पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६६ स्थायी तया प्रचल पूंजी के सिद्धांत। रिकार्डो मूल्य , अपने सिद्धांत का आधार मानते हैं। बेशी मूल्य के निर्माण का उद्भव स्वयं पूंजी को नहीं, बल्कि पूंजी के उत्पादन के एक विशेष क्षेत्र , कृषि , को माना जाता है। २. परिवर्ती पूंजी की परिभाषा में, और इसलिए किसी भी मूल्य राशि को पूंजी में परिवर्तित करने में मुख्य बात यह है कि पूंजीपति एक निश्चित , दिये हुए (और इस अर्थ में स्थिर ) मूल्य परिमाण का एक मूल्य सृजक शक्ति से के उत्पादन, उसके स्वप्रसार के लिए एक परिमाण से विनिमय करता है। पूंजीपति मजदूर की अदायगी द्रव्य में करता है या निर्वाह साधनों में उसका इस मूल परिभाषा पर कोई भी असर नहीं पड़ता। इससे केवल पूंजी- पति के दिये पेशगी मूल्य के अस्तित्व का रूप बदलता है. जो एक स्थिति में द्रव्य रूप में, जिससे मजदूर बाज़ार में अपने निर्वाह साधन ख़रीदता है और दूसरी स्थिति में निर्वाह साधनों के रूप में विद्यमान होता है, जिनका वह सीधे उपभोग करता है। वस्तुतः विकसित पूंजीवादी उत्पादन इस पूर्वकल्पना पर आधारित होता है कि मजदूर की अदायगी द्रव्य में की जायेगी। जैसे वह सामान्यतः उत्पादन प्रक्रिया के परिचलन प्रक्रिया द्वारा अस्तित्व में आने की और इसलिए मुद्रा व्यवस्था के होने की पूर्वकल्पना करता है। किंतु वेशी मूल्य के सृजन का- अतः पेशगी मूल्य राशि के पूंजीकरण का -स्रोत न तो मजदूरी का द्रव्य रूप है न वस्तुरूप में दी गई मजदूरी का रूप है और न वह श्रम शक्ति की खरीद पर लगाई गई पूंजी ही है। उसका स्रोत है मूल्य का मूल्य सृजक शक्ति से विनिमय, स्थिर परिमाण का परिवर्ती परिमाण में रूपांतरण। श्रम उपकरणों की न्यूनाधिक स्थिरता उनके टिकाऊपन की मात्रा, अतः उनके भौतिक गुण पर निर्भर करती है। अन्य परिस्थितियां समान रहें, तो वे जल्दी या देर से घिस जायेंगे, अतः अपने टिकाऊपन के अनुसार स्थायी पूंजी के रूप में कम या अधिक समय तक कार्य करेंगे। किंतु ऐसा क़तई नहीं होता कि टिकाऊपन के इस भौतिक गुण के कारण ही वे स्थायी पूंजी की तरह कार्य करते हों। धातु कारखानों में कच्चा माल उतना ही टिकाऊ होता है, जितना वे मशीनें, जो उत्पादन में इस्तेमाल की जाती हैं और वह इन मशीनों के काठ या चमड़े जैसे बहुत से संघटक अंशों से ज्यादा टिकाऊ होता है। फिर भी कच्चे माल का काम देनेवाली धातु प्रचल पूंजी का अंग होती है, जब कि कार्यरत श्रम उपकरण संभवतः उसी धातु के. बने होने पर भी स्थायी पूंजी का अंग होते हैं। फलतः कोई धातु कभी स्थायी पूंजी के कभी प्रचल पूंजी के संवर्ग में रखी जाती है, तो ऐसा उसकी वास्तविक , भौतिक प्रकृति के कारण नहीं होता, न इस कारण होता है कि वह अपेक्षाकृत जल्दी घिसती है या देर में, बल्कि यह भेद उत्पादन प्रक्रिया में उसकी भूमिका के कारण ही होता है, जहां वह एक स्थिति में श्रम की वस्तु होती है, और दूसरी स्थिति में श्रम का उपकरण । उत्पादन प्रक्रिया में श्रम उपकरण का कार्य यह आवश्यक बना देता है कि औसत रूप में वह उपकरण न्यूनाधिक काल तक निरंतर पुनरावृत्त श्रम प्रक्रियाओं में काम करता रहे। अतः उसका कार्य ही यह निर्धारित कर देता है कि वह जिस पदार्थ का बना हुआ है, वह कमोवेश टिकाऊ हो। किंतु वह जिस सामग्री का बना है, उसका टिकाऊपन अपने आप उसे स्थायी पूंजी नहीं बना देता। वही पदार्थ जब कच्चा माल होता है, तव प्रचल पूंजी वन जाता है और जो अर्थशास्त्री एक ओर माल पूंजी तथा उत्पादक पूंजी के भेद को प्रचल पूंजी तथा स्थायी पूंजी के भेद के साथ उलझाते हैं, उनके लिए वही पदार्थ, वही मशीन उत्पाद के नाते प्रचल पूंजी और श्रम उपकरण के नाते स्थायी पूंजी होता है। यद्यपि श्रम उपकरण जिस पदार्थ का बना होता है, उसका टिकाऊपन उसे स्थायी पूंजी 1 ,