पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२२२

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उत्पादन काल २२१ 1 3 जरूरतों को पूरा करने का ही ध्यान नहीं रखना चाहिए, वरन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि असामान्य मामलों के लिए समुचित अतिरिक्त संचय हो। यदि अव यह पता चले कि केवल अपनी पैदावार से मांग पूर्णतः पूरी नहीं की जा सकती, तो पहले इस बात पर विचार करना जरूरी हो जाता है कि जो कमी रह गई है, वह दूसरी उपज (अनुकल्पों) से पूरी की जा सकती है या नहीं, अथवा कम पड़नेवाली चीजों की जगह दूसरी चीजें सस्ती मिल सकती हैं या नहीं। मसलन, सूखी घास की कमी पड़ जाये, तो उसकी कमी कंदों और भूसे के मिश्रण से दूर की जा सकती है। सामान्यतः ऐसे मामलों में विभिन्न फ़सलों के यथार्थ मूल्य और वाज़ार भाव को हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए, और उपयोग का तदनुरूप नियमन किया जाना चाहिए। उदाहरणतः, अगर जई का भाव चढ़ा हुआ है, और उसके मुकाबले मटर और रई मंदी हैं, तो घोड़ों को जई के एक भाग की जगह मटर या रई देना और इस तरह बचायी जई को बेच देना लाभदायी रहेगा" (वही, पृष्ठ ३००)। पूर्ति के निर्माण का विवेचन करते समय पहले कहा गया था कि संभाव्य उत्पादक पूंजी की एक निश्चित , छोटी-बड़ी मात्रा की, अर्थात उत्पादन के लिए उद्दिष्ट उत्पादन साधनों की छोटी-बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है, जिसे उत्पादन प्रक्रिया में धीरे-धीरे शामिल होने के लिए उपलब्ध होना चाहिए। प्रसंगतः यह कहा गया था कि निश्चित परिमाण का कोई व्यवसाय या पूंजीवादी उद्यम हो, तो इस उत्पादक पूर्ति की मात्रा उसके नवीकरण की छोटी-बड़ी कठिनाइयों, पूर्ति की मंडियों की आपेक्षिक समीपता, परिवहन और संचार की सुविधाओं, आदि पर निर्भर करती है। ये सारी परिस्थितियां इसे प्रभावित करती हैं कि उत्पादक पूर्ति के रूप में जो पूंजी सुलभ होनी चाहिए, उसकी अल्पतम मात्रा क्या हो , अतः जितनी मीयाद के लिए पूंजी पेशगी दी जानी चाहिए उसे और पूंजी की जो राशि एक बार में पेशगी दी जानी चाहिए, उसे प्रभावित करती हैं। यह राशि , जिसका प्रभाव आवर्त पर भी पड़ता है, उस न्यूनाधिक अवधि द्वारा निर्धारित होती है, जिसके दौरान उत्पादक पूर्ति के रूप में प्रचल पूंजी मात्र संभाव्य उत्पादक पूंजी के रूप में बंधी रहती है। दूसरी ओर, चूंकि यह गतिहीनता द्रुत प्रतिस्थापन की न्यूनाधिक संभावना , बाज़ार की परिस्थितियों , अादि पर निर्भर है, इसलिए वह अपने को परिचलन काल से , परिचलन क्षेत्र से संबद्ध परिस्थितियों से बाहर निकाल लेती है। "फिर, दस्ती औज़ार, चलनी, टोकरी, रस्से , ओंगन , कीलें, वगैरह , जैसे सारे उपकरणों और सहायक साधनों को कहीं आस-पास अविलंब ख़रीदने की सुविधा जितनी कम हो, उनको तत्काल प्रतिस्थापित करना संभव होना चाहिए। आख़िरी वात यह कि औज़ारों की सारी पूर्ति की हर जाड़े में सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए और जो नई चीजें खरीदनी हों, या जिनकी मरम्मत ज़रूरी हो, उनका इंतज़ाम तुरंत किया जाना चाहिए। साजसामान की पूर्ति थोड़ी मात्रा में हो या ज्यादा में इसका फैसला मुख्यतः स्थानीय परिस्थि- तियों के अनुसार किया जाता है। जहां भी आस-पास भंडार या कारीगर न हों, वहां उन स्थानों की अपेक्षा बड़ी मात्रा में पूर्ति रखना आवश्यक होगा, जहां वे वहीं पर या पास-पास मिल जाते हैं। किंतु यदि आवश्यक पूर्ति एक बार में बड़ी मात्रा में प्राप्त की जाये, तो अन्य परिस्थितियां समान होने पर साधारणतः सस्ते दाम खरीदने का लाभ मिल जाता है, वशर्ते कि इसके लिए उपयुक्त समय चुना जाये। यह सही है कि इससे आवर्ती कार्यशील पूंजी - .

  • इस पुस्तक के पृष्ठ १३०-१३५ देखें। -सं०