पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१७१

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१७० पूंजी का प्रावत साथ यही स्थायी पूंजी उत्पादन प्रक्रिया में बनी रहती है, किन्तु अव उसका मूल्य ८०,००० पाउंड से घटकर ७२,००० पाउंड रह जाता है। इससे पहले कि पेशगी स्थायी पूंजी अपनी अवधि पार कर जाये और उत्पादों और मूल्यों के सृजक के रूप में कार्य करना बंद कर दे, जिसने कि उसका प्रतिस्थापन जरूरी हो जाये , उत्पादन प्रक्रिया को नौ साल और चलना होगा। इस तरह पेशगी पूंजी मूल्य को प्रावों के एक चक्र से गुज़रना होता है, जो वर्तमान प्रसंग में दस वार्षिक पावों का चक्र है और यह चक्र प्रयुक्त स्थायी पूंजी के जीवन काल तारा, अतः उसके पुन-त्पादन अथवा प्रावतं काल द्वारा निर्धारित होता है। , चूंकि मूल्य का परिमाण और प्रयुक्त स्थायी पूंजी का टिकाऊपन पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के विकास के साय विकसित होते हैं, इसलिए निवेश के प्रत्येक क्षेत्र विशेप में उद्योग का तथा प्रौद्योगिक पूंजी का जीवन काल बढ़कर अनेक वर्षों की अवधि का, मसलन, औसत रूप में दस साल का हो जाता है। जहां एक ओर स्थायी पूंजी का विकास इस जीवन काल को बढ़ाता है, वहीं दूसरी ओर उत्पादन साधनों में निरन्तर परिवर्तन होने से वह घटता भी है और यह परिवर्तन पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के विकास के साथ-साथ वरावर ज़ोर पकड़ता जाता है। इसका फल यह होता है कि नैतिक ह्रास के कारण भौतिक रूप में समाप्त होने से बहुत पहले उत्पादन साधनों का वदलना और निरन्तर प्रतिस्थापन आवश्यक हो जाता है। यह माना जा सकता है कि आधुनिक उद्योग की सर्वावश्यक शाखाओं में इस जीवन चक्र का औसत अव दस साल है। किन्तु यहां हमें यथातथ्य आंकड़ों से सरोकार नहीं है। इतना स्पष्ट है : अनेक वर्षों की अवधि में फैला हुया परस्पर सम्बद्ध अावों का चक्र, जिसमें पूंजी अपने स्थायी घटक द्वारा दृढ़तापूर्वक प्रावद्ध रहती है, नियतकालिक संकटों का भौतिक आधार प्रस्तुत करता है। इस चक्र के दौरान व्यवसाय मन्दी, मध्यम क्रियाशीलता, हड़बड़ाहट और संकट के क्रमिक दारों से गुजरता है। यह सत्य है कि जिन अवधियों में पूंजी निविष्ट की जाती है, उनमें बड़ा अन्तर होता है और समय के लिहाज से वे किसी भी तरह समकालिक नहीं होती, किन्तु संकट सदा नये और बड़े निवेश का प्रारम्भ विन्दु बनता है। इसलिए समूचे तौर पर समाज के दृष्टिकोण से , अगले आवर्त चक्र के लिए बहुत कुछ नया भौतिक अाधार प्रस्तुत हो जाता है। ५. पावर्तों का परिकलन करते हुए एक अमरीकी अर्थशास्त्री कहते हैं : में लगाई जानेवाली सारी की सारी पूंजी साल में अनेक बार श्रावर्तित अथवा परिचालित होती है। अन्य व्यवसायों में उसका एक भाग साल में एक से अधिक वार आवर्तित होता है और दूसरा भाग इससे कम। पूंजीपति को अपने लाभ का परिकलन इस प्रीसत अवधि से करना होगा,. ,.जो उसकी सारी पूंजी को उसके हाथों से गुजरने में अथवा एक परिक्रमण करने में लगती है। उदाहरण के लिए मान लीजिये कि किसी व्यवसाय विशेप में किसी व्यक्ति ने अपनी आधी पूंजी इमारतों और मशीनों में ऐसे लगा रखी है कि वह दस साल में एक बार ही पावर्त करती है और उसके औजारों, वगैरह की लागत के रूप में पूंजी का चौयाई हिस्सा दो साल में 22a 11 'कुछ व्यवसायों 22a “ शहरी उत्पादन दिनों के चक्र से बंधा होता है; इसके विपरीत देहाती उत्पादन aut qe 77 aan I" ( (Adam G. Müller, Die Elemente der Staatskunst, Berlin, 1809, II, S. 178))। उद्योग और कृपि के वारे में रूमानी धारा की यह सहज धारणा है।