पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१७३

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१७२ पूंजी का प्रावत . वगैरह में लगाई जाती है, वह तो मुश्किल से ही परिचलन करती प्रतीत हो सकती है। किन्तु वास्तव में ये सारी चीजें हमारे द्वारा उल्लिखित चीजों की तरह ही उत्पादन में योगदान करते हुए पूर्णतः खप जाती हैं और उनका पुनम्त्पादन जरूरी होता है, ताकि उत्पादक अपने कामों को जारी रख सके। अन्तर केवल यह होता है कि और चीजों के मुक़ाबले उनका उपभोग और पुनरुत्पादन धीमी गति से होता है... और उनमें निवेशित पूंजी का आवर्त सम्भवतः हर वीस या पचास साल में ही होता है" [पृष्ठ १४१-१४२] । स्क्रोप यहां प्रचल पूंजी के कुछ भागों के प्रवाह में वैयक्तिक पूंजीपति के लिए अदायगी की अवधियों और उधार की शर्तों से उत्पन्न अन्तर को पूंजी के स्वरूप से जनित पावों में अन्तर के साथ उलझा देते हैं। वह कहते हैं कि मजदूरी की अदायगी हफ़्तावार विक्री या बिलों की साप्ताहिक प्राप्तियों से की जानी चाहिए। यहां सबसे पहले इस बात पर ध्यान देना चा- हिए कि कुछ अन्तर तो स्वयं मजदूरी के सम्बन्ध में पैदा होते हैं और वे अदायगी की मीयाद की दीर्चता, अर्थात उस समय की दीर्घता कि जितने के लिए श्रमिक को पूंजीपति को उधार देना होता है , मजदूरी के हर हफ्ते , हर महीने , हर तीन महीने या हर छः महीने , आदि दिये जाने पर निर्भर करते हैं। इस प्रसंग में पहले प्रतिपादित यह नियम सही उतरता है कि 'सभी नियतकालिक भुगतानों के लिए आवश्यक अदायगी के साधनों का परिमाण" (अतः एक बार में पेशगी दी जानेवाली द्रव्य पूंजी का परिमाण) "उनकी अवधियों की दीर्घता के प्रतिलोम * अनुपात में होता है" (Buch I, Kap. III, 3b, S. 124)।* दूसरी बात यह है कि साप्ताहिक उत्पाद में केवल हप्ते भर के श्रम प्रक्रिया के दौरान जोड़ा गया नया मूल्य ही पूर्णतः प्रवेश नहीं करता है . वरन साप्ताहिक उत्पाद द्वारा उपयुक्त कच्चे माल और सहायक सामग्री का मूल्य भी प्रवेश करता है। यह मूल्य उस उत्पाद के साथ परिचालित होता है, जिसमें वह समाविष्ट है। उत्पाद की विक्री के जरिये वह द्रव्य रूप धारण कर लेता है और उसे उत्पादन के उन्हीं तत्वों में पुनःपरिवर्तित करना होता है। यह बात श्रम शक्ति पर उतना ही लागू होती है, जितना कच्चे माल और सहायक सामग्री पर। किन्तु हम पहले ही यह देख चुके हैं (अध्याय ६, अनुभाग २,१) कि उत्पादन के नरंतर्य के लिए उद्योग की विभिन्न शाखाओं के लिए भिन्न और व्यवसाय की एक ही शाखा के भीतर प्रचल पूंजी के इस तत्व के विभिन्न संघटक अंगों के लिए, जैसे कि कोयले और कपास के लिए, भिन्न उत्पादन साधनों की पूर्ति ज़रूरी है। अतः इस सामग्री को हमेशा नये सिरे से खरीदना ज़रूरी नहीं होता, यद्यपि इस सामग्री का वस्तुरूप में निरन्तर प्रतिस्थापन जरूरी होता है। क्रय की आवृत्ति उपलब्ध भंडार पर और उसके खाली होने में लगनेवाले समय पर निर्भर करती है। श्रम शक्ति के मामले में पूर्ति का इस तरह का संग्रहण सम्भव नहीं है। श्रम शक्ति में लगाये हुए पूंजी अंश का धन में पुनःपरिवर्तन कच्चे माल और सहायक सामग्री में निविष्ट पूंजी के पुनःपरिवर्तन के साथ-साथ होता है। किन्तु द्रव्य का एक और श्रम शक्ति में तथा दूसरी पोर कच्चे माल में पुनःपरिवर्तन इन दोनों घटकों के क्रय और अदायगी की विशेष अवधियों के द्वारा उत्पादन - . यह स्पष्टतः लेखनी की चूक है , क्योंकि अनुपात अनुलोम होता है, न कि प्रतिलोम ।-सं० 'हिन्दी संस्करण : अध्याय ३, ३ ख , पृष्ठ १६३ ।-सं० 4.