पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१९५

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१६४ पूंजी का प्रावर्त यह निरर्थक है कि श्रम शक्ति का मूल्य द्रव्य रूप में पेशगी दिया जाता है या प्रत्यक्षतः निर्वाह साधनों के रूप में। अलवत्ता पूंजीवादी उत्पादन के अन्तर्गत दूसरी बात अपवाद ही हो सकती है। प्रचल पूंजी की यह परिभाषा कि वह श्रम शक्ति पर व्यय किये पूंजी मूल्य की निर्धारक है-प्रकृतितंत्रवादियों के पूर्वाधार के विना यह प्रकृतितांत्रिक परिभाषा स्थापित करके ऐडम स्मिथ ने ख शक़िस्मती से अपने अनुयाइयों में इस समझ को मार दिया कि पूंजी का जो भाग श्रम शक्ति पर खर्च किया जाता है, वह परिवर्ती पूंजी होता है। उन्होंने अन्यत्र जिन अधिक गम्भीर और सही विचारों का विकास किया था, उनका चलन तो नहीं हुआ, किन्तु उनकी इस भ्रान्ति का अवश्य हो गया। वस्तुतः उनके वाद के अन्य लेखक तो इससे भी आगे चले गये। वे प्रचल पूंजी की इसी परिभाषा को निर्णायक मानने के लिए तैयार नहीं थे कि श्रम शक्ति में निविष्ट पूंजी अंश स्थायी पूंजी के मुक़ावले प्रचल पूंजी होता है। उन्होंने श्रमिकों के निर्वाह साधनों में निविष्ट होने को ही प्रचल पूंजी की तात्विक परिभाषा बना दिया। इसके साथ यह सिद्धान्त भी स्वाभाविकतः ही सम्बद्ध है कि श्रम निधि - जिसमें आवश्यक निर्वाह साधन होते हैं - का एक निश्चित परिमाण होता है, जो एक और सामाजिक उत्पाद में श्रमिकों के भाग को भौतिक रूप में सीमित करती है, किन्तु दूसरी ओर जिसे श्रम शक्ति की खरीद में पूरी तरह व्यय करना होता है। 24 मूल्य की स्वप्रसार प्रक्रिया में श्रम शक्ति की भूमिका को समझने की अपनी ही राह में ऐडम स्मिथ ने कहां तक रोड़े अटकाये हैं, वह इस निम्नलिखित वाक्य से सावित होता है, जहां वह प्रकृतितंत्रवादियों की तरह मजदूरों के श्रम को कमकर पशुओं के श्रम के साथ एक ही स्तर पर रख देते हैं : “उसके (फ़ार्मर के ) कमकर नौकर ही नहीं, उसके कमकर पशु भी उत्पादक श्रमिक हैं" (खण्ड २, अध्याय ५, पृष्ठ २४३ ) । कार्ल मार्क्स , 'पूंजी', हिन्दी संस्करण, खण्ड १, पृष्ठ ६८३-६८६ । - सं० N है