पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१७६

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स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धांत । प्रकृतितंत्रवादी और ऐडम स्मिथ १७५ - " ऐडम स्मिथ ने केवल यह प्रगति की है कि संवर्गों का सामान्यीकरण किया है। उनके यहां वह अब पूंजी के किसी रूप विशेष पर, फ़ार्मर की पूंजी पर लागू नहीं होती, वरन उत्पादक पूंजी के हर रूप पर लागू होती है। अतः इससे यह सहज निष्कर्ष निकलता है कि वार्पिक पावतं और दो या अधिक वर्पो की अवधि के आवर्त में कृपि से उत्पन्न भेद का स्थान श्रावतं की विभिन्न अवधियों में सामान्य भेद ले लेता है। स्थायी पूंजी के एक आवर्त में सदा प्रचल पूंजी का एक से अधिक आवर्त समाहित होता है, चाहे प्रचल पूंजी का प्रावर्त काल कुछ भी हो, चाहे वह वार्पिक हो, वार्पिक से अधिक हो या वार्षिक से कम हो। इस प्रकार ऐडम स्मिथ के यहां avances annuelles प्रचल पूंजी में और avances primitives स्थायी पूंजी में बदल जाती हैं। किन्तु ऐडम स्मिथ की प्रगति संवर्गों के सामान्यीकरण तक ही सीमित है। उनका क्रियान्वयन केने की तुलना में बहुत ही निम्न स्तर का है। स्मिथ जिस भोंडे आनुभविक ढंग से अन्वेषण शुरू करते हैं, वह प्रारम्भ से ही स्पष्टता का अभाव उत्पन्न कर देता है : "पूंजी को दो भिन्न तरीकों से उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे कि उसके उपयोगकर्ता को आमदनी या मुनाफ़े की प्राप्ति हो' ((Wealth of Nations, खण्ड २, अध्याय १, पृष्ठ १८६, ऐवरडीन संस्करण , १८४८ * ) मूल्य निवेश के तरीके , जिनसे कि मूल्य पूंजी के कार्य कर सके , अपने मालिक को वेशी मूल्य दे सके, उतने ही पृथक और विभिन्न होते हैं, जितने कि पूंजी निवेश के क्षेत्र । प्रश्न उत्पादन की विभिन्न शाखाओं का है, जिनमें पूंजी का निवेश किया जा सकता है। प्रश्न अगर यों प्रस्तुत किया जाये, तो उसका आशय और भी अधिक होता है। उसमें यह प्रश्न भी शामिल होता है कि उत्पादक पूंजी की हैसियत से मूल्य का निवेश न भी हो, तो वह अपने मालिक के लिए किस तरह पूंजी का कार्य कर सकता है, यथा व्याज देनेवाली पूंजी का , व्यापारिक पूंजी का, इत्यादि। इस बिन्दु तक आते-आते हम विश्लेपण के वास्तविक विपय से कोसों दूर हट पाये हैं। वास्तविक विपय यह प्रश्न है कि उत्पादक पूंजी का उसके विभिन्न तत्वों में विभाजन उनके विभिन्न निवेश क्षेत्रों के अलावा उनके आवर्त को कैसे प्रभावित करता है। ऐडम स्मिथ इसके तुरंत बाद कहते हैं : “पहले तो उसका उपयोग चीजें उगाने , वनाने या ख़रीदने में, और उन्हें फिर मुनाफ़े पर बेचने में किया जा सकता है" [खण्ड २, . 1 Capital ou avances Dupont de Nemours, Maximes du Docteur Quesnay, ou Résumé de ses Principes d"Economie Sociale (Daire, खण्ड १, पृष्ठ ३९१); इसके अतिरिक्त ले बोन लिखते हैं : “मानव श्रम की कृतियों के अल्प अथवा दीर्घ स्थायित्व के फलस्वरूप किसी भी राष्ट्र के पास उसके वार्षिक पुनरुत्पादन से स्वतंत्र धन की काफ़ी भारी निधि होती है, यह निधि ऐसी पूंजी- दीर्घ अवधि में संचित और मूलतः उत्पादों में शोधित - का निर्माण करती है, जो निरन्तर सुरक्षित रहती और परिवर्धित होती है" (Daire, खंड २, पृष्ठ ६२८- ६२६) । तुर्गो ने पेशगी के लिए पूंजी शब्द का अधिक नियमित उपयोग किया है और कारखाने- दारों को पेशगी तथा फ़ार्मरों की पेशगी की तद्रूपता को और भी अधिक स्वीकार किया है (Turgot, Réflexions sur la Formation et la Distribution des Richesses, 1766) I 'जहां भी मार्स ने स्मिथ की कृति से उद्धरण का पृष्ठ संदर्भ नहीं दिया है, वहां गुरु gai An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Natio:is. A new edition in four volumes के लंदन में १८४३ में प्रकाशित संस्करण के संपादकीय पृष्ठ संदर्भ दिये गये हैं। इस तया वादवाले सभी उद्धरणों को इस संस्करण से मिलाया गया है।-सं०