पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१७५

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१७४ अध्याय १० स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धान्त । प्रकृतितंत्रवादी और ऐडम स्मिथ केने की कृतियों में स्थायी तथा प्रचल पूंजी का भेद अपने को avances primitives आद्य पेशगी और avances annuelles [वार्पिक पेशगी] के भेद के रूप में प्रकट करता है। उन्होंने इस भेद को उत्पादक पूंजी में, उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष लगी हुई पूंजी के भीतर विद्यमान भेद के रूप में सही प्रस्तुत किया है। चूंकि वह खेती में लगाई गई पूंजी- फ़ार्मर की पूंजी- को ही एकमात्र वास्तविक उत्पादक पूंजी समझते हैं, इसलिए उन्होंने यह भेद केवल फ़ार्मर की पूंजी के लिए निरूपित किया है। यही एक पूंजी अंश के वार्पिक आवर्त काल का और दूसरे अंश के इससे अधिक ( दसवीय ) आवर्त काल का कारण है। विकास क्रम में प्रकृतितंत्रवादियों ने चलते-चलते यह भेद अन्य प्रकार की पूंजी पर, और सामान्यतः प्रौद्योगिक पूंजी पर भी लागू किया। वार्पिक पेशगी तथा अन्य दीर्घकालिक पेशगियों का भेद समाज के लिए इतना महत्वपूर्ण बना रहा है कि ऐडम स्मिथ के बाद भी अनेक अर्थशास्त्री इसी परिभाषा पर लौटकर आते रहते हैं। पेशगी की इन दोनों किस्मों में भेद पेशगी द्रव्य के उत्पादक पूंजी के तत्वों में रूपान्तरित हो जाने तक पैदा नहीं होता। यह ऐसा भेद है, जो केवल उत्पादक पूंजी के भीतर विद्यमान होता है। इसलिए द्रव्य का वर्गीकरण मूल पेशगी अथवा वार्पिक पेशगी में करने की वात केने के दिमाग में कभी नहीं उठती। उत्पादन के लिए पेशगी , अर्थात उत्पादक पूंजी के नाते दोनों हो द्रव्य की और बाजार में विद्यमान मालों की भी उलटी होती हैं। इसके अलावा उत्पादक पूंजी के इन दोनों तत्वों के अन्तर को केने ने सही तौर पर उनके तैयार उत्पाद के मूल्य में दाखिल होने के तरीके के भेद में , अतः उत्पाद के मूल्य के साथ उनके मूल्यों के परिचलन के तरीके के भेद में और इसलिए उनके प्रतिस्थापन अथवा उनके पुनरुत्पादन के तरीके के भेद में, जहां एक तत्व का मूल्य प्रति वर्ष पूर्णतः प्रतिस्थापित होता है, किन्तु दूसरे का अंशतः, और लम्बी अवधि के वाद होता है, बदला है। 23 23 Chat Sifarà Quesnay, Analyse du Tableau Economique (Physiocrates, éd. Daire, 1. partie, Paris, 1846)। वहां हम उदाहरण के लिए पढ़ते हैं: “वार्षिक पेशगी काश्त के श्रम पर होनेवाला वार्षिक खर्च है; इस पेशगी को उस मूल पेशगी से भिन्न समझना चाहिए, जो कृषि उद्यम की स्थापना की निधि का निर्माण करती है" (पृष्ठ ५६) । बाद के प्रकृतितंत्रवादियों की कृतियों में इस पेशगी को कभी-कभी सीधे पूंजी कहा जाता है :