पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१८१

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पूंजी का प्रावत - अथवा - जरूरी होते हैं, वे साप्ताहिक उत्पाद के निर्माण में हमेशा पूरी तरह खप जाते हैं, जिससे कि उनको जगह नये कोयले , कपाल , वगैरह की पूर्ति करना आवश्यक होता है। दूसरे शब्दों में उतादक पूंजी के ये तत्व यद्यपि वस्तुरूप में एक से बने रहते हैं, फिर भी उनमें सदा समान प्रकार के नये नमूने समाहित होते रहते हैं, जब कि वही अलग कताई की मशीन , कारखाने की वही अलग इमारत समान प्रकार के नये नमूने द्वारा प्रतिस्थापित हुए विना साप्ताहिक उत्पादनों की पूरी शृंखला में भाग लेने का अपना काम जारी रखती है। उत्पादक पूंजी के तत्व होने के कारण उसके सभी संघटक अंश उत्पादन प्रक्रिया में निरन्तर नियत रहते हैं, क्योंकि यह प्रक्रिया उनके बिना चल ही नहीं सकती। और उत्पादक पूंजी के सभी तत्व - वह चाहे स्थायी हो, चाहे प्रचल - उत्पादक पूंजी की हैसियत से , समान रूप में परिचलन पूंजी के, अर्थात माल पूंजी तथा द्रव्य पूंजी के सामने आते हैं। श्रम शक्ति के साथ भी यही होता है। उत्पादक पूंजी के एक भाग का उसमें निरन्तर नियत होते रहना ज़रूरी है, और जिस तरह वही पूंजीपति सभी जगह एक निश्चित अवधि के लिए उन्हीं मशीनों का उपयोग करता है, उसी तरह उसी श्रम शक्ति का भी प्रयोग किया जाता है। श्रम शक्ति और मशीनों में यहां यह अन्तर नहीं है कि मशीनें एक ही बार में ख़रीद ली जाती हैं ( किस्तों में अदायगी होने पर ऐसा नहीं होता), जव कि श्रमिक एक ही वार में नहीं ख़रीदा जाता। बल्कि अन्तर इस बात में है कि श्रमिक द्वारा व्यय किया हुअा श्रम उत्पाद के मूल्य में पूर्णतः प्रवेश करता है, जब कि मशीन का मूल्य केवल खंडशः प्रवेश करता है। स्मिथ जब स्थायी पूंजी के प्रचल पूंजी के प्रतिमुख होने की बात करते हैं, तो वह भिन्न- भिन्न परिमापात्रों को उलझा देते हैं : “ इस तरह उपयुक्त पूंजी जब तक अपने मालिक के पास रहती है या उसी रूप में बनी रहती है, उसे कोई आमदनी या मुनाफ़ा नहीं देती" [खण्ड २, पृष्ठ २५४ ] । वह माल के मात्र औपचारिक रूपान्तरण को, जिससे उत्पाद , माल पूंजी , को परिचलन क्षेत्र में गुजरना होता है और जिससे मालों का स्वामित्व बदलता है, भौतिक रूपांतरण के स्तर पर ही रख देते हैं, जिससे उत्पादक पूंजी के विभिन्न तत्वों को उत्पादन प्रक्रिया के दौरान गुजरना होता है। वह मालों के द्रव्य में और द्रव्य के मालों में रूपान्तरण अथवा क्रय-विक्रय को उत्पादन तत्वों के उत्पाद में रूपान्तरण के साथ अंधाधुंध गड्डमड्ड कर देते हैं। प्रचल पूंजी के लिए उन्होंने व्यापारी पूंजी को उदाहरणस्वरूप लिया है, जो मालों से द्रव्य में और द्रव्य से मालों में परिवर्तित होती है : मा-द्र- मा का रूप परिवर्तन माल परिचलन के लिए लाक्षणिक है। किन्तु क्रियारत औद्योगिक पूंजी के लिए परिचलन के भीतर यह रूप परिवर्तन इसका द्योतक है कि द्रव्य जिन मालों में पुनःपरिवर्तित होता है, वे उत्पादन के तत्व ( श्रम शक्ति तथा श्रम उपकरण ) हैं और इसलिए रूप परिवर्तन प्रौद्योगिक पूंजी के कार्य को निरन्तर बना देता है, उत्पादन प्रक्रिया को निरन्तर प्रक्रिया अथवा पुनरुत्पादन प्रक्रिया बना देता है। यह सारा रूप परिवर्तन परिचलन के भीतर होता है। इसी रूप परिवर्तन के माध्यम से मालों का वास्तविक स्वामित्वांतरण होता है। किन्तु इसके विपरीत उत्पादन प्रक्रिया के अन्तर्गत उत्पादक पूंजी में होनेवाले रूपान्तरण केवल श्रम प्रक्रिया के लिए लाक्षणिक रूपा- न्तरण होते हैं और वे उत्पादन तत्वों को वांछित उत्पाद में बदलने के लिए अावश्यक होते हैं। ऐडम स्मिय इसी तथ्य से चिपके रहते हैं कि उत्पादन साधनों का एक भाग (स्वयं श्रम उपकरण) अपना भौतिक रूप बदले बिना. श्रम प्रक्रिया में काम करता है (जैसा कि वह भ्रान्तिपूर्ण ढंग से कहते हैं : "अपने मालिक को मुनाफ़ा देते हैं"), और क्रमशः ही छीजता