पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२०६

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स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धांत । रिकार्डो २०५ - ऐडम स्मिथ के पैदा किये उलझाव से ये नतीजे निकले हैं : १. स्थायी और प्रचल पूंजी के भेद को उत्पादक पूंजी और माल पूंजी के भेद से उलझा दिया जाता है। उदाहरण के लिए, मशीन जब बाज़ार में माल की हैसियत से होती है, तव उसे प्रचल पूंजी और जव उत्पादन प्रक्रिया में समाविष्ट कर ली जाती है, तव स्थायी पूंजी माना जाता है। इसके अलावा यह तय करना क़तई नामुमकिन होता है कि एक तरह की पूंजी को दूसरी तरह की पूंजी के मुकावले क्यों ज्यादा स्थायी अथवा ज्यादा प्रचल माना जाना चाहिए। २. समस्त प्रचल पूंजी को मजदूरी में लगाई गई या लगाई जानेवाली पूंजी के तद्रूप माना जाता है। जॉन स्टुअर्ट मिल* तथा अन्य लोगों की कृतियों में ऐसा ही है। ३. पहले वर्टन , रिकार्डो, तथा अन्य लोगों ने परिवर्ती और स्थिर पूंजी के जिस भेद को ग़लती से प्रचल और स्थायी पूंजी का भेद समझ लिया था, उसे पूरी तरह से अंतोक्त भेद में ही परिणत कर दिया जाता है, उदाहरण के लिए, रैमजे की कृति में, जहां कच्चा माल, आदि सभी उत्पादन साधन तथा श्रम उपकरण भी स्थायी पूंजी हैं और केवल मजदूरी पर खर्च की जानेवाली पूंजी प्रचल है । * लेकिन चूंकि भेद को इस रूप में परिणत किया जाता है, इसलिए स्थिर और परिवर्ती पूंजी का वास्तविक भेद नहीं समझा जाता है। ४. वाद के ब्रिटिश , खास तौर से स्कॉट अर्थशास्त्री, मैकलेउड ***, पैटरसन **** आदि जो सभी चीजों को क्लर्कों जैसी वर्णनातीत संकीर्ण दृष्टि से देखते हैं, स्थायी और प्रचल पूंजी के भेद को मांग पर देय और मांग पर अदेय धन में बदल देते हैं। . -

  • J. St. Mill, Essays on Some Unsettled Questions of Political Economy,

London, 1844, p. 164.- सं०

    • G. Ramsay, An Essay on the Distribution of Wealth, Edinburgh, 1833,

pp. 21-24.-सं०

    • H. D. MacLeod. The Elements of Political Economy, London, 1858, pp.

76-80.-सं०

        • R. H. Patterson, The Science of Finance. A Practical Treatise, Edinburgh

and London, 1868, pp. 129-144. - 0