पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२०२

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स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धांत। रिकार्डो २०१ . w - तथा श्रम सामग्री प्रादि में निवेशित पूंजी/ अंश को श्रम उपकरणों में नियत वनी रहनेवाली पूंजी के मुक़ावले प्रचल पूंजी का चरित्र प्रदान करता है। इसके विपरीत , यदि प्रचल पूंजी की उस गौण परिभाषा को, जो उसके साथ-साथ स्थिर पूंजी के एक अंश ( कच्चे माल और सहायक सामग्री ) पर भी लागू होती है, श्रम शक्ति में लगाये हुए पूंजी अंश की मुख्य परिभाषा मान लें- यानी यह कि उसमें लगाया हुआ मूल्य उस उत्पाद को पूर्णतः अंतरित हो जाता है, जिसके सृजन में वह ख़र्च होती है, न कि स्थायी पूंजी के मामले की तरह क्रमशः और थोड़ा-थोड़ा करके और फलतः उत्पाद की विक्री द्वारा उसका पूर्ण प्रतिस्थापन ज़रूरी, होता है, तो मजदूरी में लगाये हुए पूंजी अंश में भी इसी प्रकार वास्तविक रूप में क्रियाशील श्रम शक्ति नहीं, वरन वे भौतिक तत्व समाहित होने चाहिए, जिन्हें मज़दूर अपनी मजदूरी से ख़रीदता है, अर्थात उसमें सामाजिक माल पूंजी का वह भाग समाहित होगा, जो श्रमिक के उपभोग में पहुंच जाता है, अर्थात निर्वाह साधन। उस हालत में स्थायी पूंजी में अपेक्षाकृत धीरे-धीरे विकारीय श्रम उपकरण समाहित होंगे और इसलिए जिनका प्रतिस्थापन अपेक्षाकृत धीरे-धीरे करना होता है और श्रम शक्ति में लगाई हुई पूंजी में निर्वाह साधन समाहित होते हैं, जिनका प्रतिस्थापन ज्यादा जल्दी-जल्दी करना होता है। फिर भी अधिक या कम विकारीय के वीच विभेदक रेखा बहुत अस्पष्ट और धुंधली है। "श्रमिक जिन भोजन-वस्त्रों की खपत करता है, जिन इमारतों में वह काम करता है, जिन औज़ारों से उसके श्रम में सहायता मिलती है, वे सभी विकारीय प्रकृति के होते हैं। फिर भी ये विभिन्न पूंजियां जितने समय चल सकती हैं, उसमें बहुत बड़ा अंतर होता है : जहाज़ की अपेक्षा भाप इंजन ज्यादा चलेगा, जहाज़ मजदूर के कपड़ों की अपेक्षा ज्यादा चलेगा और मजदूर के कपड़े उसके द्वारा खाये जानेवाले भोजन की अपेक्षा ज़्यादा चलते हैं। 27 रिकार्डो मज़दूर जिस घर में रहता है, घर के फर्नीचर, छुरी, कांटे, तश्तरी जैसे उपभोग साधनों, आदि का उल्लेख करना भूल जाते हैं, जिन सभी में टिकाऊपन का वही गुण होता है, जो श्रम के उपकरणों में होता है। वही चीजें , उसी प्रकार की चीजें , एक स्थान पर उपभोग वस्तुएं बन जाती हैं और दूसरे स्थान पर श्रम उपकरण । रिकार्डो के कथनानुसार भेद इस प्रकार है : “पूंजी शीघ्र विकारीय है और वारवार पुनरुत्पादन की अपेक्षा करती है या धीरे-धीरे खपत में आती है, इसी के अनुसार उसे प्रचल पूंजी या स्थायी पूंजी के अंतर्गत रखा जाता है।" इसमें वह यह टिप्पणी देते हैं : “यह ऐसा विभाजन है, जो आवश्यक नहीं है, और जिसमें सीमांकन यथार्थतापूर्वक नहीं किया जा सकता।" 20 इस प्रकार हम एक बार पुनः सानंद प्रकृतितंत्रवादियों के शिविर में आ पहुंचे हैं, जहां avances annuelles और avancés primitives भेद उपभोग को और फलतः नियोजित पूंजी के विभिन्न पुनरुत्पादन कालों को भी दर्शाता है। फ़र्क इतना ही है कि उनके लिए जो सामाजिक उत्पादन की एक महत्वपूर्ण परिघटना है और परिचलन प्रक्रिया के सिलसिले में जिसका वर्णन Tableau économique [आर्थिक सारणी] में .. 128 .. का काल जाता 27 Ricardo, Principles, etc., p. 26. os वही। 2° वही।