकी असामान्य विशेषताओं के कारण सम्भव नहीं होता। इसके अलावा, जहां पुनरुत्पादन थोड़ा-थोड़ा करके इस तरह होता है कि पुराने ह्रासित भंडार में अलग अंतरालों पर नई सामग्री जुड़ जाती है, वहां उद्योग शाखा के अपने विशेष स्वरूप के अनुसार न्यूनाधिक मात्रा में पहले से द्रव्य संचय आवश्यक होता है - प्रतिस्थापन उसके बाद ही किया जा सकता है। इस कार्य के लिए कोई भी धनराशि उपयुक्त नहीं होगी ; इसके लिए एक निश्चित राशि आवश्यक होगी। यदि हम उधार पद्धति पर ध्यान दिये विना- जिसका विवेचन हम आगे करेंगे* - इस समस्या का अध्ययन द्रव्य के साधारण परिचलन के आधार पर करें , तो इस गति की क्रियाविधि इस प्रकार की होगी : यह दिखाया जा चुका है (Buch I, Kap. III, 3a) ** कि अगर समाज में उपलब्ध द्रव्य का एक भाग अपसंचय के रूप में निरन्तर परती पड़ा रहता है, जव कि उसका दूसरा भाग परिचलन के माध्यम का अथवा प्रत्यक्षतः प्रचल द्रव्य की तात्कालिक आरक्षण निधि के माध्यम का काम करता है, तो समग्न द्रव्य राशि के अपसंचय तथा परिचलन साधनों में वितरण का अनुपात लगातार वहलता रहता है। प्रस्तुत प्रसंग में जो द्रव्य अपेक्षाकृत बड़े पूंजीपति के हाथ में खासी बड़ी-बड़ी राशियों में अपसंचय के रूप में संचित होगा, वह स्थायी पूंजी के ख़रीदे जाने पर एकबारगी परिचलन में डाल दिया जायेगा। इसके बाद वह समाज में फिर अपसंचय तथा परिचलन माध्यम में बंट जायेगा। निक्षेप निधि के ज़रिये , जिसमें स्थायी पूंजी का मूल्य अपनी छीजन के अनुपात में अपने प्रारम्भ विन्दु पर वापस आता है, प्रचल द्रव्य का एक भाग फिर न्यूनाधिक अवधि के लिए उसी पूंजीपति के यहां अपसंचय बन जाता है, जिसका अपसंचय स्थायी पूंजी के ख़रीदे जाने पर परिचलन माध्यम में परिवर्तित हुआ था और उसके हाथ से निकल गया था। यह उस अपसंचय का निरन्तर परिवर्तनशील वितरण है, जो समाज में विद्यमान होता है और वारी-बारी से पहले परिचलन माध्यम का काम करता है और फिर अपसंचय के रूप में प्रचल द्रव्य राशि से अलग हो जाता है। उधार पद्धति के विकास के साथ-साथ, जो अनिवार्यतः अाधुनिक उद्योग और पूंजीवादी उत्पादन के विकास के समान्तर चलता है, यह द्रव्य फिर अपसंचय का नहीं, पूंजी का काम करता है, किन्तु अपने मालिक के हाथ में नहीं, दूसरे पूंजीपतियों के हाथ में , जिनके नियन्त्रण में वह अब रख दिया गया है। - • पूंजीवादी उधार पद्धति का विवेचन 'पूंजी' के तीसरे खण्ड के भाग ४ तथा ५ में किया गया है।-सं० हिन्दी संस्करण : अध्याय ३, ३ क ।-सं० V