पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२१०

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कार्य अवधि २०६ प्रचल पूंजी के दूसरे भाग, कच्चे माल और सहायक सामग्री के साथ भी है। उत्पाद पर श्रम की एक के बाद दूसरी तह जमती जाती है। उत्पादन प्रक्रिया में न सिर्फ़ ख़र्च की गई श्रम शक्ति का मूल्य , वरन वेशी मूल्य भी उत्पाद को निरंतर अंतरित होता है। किंतु यह उत्पाद अधूरा है, उसे अभी तैयार माल का रूप नहीं मिला है, अतः अभी वह परिचलन नहीं कर सकता। तह दर तह कच्चे माल और सहायक सामग्री से उत्पाद को अंतरित होनेवाले पूंजी मूल्य पर भी यही वात लागू होती है। उत्पाद की विशिष्ट प्रकृति द्वारा अथवा उसके निर्माण से प्राप्त किये जानेवाले लाभदायी परिणाम द्वारा निर्धारित कार्य अवधि की दीर्घता के अनुसार प्रचल पूंजी ( मजदूरी, कच्चे माल और सहायक सामग्री) के . निरंतर अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होती है, जिसका कोई भाग परिचलन करने और इसलिए उसी क्रिया के नवीकरण का संवर्धन करने में समर्थ रूप में नहीं होता है। इसके विपरीत प्रत्येक भाग जायमान उत्पाद के घटक के रूप में उत्पादन क्षेत्र में लगातार जकड़ा, उत्पादक पूंजी के रूप में बंधा पड़ा रहता है। लेकिन आवर्त काल उत्पादन काल तथा पूंजी के परिचलन काल के योग के वरावर होता है। अतः उत्पादन काल का प्रवर्धन आवर्त वेग को उसी तरह घटाता है जिस तरह परिचलन काल का प्रवर्धन। किंतु प्रस्तुत प्रसंग में निम्नलिखित दो वातों को ध्यान में रखना चाहिए : पहली : उत्पादन क्षेत्र में देर तक बने रहना। उदाहरण के लिए, श्रम , कच्चे माल वगैरह के लिए पहले हफ़्ते पेशगी दी गयी पूंजी तथा स्थायी पूंजी द्वारा उत्पाद को अंतरित मूल्यांश भी तीन महीने की समूची अवधि तक उत्पादन क्षेत्र में जकड़े रहते हैं और जायमान , अभी तक अधूरे उत्पाद में ही समाविष्ट होने के कारण वे माल की हैसियत से परिचलन में नहीं पहुंच सकते। दूसरी : चूंकि उत्पादक क्रिया संपन्न करने के लिए आवश्यक कार्य अवधि तीन महीने चलती है, और यथार्थ में वह एक संबद्ध श्रम प्रक्रिया ही होती है, इसलिए पूर्वगत राशि में हफ़्ता दर हफ़्ता लगातार प्रचल पूंजी की नई मात्रा जोड़नी होती है। अतः कार्य अवधि की दीर्घता के अनुसार सिलसिलेवार पेशगी दी जानेवाली अतिरिक्त पूंजी का कुल योग भी बढ़ता जाता है। हमने माना है कि कताई और मशीन निर्माण में समान आकार की पूंजियां लगाई गई हैं, इन पूंजियों में स्थिर और परिवर्ती पूंजी के, स्थायी और प्रचल पूंजी के अनुपात समान हैं, कार्य दिवसों की लंबाई एक सी है, - संक्षेप में यह कि कार्य अवधि की दीर्घता को छोड़कर और सभी परिस्थितियां समान हैं। पहले हफ्ते में दोनों के लिए ख़र्च एक जैसा होता है, किंतु कताई मिलवाले का उत्पाद वेचा जा सकता है, और विक्री की प्राप्ति का नई श्रम शक्ति, नया कच्चा माल , वगैरह ख़रीदने में उपयोग किया जा सकता है; संक्षेप में उत्पादन उसी पैमाने पर फिर चालू किया जा सकता है। दूसरी ओर मशीन निर्माता पहले हफ्ते में खर्च की प्रचल पूंजी को तीन महीने बीतने के पहले, जब उसका उत्पाद तैयार होगा, धन में परि- वर्तित नहीं कर सकता और उसकी सहायता से काम को फिर से शुरू नहीं कर सकता। इसलिए पहले तो निवेशित पूंजी के समान मात्राओं में प्रत्यावर्तन में ही फ़र्क है। लेकिन दूसरी वात यह है कि तीन महीने के दौरान कताई और मशीन निर्माण दोनों में ही उत्पादक पूंजी की समान राशियां काम में लाई जाती हैं, फिर भी सूत निर्माता के मामले में पूंजी परिव्यय का परिमाण मशीन निर्माता से नितांत भिन्न होता है। कारण यह कि एक जगह उसी पूंजी 14-1180