पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२०८

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कार्य अवधि २०७ यह स्पप्ट है कि यदि निवेशित पूंजियां वरावर हों, तो उत्पादक क्रिया की अवधि में अंतर से प्रावर्त वेग में भी अंतर पैदा हो जायेगा, दूसरे शब्दों में जितने समय के लिए कोई पूंजी पेशगी लगाई जाती है, उसमें अंतर उत्पन्न हो जायेगा। मान लीजिये एक कताई मिल और एक इंजन कारखाने में समान राशि की पूंजी लगी है, उनकी स्थिर पूंजी से उनकी परिवर्ती पूंजी का और इसी तरह पूंजियों के स्थायी तथा प्रचल भागों का अनुपात भी एक सा है, और अंततः दोनों का कार्य दिवस भी वरावर है और उसका आवश्यक तथा वेशी श्रम के वीच विभाजन भी एक सा है। इसके अलावा परिचलन प्रक्रिया से उत्पन्न होनेवाली और प्रस्तुत प्रसंग को किसी प्रकार प्रभावित न करनेवाली अन्य सभी परिस्थितियों को निराकृत करने के लिए हम यह भी मान लेते हैं कि सूत और इंजन आर्डर मिलने पर बनाये जाते हैं, और तैयार उत्पाद की सुपुर्दगी पर उनका भुगतान हो जायेगा। हप्ता ख़त्म होने पर तैयार सूत की सुपुर्दगी पर कताई मिल मालिक को प्रचल पूंजी पर अपनी लागत की पुनः प्राप्ति हो जाती है ( यहां वेशी मूल्य विवेचन में नहीं रखा जा रहा है ), और इसी तरह सूत के मूल्य में समा- विष्ट स्थिर पूंजी की छीजन की भी पुनःप्राप्ति हो जाती है। इसलिए वह उसी पूंजी से उसी परिपथ को नये सिरे से शुरू कर सकता है। उसकी पूंजी ने अपना आवर्त पूरा कर लिया है। दूसरी तरफ़ इंजन निर्माता लगातार तीन महीने तक हर हफ्ते मजदूरी और कच्चे माल पर नई-नई पूंजी लगाता रहेगा, और तीन महीने बीतने पर ही, इंजन की सुपुर्दगी पर ही प्रचल पूंजी, जो इस बीच एक ही पण्य वस्तु निर्माण के लिए एक ही उत्पादक क्रिया में क्रमश: लगाई गई थी, फिर एक बार ऐसे रूप में आ पाती है कि अपने परिपथ को नये सिरे से शुरू कर सके। इन तीन महीनों में उसकी मशीनों की छीजन का प्रतिस्थापन भी अव जाकर ही संभव होता है। एक प्रसंग में ख़र्च हफ़्तावार है, दूसरे में खर्च साप्ताहिक व्यय का बारह गुना है। अन्य सभी परिस्थितियां एक जैसी मान लें, तो एक के पास जितनी प्रचल पूंजी होनी चाहिए, दूसरे के पास उसकी वारह गुनी होनी चाहिए। लेकिन यहां यह महत्वहीन है कि प्रति सप्ताह पेशगी दी पूंजियां वराबर हैं। पेशगी पूंजी की राशि जो भी हो, एक प्रसंग में वह केवल हफ्ते भर के लिए पेशगी दी जाती है, और दूसरे प्रसंग में वारह हफ्ते के लिए और इसके पहले कि इस पूंजी का नई क्रिया के लिए उपयोग किया जा सके, इसके पहले कि उसके साथ वही क्रिया दोहराई जा सके अथवा कोई भिन्न क्रिया शुरू की जा सके , यह आवश्यक है कि ये दोनों काल यथाक्रम बीत जायें। आवर्त वेग में अथवा वैयक्तिक पूंजी को जितने समय के लिए पेशगी देना होगा, जिससे कि उसी पूंजी मूल्य को नई श्रम अथवा स्वप्रसार प्रक्रिया में नियोजित किया जा सके , उसकी दीर्घता में यह भेद निम्नलिखित परिस्थितियों से उत्पन्न होता है : मान लिया कि इंजन या कोई और मशीन बनाने में १०० कार्य दिवस लगते हैं। जहां तक सूत तैयार करने या इंजन बनाने में लगे मजदूरों का संबंध है, दोनों ही प्रसंगों में १०० कार्य दिवस एक असतत ( विछिन्न) परिमाण हैं , जिनमें हमारी कल्पना के अनुसार १०० क्रमिक , दस घंटे की अलग-अलग श्रम प्रक्रियाएं सन्निहित हैं । लेकिन जहां उत्पाद - मशीन - का संबंध है , १०० कार्य दिवस एक सतत परिमाण हैं, १,००० कार्य घंटे का एक ही कार्य दिवस, उत्पादन की एक ही संबद्ध क्रिया हैं । मैं ऐसे कार्य दिवस को, जिसमें संवद्ध कार्य दिवसों का न्यूनाधिक बहुसंख्यक अनुक्रम होता है, कार्य अवधि कहता हूं। जव हम कार्य दिवस की बात करते हैं, तब हमारा प्राशय उस कार्य काल से होता है, जिसके दौरान मजदूर को रोजाना अपनी श्रम शक्ति खर्च करनी