पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१८४

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स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धांत। प्रकृतितंत्रवादी और ऐडम स्मिथ १८३ "उनका 1 का अर्थ क्या है। इन शब्दों का अर्थ यह है कि पूंजी के दोनों भाग उत्पाद के निर्माता का काम करते हैं। इसके बाद ऐडम स्मिथ निम्नलिखित उदाहरण देते हैं : "फ़ार्मर की पूंजी का जो भाग कृपि उपकरणों में लगाया जाता है, वह स्थायी पूंजी होता है और जो भाग उसके कामगारों के भरण-पोपण और मजदूरी में लगाया जाता है, वह प्रचल पूंजी होता है" ( यहां स्थायी और प्रचल पूंजी का भेद सही तौर पर केवल परिचलन के भेद पर , उत्पादक पूंजी के विभिन्न घटकों के प्रावों पर लागू किया गया है)। “एक से वह उसे अपने ही अधिकार में रखकर और दूसरे से उससे जुदा होकर मुनाफा कमाता है। उसके कमकर पशुओं का दाम अथवा मूल्य वैसे ही स्थायी पूंजी है, जैसे काश्त के उपकरणों का मूल्य स्थायी पूंजी है" ( यहां वह फिर सही बात कहते हैं कि यह भेद मूल्य पर लागू होता है, न कि भौतिक तत्व पर); भरण-पोषण" ( कमकर पशुओं का भरण-पोषण) "वैसे ही प्रचल पूंजी है, जैसे कामगारों का भरण-पोषण है। फ़ार्मर कमकर पशुओं को अपने पास रखकर और उनके भरण-पोषण से जुदा होकर अपना मुनाफ़ा कमाता है।" ( कमकर पशुओं का चारा अपने पास रखता है, उसे वेचता नहीं है। उसका वह पशुओं को खिलाने में इस्तेमाल करता है, जब कि खुद पशुओं को श्रम उपकरणों की तरह इस्तेमाल करता है। अन्तर केवल इतना है : कमकर पशुओं के भरण-पोषण पर जो चारा लगता है, वह पूरी तरह खप जाता है और उसकी खेती की उपज से अथवा उपज की विक्री से नये चारे द्वारा प्रतिस्थापना करनी होती है, स्वयं पशुओं की प्रतिस्थापना तभी होती है, जब उनमें से कोई एक काम लायक नहीं रह जाता। ) “जिन पशुओं को खरीदा जाता है और जांगर के लिए नहीं, विक्री के लिए मोटाया जाता है, उनका दाम और भरण- पोपण दोनों प्रचल पूंजी होते हैं। फ़ार्मर उनसे जुदा होकर अपना मुनाफा कमाता है" [खण्ड २, पृष्ठ २५५-२५६ ] । (प्रत्येक माल उत्पादक , अतः इसी प्रकार पूंजीवादी. उत्पादक , .अपनी उत्पादन प्रक्रिया के परिणाम , उत्पाद को बेचता है, किन्तु इसी से यह उत्पाद उसकी उत्पादक पूंजी का स्थायी या प्रचल घटक नहीं बन जाता। यह उत्पाद अब उस रूप में आ जाता है , जिसमें वह उत्पादन प्रक्रिया के बाहर निकाला जाता है और अब उसे माल पूंजी की तरह काम करना होता है। मोटाये पशु उत्पादन प्रक्रिया में कच्चे माल का काम करते हैं, कमकर पशुओं की तरह श्रम उपकरणों का नहीं। अतः मोटाये पशु उपज में पदार्थ की तरह प्रवेश करते हैं, और उनका सारा मूल्य सहायक सामग्री [ चारा ] के मूल्य की ही तरह उसमें दाखिल होता है। इसलिए मोटाये पशु उत्पादक पूंजी का प्रचल भाग हैं, किन्तु इसलिए नहीं कि विक्रीत माल - मोटाये पशुओं- का वही भौतिक रूप है, जो कच्चे माल - उन पशुओं- का है, जो अभी मो- टाये नहीं गये हैं। यह वात आकस्मिक है। साथ ही ऐडम स्मिथ इस उदाहरण से देख सकते थे कि यह उत्पादन तत्व का भौतिक रूप नहीं, वरन उत्पादन प्रक्रिया में उसका कार्य है, जो यह निर्धारित करता है कि उसमें समाविष्ट मूल्य स्थायी है या प्रचल।) "बीज का सारा मूल्य भी यथार्थतः स्थायी पूंजी है। यद्यपि वह खेत और खलिहान के बीच आता-जाता रहता है, फिर भी वह मालिक नहीं वदलता , और इसलिए यथार्थतः परिचालित नहीं होता। फ़ार्मर उसकी विक्री से नहीं, उसकी वृद्धि से मुनाफा कमाता है" [खण्ड २ पृष्ठ २५६ ] । इस स्थल पर स्मिथी भेद की सारी विवेकहीनता प्रकट हो जाती है। उनके अनुसार यदि " मालिकों की वदली" न होती, तो वीज स्थायी पूंजी हो जाता, अर्थात यदि वीजं का वार्षिक उपज में से प्रत्यक्ष प्रतिस्थापन होता है, उसमें से निकाला जाता है, तो। दूसरी ओर, यदि .