पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२२७

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२२६ पूंजी का प्रावर्त प्रत्यावर्तन के अनेक ऋमिक अवधियों में फैल जाने से परिचलन का और इसलिए यावर्त का भी कुल समय घट जाता है। उत्पादन के विद्यमान स्थलों के अधिक उत्पादन करना शुरू करने , बड़े उत्पादन केंद्र बनने के साथ सबसे पहले परिवहन साधनों के कार्य की प्रावृत्ति ही बढ़ती है, उदाहरण के लिए, रेलगाड़ियों की संख्या। यह विकास पहले से मौजूद बाजार की ओर, अर्थात उत्पादन और आबादी के बड़े केंद्रों की ओर, निर्यात बंदरगाहों, वगैरह की ओर उन्मुख होता है। दूसरी ओर यातायात की इन विशेषकर बड़ी सुविधाओं के कारण और इनके परिणामस्वरूप पूंजी यावर्त में तेजी आने के कारण (चूंकि वह परिचलन काल पर निर्भर करता है ) उत्पादन केंद्रों तथा बाजारों-दोनों ही का तेजी से संकेंद्रण होने लगता है। कुछ स्थानों पर लोगों और पूंजी की विराट राशियों के इस प्रकार तेज़ हुए संकेंद्रण के साथ-साथ पूंजी की इन राशियों का थोड़े से आदमियों के हाथों में संकेंद्रण होने लगता है। इसके साथ ही परिवहन साधनों में रूपांतरणों से उत्पादन स्थानों और बाजारों की सापेक्ष स्थितियों में आये परिवर्तनों के फलस्वरूप उत्पादन स्थानों और बाजारों का पुरानी जगहों का बदलना और नई जगहों पर कायम होना भी देखा जा सकता है। हो सकता है कि कोई उत्पादन स्थल , जो राजमार्ग या नहर के किनारे स्थित होने से किसी समय विशेष सुविधाजनक स्थिति में रहा था, अब अपने को किसी मान बगली रेलमार्ग पर ही पाये , जिस पर गाड़ियां अपेक्षाकृत दीर्घ अंतरालों से चलती हैं, जव कि कोई दूसरा स्थान , जो पहले यातायात के प्रमुख मार्गों से दूर था, अव कई रेलमार्गों का संगम वन जाये। यह दूसरा स्थान अव उन्नति कर रहा है, जब कि पहलेवाला अवनत हो रहा है। इस प्रकार परिवहन साधनों में परिवर्तन माल के परिचलन काल में , क्रय-विक्रय के अवसरों, आदि में स्थानिक अंतर पैदा करते हैं अथवा पहले से विद्यमान स्थानिक अंतर का वितरण अब और प्रकार का हो जाता है। विभिन्न स्थानों के व्यापारिक और प्रौद्योगिक प्रतिनिधियों की रेलमार्गों के प्रबंधकों से खींच-तान से यह प्रकट हो जाता है कि पूंजी आवर्त के लिए इस परि- स्थिति का महत्व क्या है। ( उदाहरण के लिए, पूर्वोद्धृत रेलवे समिति का सरकारी प्रतिवेदन देखिये । ) उत्पादन की वे सभी शाखाएं, जो अपने उत्पाद की प्रकृति के कारण मुख्यतः स्थानीय उपभोग पर निर्भर करती हैं, जैसे मद्यनिर्माणशालाएं, इसी कारण सबसे ज्यादा आबादी के मुख्य केंद्रों में ही विकसित होती हैं। यहां पूंजी का ज्यादा तेज़ आवर्त अंशतः इस तथ्य की क्षतिपूर्ति कर देता है कि उत्पादन की कुछ परिस्थितियां, भवन निर्माण के लिए प्लाट , आदि, अधिक महंगी होती हैं। एक ओर जहां परिवहन और संचार साधनों में पूंजीवादी उत्पादन की प्रगति से जनित सुधार से पण्य वस्तुओं की निश्चित राशियों का परिचलन काल घट जाता है, वहां दूसरी ओर यही उन्नति और परिवहन तथा संचार साधनों से उत्पन्न अवसर और भी दूरस्य बाजारों के लिए, संक्षेप में विश्व वाज़ार के लिए काम करने को अनिवार्य बना देते हैं। दूर की जगहों के लिए मार्गस्थ मालों की राशि में असीम वृद्धि होती है और इसलिए उसके साथ ही, सापेक्ष और निरपेक्ष रूप में सामाजिक पूंजी के उस भाग में भी वृद्धि होती है, जो लगातार लंदी मीयादों तक परिचलन काल के दौरान माल पूंजी मंजिल में रहता है। इसके साथ ही सामाजिक संपदा के उस भाग में भी वृद्धि होती है, जो उत्पादन का प्रत्यक्ष साधन बनने के .

  • इस पुस्तक का पृष्ठ १४१ देखें। -सं०