पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१८२

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स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धांत । प्रकृतितंत्रवादी और ऐडम स्मिथ १८१ + + 1 है ; जब कि दूसरा भाग , सामग्री, परिवर्तित होता है और इस परिवर्तन के ही कारण उत्पादन साधनों के रूप में अपना लक्ष्य प्राप्त करता है। श्रम प्रक्रिया में उत्पादक पूंजी के तत्वों के श्राचरण में यह जो भेद है, वह स्थायी और अस्थायी पूंजी का भेद नहीं, उसका प्रस्थान विन्दु मात्र है। यह निष्कर्ष इस तथ्य से ही निकलता है कि यह भिन्न आचरण उत्पादन की सभी- पूंजीवादी या गैरपूंजीवादी - पद्धतियों में समान मात्रा में होता है। किन्तु मूल्य का उत्पाद में संचरण भौतिक तत्वों के इस भिन्न आचरण के अनुरूप होता है और अपनी वारी में वह उत्पाद की विक्री द्वारा मूल्य के प्रतिस्थापन के अनुरूप होता है। यहां जिस अंतर की बात है, वह यही है। अतः पूंजी स्थायी इसलिए नहीं कहलाती कि वह श्रम उपकरणों में नियत है, वरन इसलिए कि उसके मूल्य का एक भाग , जो श्रम उपकरणों पर खर्च किया जाता है, उनमें नियत रहता है, जब कि दूसरा भाग, उत्पाद के मूल्य के संघटक अंश के रूप में परिचालित होता है। "यदि उसका (स्टॉक का) उपयोग भावी मुनाफ़ा पाने के लिए किया जाये , तो वह या तो उसके ( मालिक के ) पास रहते हुए यह मुनाफ़ा प्राप्त करेगा, या उससे जुदा होकर । एक मामले में वह स्थायी और दूसरे में प्रचल पूंजी है" (पृष्ठ १८६) । जो वात सबसे पहले यहां ध्यान खींचती है, वह सामान्य पूंजीपति के दृष्टिकोण से जनित मुनाफ़े की भोंडी प्रानुभविक धारणा है, जो ऐडम स्मिथ की बेहतर अंतरंग समझ के पूर्णतः प्रतिकूल है। सामग्री की क़ीमत और श्रम शक्ति की कीमत ही उत्पाद की कीमत में प्रतिस्थापित नहीं होती , वरन मूल्य का वह भाग भी प्रतिस्थापित होता है, जो घिसने और छीजने के कारण श्रम उपकरणों से उत्पाद को अन्तरित होता है। किसी भी स्थिति में इस प्रतिस्थापन से मुनाफ़ा प्राप्त नहीं होता। इससे कि किसी माल के उत्पादन के लिए पेशगी दिया मूल्य पूर्णतः अथवा । खंडशः, एक ही बार में अथवा क्रमशः उस माल की विक्री द्वारा प्रतिस्थापित होता है, प्रतिस्थापन के समय और तरीके के अलावा और किसी चीज़ में फ़र्क नहीं पड़ता। किन्तु जो चीज़ दोनों में शामिल है, उसे - मूल्य के प्रतिस्थापन को- वह किसी भी स्थिति में वेशी मूल्य के निर्माण में नहीं बदल सकता। इस सव की जड़ में यही आम धारणा है कि चूंकि उत्पाद जब तक विके नहीं, जव तक उसका परिचलन न हो, तव तक वेशी मूल्य का सिद्धिकरण नहीं होता, इसलिए उसका जन्म केवल विक्री से , परिचलन से होता है। दरअसल मुनाफ़े की उत्पत्ति का यह भिन्न तरीक़ा इस मामले में इस तथ्य को व्यक्त करने का एक ग़लत तरीक़ा भर है कि उत्पादक पूंजी के विभिन्न तत्व भिन्न-भिन्न काम देते हैं और उत्पादक तत्वों के रूप में वे श्रम प्रक्रिया में भिन्न-भिन्न तरीके से काम करते हैं। अन्त में इस भेद का उद्गम श्रम प्रक्रिया अथवा स्वप्रसार में नहीं, स्वयं उत्पादक पूंजी के कार्य में नहीं देखा जाता, वरन उसे अात्मगत रूप में केवल वैयक्तिक पूंजीपति से संबद्ध माना जाता है, जिसके लिए पूंजी का एक भाग एक प्रकार से उपयोगी उद्देश्य पूरा करता है, तो दूसरा भाग यही काम दूसरे प्रकार से करता है। दूसरी ओर केने ने इन भेदों का स्रोत पुनरुत्पादन प्रक्रिया और उसकी आवश्यकताओं में देखा है। यह प्रक्रिया निरन्तर जारी रहे, इसके लिए आवश्यक है कि सालाना पेशगी मूल्य प्रति वर्ष पूर्णतः वार्षिक उत्पाद के मूल्य से प्रतिस्थापित हो । उधर जिस पूंजी का निवेश हुग्रा है, उसके मूल्य को केवल खंडश: प्रतिस्थापित करना जरूरी होगा, जिससे उसका पूर्ण प्रतिस्थापन , अतः उसका पूर्ण पुनरुत्पादन , केवल एक अवधि में , यथा दस वर्षों में ( उसी प्रकार की नई सामग्री द्वारा) आवश्यक होगा। फलतः ऐडम स्मिथ केने से भी बहुत नीचे सावित होते हैं।