पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२१२

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कार्य अवधि २११ ही सट्टेबाज़ी से वनाता था, अव जरूरी है कि वह जमीन का बहुत बड़ा प्लाट ख़रीदे ( जिसका महाद्वीपीय भाषा में मतलब है कि साधारणतः निन्यानवे वर्षों के लिए उसे भाड़े पर ले), उस पर १००-२०० मकान बनाये और इस तरह ऐसा कारोवार शुरू करे, जो उसके साधनों की सीमा के बीस से पचास गुना तक वाहर होगा। पूंजी रेहन के जरिये इकट्ठा की जाती है और इमारतें जैसे-जैसे बनती जाती हैं, वैसे ख़र्च के लिए ठेकेदार के पास पैसा पहुंचता जाता है। अब अगर कोई संकट आ जाये और पेशगी क़िस्तों की अदायगी में वाधा पड़ जाये, तो आम तीर से सारा कारोवार चौपट हो जाता है। वहुत हुआ, तो अच्छे दिन आने तक मकान अध- वने खड़े रहते हैं ; बहुत बुरा हुआ, तो आधी लागत पर नीलाम कर दिये जाते हैं। आज सट्टेबाज़ी पर बनाये विना, और वह भी बड़े पैमाने पर, कोई ठेकेदार अपना धंधा नहीं चला सकता। मात्र निर्माण कार्य से होनेवाला मुनाफ़ा बहुत ही कम है। मुख्य लाभ उसे किराया ज़मीन वढ़ाने से, निर्माणस्थली के सुविचारित चयन और कुशल उपयोग से हासिल होता है। मकानों की मांग का सट्टेबाजी से पूर्वानुमान करने के इस तरीके से ही लगभग सारे के सारे वेलग्रेविया तथा टाईवर्निया और लंदन के आस-पास अनगिनत हज़ारों बंगले बनाये गये हैं (Report of the Select Committee on Bank Acts का संक्षेप, भाग १, १८५७, Evidence, प्रश्न ५४१३-५४१८, ५४३५-५४३६) । लंबी कार्य अवधि और बड़े पैमाने पर क्रियाओं की अपेक्षा करनेवाले उद्यमों का चलाना पूरी तरह पूंजीवादी उत्पादन के दायरे में तब तक नहीं आता कि जब तक पूंजी का संकेंद्रण बहुत आगे न बढ़ चुका हो और , दूसरी ओर उधार व्यवस्था का विकास पूंजीपति के लिए अपनी पूंजी के बदले दूसरों की पूंजी को पेशगी लगाने और इस तरह उसे जोखिम में डालने का सुविधाजनक विकल्प पैदा नहीं कर देता। कहना न होगा कि उत्पादन के लिए पेशगी दी जानेवाली पूंजी उसकी हो जो उसका उपयोग कर रहा है और चाहे न हो, इसका आवर्त वेग पा काल पर कोई भी असर नहीं पड़ता। सहकार्य , श्रम विभाजन , मशीनों का उपयोग, आदि जैसी परिस्थितियां अलग-अलग कार्य दिवस के उत्पाद को बढ़ाती हैं और साथ ही उत्पादन की संवद्ध क्रियाओं की कार्य अवधि को घटाती भी हैं। इस प्रकार मशीन मकान , पुल , वगैरह बनाने के समय को घटाती हैं ; पके हुए अनाज को तैयार उपज में बदलने के लिए आवश्यक कार्य अवधि को कटाई और गाहन मशीनें कम करती हैं। जहाज़ निर्माण में तरक्क़ी के फलस्वरूप काम की रपतार में तेजी ने जहाजरानी में निवेशित पूंजी के आवर्त काल को कम कर दिया है। लेकिन कार्य अवधि को और इस तरह प्रचल पूंजी के पेशगी दिये जाने के समय को घटानेवाली प्रगति के साथ-साथ आम तौर पर स्थायी पूंजी का व्यय भी वढ़ता जाता है। दूसरी तरफ़ उत्पादन की कुछ शाखाओं में सहकार्य का प्रसार होने से ही कार्य अवधि घट सकती है। मजदूरों की विराट वाहिनियों को रेलमार्ग बनाने में लगाकर और इस तरह अनेक स्थलों पर एकसाथ काम को हाथ में लेकर उसे जल्दी पूरा किया जा सकता है। इस मामले में पेशगी पूंजी में वृद्धि से आवर्त काल घट जाता है। पूंजीपति के मातहत अधिक उत्पादन साधन और अधिक श्रम शक्ति एकजुट करना जरूरी होगा। इस तरह कार्य अवधि के घटने का संबंध अधिकतर इस कम किये समय के लिए पेशगी दी पूंजी की वृद्धि से होता है। पेशगी की मीयाद जितना ही कम होती है, पेशगी पूंजी राशि उतना ही ज्यादा होती है। इसलिए यहां इस बात को याद करना ज़रूरी है कि सामाजिक पूंजी 140