पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१८०

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स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धांत। प्रकृतितंत्रवादी और ऐडम स्मिथ १७६ पूंजी के . . . . 3 और कच्चे माल से , तथा दूसरी ओर श्रम उपकरणों से शुल्यात करते हैं। किन्तु घटक हैं, क्योंकि उनमें मूल्य की राशि का निवेश हुआ है, जिसे पूंजी की तरह कार्य करना है। इस सीमा तक वे भौतिक तत्व हैं, उत्पादक पूंजी के अस्तित्व के रूप, अर्थात उत्पादन प्रक्रिया में कार्यशील पूंजी के अस्तित्व के रूप हैं। किन्तु इनमें से एक भाग को स्थायी क्यों कहा जाता है ? इसलिए कि “पूंजी के कुछेक हिस्से का व्यवसाय के उपकरणों में नियतन आवश्यक है [खण्ड २, पृष्ठ २५४ ] । किन्तु दूसरा हिस्सा भी नियत है- मज़दूरी और कच्चे माल में। किन्तु मशीनें और “व्यवसाय के अन्य उपकरण या ऐसी ही चीजें मालिक वदले बिना या आगे परिचालित हुए विना आय या मुनाफ़ा देती हैं। अतः ऐसी पूंजी को स्थायी पूंजी कहना बहुत उपयुक्त होगा" [खण्ड २, पृष्ठ २५४ ] । खनन उद्योग को उदाहरण के तौर पर ले लीजिये। यहां कुछ भी कच्चा माल नहीं लगता, क्योंकि श्रम विषय , यथा तांबा, प्राकृतिक उपज है, जिसे पहले श्रम द्वारा प्राप्त करना होता है। यह तांबा , जिसे पहले प्राप्त किया जाता है, प्रक्रिया की उपज होता है, जो वाद. को माल अथवा माल पूंजी के रूप में परिचालित होता है, उत्पादक पूंजी का तत्व नहीं बनता। उसके किसी भी मूल्यांश का निवेश उसमें नहीं होता। दूसरी ओर उत्पादक प्रक्रिया के दूसरे तत्व भी- श्रम शक्ति और सहायक सामग्री, यथा कोयला, पानी, इत्यादि - उत्पाद में भौतिक रूप से प्रवेश नहीं करते। कोयला पूरी तरह खप जाता है और केवल उसका मूल्य उत्पाद में दाखिल होता है, वैसे ही जैसे मशीन , वगैरह के मूल्य का एक भाग उसमें दाखिल होता है। अन्त में जहां तक उत्पाद , तांवे , का सम्बन्ध है, श्रमिक उससे उतना ही स्वतंत्र रहता है , जितना कि मशीन । अन्तर केवल यह है कि अपनी मेहनत के जरिये जो मूल्य वह पैदा करता है, वह अव तांबे के मूल्य का संघटक अंश बन जाता है। अतः इस उदाहरण में उत्पादक पूंजी का एक भी घटक मालिक" नहीं बदलता, न उनमें से कोई घटक और आगे परिचालित होता है, क्योंकि उनमें कोई भी उत्पाद में भौतिक रूप से दाखिल नहीं होता। इस मामले में प्रचल पूंजी का क्या होता है ? ऐडम स्मिथ की अपनी ही परिभाषा के अनुसार तांबे की खान में जिस समूची पूंजी का उपयोग होता है, वह स्थायी पूंजी के अलावा और कुछ नहीं है। इसके विपरीत एक अन्य उद्योग ले लीजिये, ऐसा, जो कच्चे माल का उपयोग करता है, जिससे उसके उत्पाद के पदार्थ का निर्माण होता है और जिसमें सहायक सामग्री का उपयोग होता है , जो भौतिक रूप में - जलाऊ कोयले की तरह केवल अमुक मात्रा के मूल्य रूप में नहीं - उत्पाद में प्रवेश करती है । उत्पाद , यथा सूत का स्वामित्व उस कच्ची सामग्री, कपास के स्वामित्व के साथ बदलता है, जिससे उसका निर्माण हुआ है और वह उत्पाद उत्पादन प्रक्रिया से उपभोग प्रक्रिया में चला जाता है। किन्तु जब तक कपास उत्पादक पूंजी के तत्व का कार्य करती है, तब तक उसका मालिक उसे बेचता नहीं है, वरन उसे प्रक्रिया में डालता है, उससे सूत बनाता है। वह उससे जुदा नहीं होता। अथवा स्मिथ की अनगढ़ , भ्रांत और सतही शब्दावली का व्यवहार करें, तो वह " उससे जुदा होकर, उसके मालिक वदलने से , अथवा उसे परिचालित करने से" कोई मुनाफ़ा नहीं कमाता। वह अपनी सामग्री को वैसे ही परिचालित नहीं होने देता , जैसे अपनी मशीनों को। वह उत्पादन प्रक्रिया में वैसे ही नियत होती है, जैसे कताई की मशीनें और कारखाने की इमारतें। दरअसल , उत्पादक पूंजी के एक भाग का कोयले , कपास, आदि के रूप में वैसे ही निरन्तर नियतन आवश्यक है, जैसे कि श्रम उपकरणों के. रूप में। अन्तर केवल यह है कि मसलन जो कपास, कोयला, वगैरह सूत की एक हफ्ते की पैदावार के लिए -