पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१७७

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१७६ पूंजी का प्रावत - पृष्ठ २५४ ] । वह यहां हमें इसके अलावा और कुछ नहीं बताते कि पूंजी खेती में, हस्तउद्योग में और व्यापार में लगाई जा सकती है। इसलिए वह केवल पूंजी निवेश के विभिन्न क्षेत्रों की बात करते हैं, जिनमें व्यापार जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं, जहां पूंजी का उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्षतः समावेश नहीं होता , अतः जो उत्पादक पूंजी का कार्य नहीं करती। ऐसा करने में ऐडम स्मिथ उन बुनियाद को तज देते हैं, जिस पर प्रकृतितंत्रवादी उत्पादक पूंजी के भीतर के भेदों और ग्रावर्त पर उनके प्रभाव को अाधारित करते हैं। यही नहीं। उन्होंने व्यापारी पूंजी को ऐसी समस्या में उदाहरणस्वल्प चुना है, जिसका एकमात्र सम्बन्ध उत्पादक पूंजी के भीतर उत्पाद की और मूल्य की निर्माण प्रक्रिया के अंतर से है, और जो अपनी वारी में पूंजी के यावर्त और पुनरुत्पादन में अंतर पैदा करता है। वह आगे कहते हैं : “इस तरह उपयुक्त पूंजी जब तक अपने मालिक के पास रहती है या उसी रूप में बनी रहती है, उसे कोई आमदनी या मुनाफ़ा नहीं देती" [ खण्ड २, पृष्ठ २५४ ] | "इस तरह उपयुक्त पूंजी ! किन्तु स्मिथ खेती में, उद्योग में लगाई हुई पूंजी की वात करते हैं, और वह आगे हमें बताते हैं कि इस तरह उपयुक्त पूंजी स्थायी तथा प्रचल पूंजी में बंट जाती है ! अतः पूंजी का इस तरह का निवेश उसे स्थायी अथवा प्रचल पूंजी नहीं " बना सकता। . अथवा क्या उनका यह तात्पर्य है कि माल पैदा करने और मुनाफ़े पर उसे बेचने के लिए प्रयुक्त पूंजी को उसकें माल में रूपांतरण के बाद वेचा जाना होगा और इस विक्री के जरिये उसे पहले तो विक्रेता के हाथ से ग्राहक के हाथ में पहुंचना होगा, और दूसरे , अपने वस्तुरूप - माल - से बदलकर द्रव्य रूप में आना होगा, जिससे जब तक वह या तो अपने मालिक के पास रहती है या उसी रूप में बनी रहती है, उसके किसी काम की नहीं होती? उस हालत में सारी बात का निचोड़ यही होगा : जो पूंजी मूल्य पहले उत्पादक पूंजी के रूप में उत्पादन प्रक्रिया के रूप विशेप में कार्य करता था, वह अब माल पूंजी और द्रव्य पूंजी की तरह परिचलन प्रक्रिया के रूप विशेप में कार्य करता है, जहां वह अब न स्थायी पूंजी रह जाता है, न प्रचल पूंजी। और यह वात समान रूप से मूल्य के उन तत्वों पर, जो कच्चे माल और सहायक सामग्री द्वारा, अर्थात प्रचल पूंजी द्वारा जोड़े जाते हैं, और उन तत्वों पर भी लागू होती है, जो श्रम उपकरणों की छीजन द्वारा अतः स्थायी पूंजी द्वारा जोड़े जाते हैं। इस ढंग से भी हम स्थायी और प्रचल पूंजी के अंतर तक नहीं पहुंच पाते। और आगे : "व्यापारी का माल तब तक आय या मुनाफ़ा नहीं देता, जब तक वह उसे धन के बदले में बेच नहीं लेता, और यह धन भी उसका माल से विनिमय किये जाने तक अधिक नहीं देता। उसकी पूंजी निरन्तर उसके पास से एक रूप में जाती रहती और दूसरे रूप में लौटकर आती रहती है और वह इस तरह के परिचलन अथवा क्रमिक विनिमय द्वारा ही उसे कोई मुनाफ़ा दे सकती है। अतः इस तरह की पूंजी को प्रचल पूंजी कहना बहुत मुनासिब होगा" [खण्ड २, पृष्ठ २५४ ] । ऐडम स्मिथ यहां जिसे प्रचल पूंजी कहते हैं, उसे मैं परिचलन पूंजी कहना चाहूंगा- ऐसे रूप में पूंजी, जो परिचलन प्रक्रिया के , विनिमय के माध्यम से रूप परिवर्तन ( पदार्थ और स्वामित्व का परिवर्तन ) के उपयुक्त है। अतः वह माल पूंजी और द्रव्य पूंजी है, जो अपने उत्पादन प्रक्रिया के उपयुक्त रूप से उत्पादक पूंजी के रूप से भिन्न है। ये ऐसी भिन्न कोटियां नहीं हैं, जिनमें प्रौद्योगिक पूंजीपति अपनी पूंजी वांट देता है, वरन उसी पेशगी पूंजी मूल्य के .. , . .