पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२०३

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२०२ पूंजी का प्रावर्त है, वह यहां एक आत्मगत और रिकार्डो के अपने शब्दों में ही फ़ालतू भेद बन जाता है। चूंकि श्रम में निवेशित पूंजी अंश श्रम उपकरणों में निवेशित पूंजी अंश से मान पुनरुत्पादन काल और इसलिए परिचलन काल की दृष्टि से भिन्न होता है और एक भाग में निर्वाह साधनों और दूसरे में श्रम साधनों का समावेश होता है, जिससे प्रथमोक्त अन्तोक्त से केवल अपने अधिक शीघ्र विकारीय होने के कारण भिन्न होते हैं, इसलिए स्वयं पहले समूह के भीतर ही टिकाऊपन की विभिन्न माताएं होने की वजह से स्वाभाविक तौर पर श्रम शक्ति में निवेशित पूंजी तथा उत्पादन साधनों में निवेशित पूंजी का सारा differentia specifica [विशिष्ट भेद] मिट जाता है। यह वात रिकार्डो के मूल्य सिद्धांत का और उसी प्रकार उनके लाभ सिद्धांत का,. जो वास्तव में वेशी मूल्य का सिद्धांत है, पूर्णतः खंडन करती है। आम तौर से वह स्थायी तथा प्रचल पूंजी के भेद पर इसी सीमा तक विचार करते हैं कि जहां तक उत्पादन की विभिन्न शाखाओं में निवेशित समान रूप में बड़ी पूंजियों में दोनों के भिन्न-भिन्न परिमाण मूल्य के नियम को प्रभावित करते हैं, खास तौर से जहां तक इन परिस्थितियों के फलस्वरूप मज- दूरी के बढ़ने या घटने का असर कीमतों पर पड़ता है। किंतु इस सीमित अनुसंधान के दायरे में भी वह स्थायी तथा प्रचल पूंजी के स्थिर तथा परिवर्ती पूंजी के साथ अपने उलझाव के कारण बहुत गंभीर भूलें करते हैं। दरअसल वह अपनी सारी छानबीन की शुरूआत ही एकदम गलत आधार पर करते हैं। पहले तो जहां तक श्रम शक्ति में लगाये हुए पूंजी मूल्य के अंश को प्रचल पूंजी के अंतर्गत रखने का सवाल है, वहां स्वयं प्रचल पूंजी की परिभापाएं ग़लत ढंग से विकसित की गयी हैं, ख़ास तौर से वे परिस्थितियां, जो श्रम में लगाये हुए पूंजी अंश को इस मद में डालती हैं। दूसरी बात यह कि यह उस परिभापा का, जिसके अनुसार श्रम में निवेशित पूंजी अंश परिवर्ती पूंजी होता है, उस परिभाषा के साथ उलझाव है, जिसके अनुसार वह स्थायी पूंजी के प्रतिमुख प्रचल पूंजी होता है। आरंभ से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रम शक्ति में निवेशित पूंजी की प्रचल अथवा अस्थिर पूंजी होने की परिभाषा गौण परिभाषा है, जो उत्पादन प्रक्रिया में उसके differentia specifica को पूरी तरह से मिटा देती है। कारण यह कि इस परिभाषा में एक ओर श्रम में निवेशित पूंजियों का वही महत्व है, जो कच्चे माल , वगैरह में निवेशित पूंजियों का है। जो वर्गीकरण स्थिर पूंजी के एक भाग को परिवर्ती पूंजी से तद्रूप कर देता है, वह स्थिर पूंजी के प्रतिमुख परिवर्ती पूंजी के differentia specifica से सरोकार नहीं रखता। दूसरी ओर श्रम में लगाये हुए पूंजी अंश सचमुच श्रम उपकरणों में निवेशित पूंजी अंशों के प्रतिमुख होते हैं, किंतु इस प्रसंग में जरा भी नहीं कि ये अंश मूल्य के उत्पादन में विल्कुल अलग-अलग तरीकों से दाखिल होते हैं, वल्कि इस प्रसंग में कि दोनों ही अपना मूल्य उत्पाद को अंतरित करते हैं, लेकिन अलग-अलग मीयादों में। इन सभी प्रसंगों में प्रश्न यह है कि माल की उत्पादन प्रक्रिया में लगाया गया कोई भी दिया हुअा मूल्य - वह चाहे मजदूरी हो, चाहे कच्चे माल की या श्रम उपकरणों की कीमत हो-किस प्रकार उत्पाद को अंतरित होता है, अतः किस प्रकार उत्पाद द्वारा परिचालित किया जाता है और उत्पाद की विक्री द्वारा अपने प्रारंभ बिंदु पर लौटता या प्रतिस्थापित होता है। यहां एकमात्र अंतर "किस प्रकार" में, मूल्य के अंतरण के और इसलिए उसके परिचलन के भी ख़ास ढंग में निहित है। 1