पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२२८

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परिचलन काल २२७ 3 11 वदले संचार और परिवहन साधनों में और उनके प्रचालन के लिए आवश्यक स्थायी और प्रचल पूंजी में लगाया जाता है। उत्पादन स्थान से बाजार तक पण्य वस्तुओं के मार्ग की मात्र सापेक्ष दीर्घता भी केवल परिचलन काल के पहले भाग , विक्रय काल में ही नहीं, बल्कि उसके दूसरे भाग, द्रव्य के उत्पादक पूंजी के तत्वों में पुनःरूपांतरण, क्रय काल में भी अंतर उत्पन्न करती है। मान लीजिये , माल भारत भेजा जा रहा है। इसमें कह लीजिये, चार महीने लगेंगे। हम मान लेते हैं कि विक्रय काल शून्य के वरावर है, अर्थात माल आर्डर पर बनाया जाता है, और उसकी पहुंच पर निर्माता के अभिकर्ता को भुगतान किया जाता है। धन के प्रत्यावर्तन में ( उसका रूप चाहे जो हो ) चार महीने और लगते हैं। इस तरह कुल मिलाकर आठ महीने बाद ही पूंजी उत्पादक पूंजी के रूप में पुनः कार्यशील हो सकेगी और उसी क्रिया को फिर से शुरू कर सकेगी। यावर्त में इस प्रकार उत्पन्न अंतर उधार की विभिन्न शर्तों का एक भौतिक आधार होता है , जैसे सामान्यतः समुद्र पार विदेश व्यापार - यथा वेनिस और जिनोया में - सही अर्थों में उधार पद्धति का एक स्रोत है। “१८४७ के संकट ने तत्कालीन साहूकार और व्यापारी समुदाय के लिए भारत और चीन की मीयाद" ( वहां और यूरोप के बीच हुंडियों के चालू रहने की मीयाद) को दर्शने दस महीने से घटाकर छः महीने कर देना संभव कर दिया था और रफ़्तार में सारी तेजी और तार व्यवस्था की स्थापना के साथ गुज़रे वीस वर्षों ने ... मीयाद को दर्शने चार महीने पर लाने के एक शुरूआती क़दम के तौर पर दर्शने छः मास की भुगतान तिथि को. और घटाकर चार महीने कर देना आवश्यक बना दिया है। कलकत्ते से केप होते हुए लंदन तक जहाज का सफ़र औसतन नब्बे दिन के अंदर-अंदर का होता है। दर्शने चार महीने की मीयाद लगभग १५० दिन चालू रहने के बरावर होगी। दर्शने छः महीने की वर्तमान मीयाद लगभग २१० दिन चालू रहने के वरावर है" (London Economist, १६ जून, १८६६)। दूसरी ओर : “ब्राज़ील की मीयाद दर्शने दो और तीन महीने की ही है, एंटवर्प से" ( लंदन के लिए ) "हुंडियों की मीयाद तीन महीने की होती है और मैंचेस्टर तथा ब्रेडफ़ोर्ड की हुंडियां भी लंदन में तीन महीने और ज्यादा लंबी मीयादों के लिए होती हैं। मौन समझौते के अनुसार व्यापारी को अपने माल की विक्री की आय को, उसके लिए बनी हुंडियों की नियत तिथि के पहले तो बेशक नहीं, लेकिन वाजिब मीयाद के भीतर वसूल करने का ख़ासा मौक़ा दिया जाता है। इस दृष्टिकोण से भारतीय इंडियों की मौजूदा मीयाद को बहुत ज्यादा नहीं कहा जा सकता। लंदन में ज़्यादातर तीन महीने की तुरंत अदायगी की मीयाद पर वेचे जाने- वाले भारतीय माल की विक्री में लगनेवाले समय को निकाल देने पर पांच महीने से कम में वसूली नहीं की जा सकती, जव कि भारत में उसके ख़रीदे जाने से लेकर अंग्रेजी गोदामों में पहुंचने तक (औसतन ) पांच महीने का और समय पहले ही लग चुका होगा। इस तरह यह दस महीने की मीयाद है , जव कि माल के लिए बनी हुंडी की मीयाद सात महीने से ज्यादा नहीं होती" (वही, ३० जून, १८६६)। २ जुलाई, १८६६ को मुख्यतः भारत और चीन से कारबार करनेवाले लंदन के पांच बड़े बैंकों और पेरिस की Comptoir d'Escompte ने यह सूचना दी कि १ जनवरी, १८६७ से पूर्व में उनकी शाखाएं और एजेंसियां वही हुंडियां वेगी और खरीदेंगी, जिनकी मीयाद दर्शने चार महीने से ज्यादा की नहीं होगी" (वही, ७ जुलाई, १८६६)। किंतु मीयाद में यह कमी वेकार सावित हुई और उसे रद्द करना पड़ा। ( तब से स्वेज़ नहर ने सारी परिस्थिति में आमूल परिवर्तन कर दिया है।) 150