पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२३८

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पेशगी पूंजी के परिमाण पर आवर्त काल का प्रभाव २३७ किया जा सकता है। वह किस सीमा तक यह रूप ग्रहण करती है अथवा यह परिवर्तन आवश्यक होने तक वह अतिरिक्त द्रव्य पूंजी के रूप में बनी रहती है, यह अंशतः व्यवसाय की निश्चित शाखाओं में उत्पादन की विशेष परिस्थितियों पर, अंशतः स्थानीय परिस्थितियों पर, अंशतः कच्चे माल की कीमतों के उतार-चढ़ाव, इत्यादि पर निर्भर करेगा। यदि सामाजिक पूंजी पर उसकी समग्रता में विचार किया जाये, तो इस अतिरिक्त पूंजी का न्यूनाधिक ख़ासा भाग काफ़ी समय सदा द्रव्य पूंजी की अवस्था में रहेगा। किंतु जहां तक द्वितीय पूंजी के उस भाग का संबंध है, जो मजदूरी के लिए पेशगी दिया जायेगा, वह सदा केवल छोटी-छोटी कार्य अवधियों के समाप्त होने और उनका भुगतान किये जाने के साथ-साथ श्रम शक्ति में क्रमशः ही परिवर्तित होता है। इसलिए द्वितीय पूंजी का यह भाग द्रव्य पूंजी के रूप में समूची कार्य अवधि के दौरान तब तक सुलभ रहता है कि श्रम शक्ति में अपने परिवर्तन द्वारा वह उत्पादक पूंजी के कार्य में भाग न लेने लगे। फलतः प्रथम पूंजी के परिचलन काल को उत्पादन काल में रूपांतरित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त पूंजी का परिग्रहण केवल पेशगी पूंजी के परिमाण में और समुच्चित पूंजी के अनिवार्यतः पेशगी दिये जाने के परिमाण में ही वृद्धि नहीं करता, वल्कि पेशगी पूंजी का जो भाग द्रव्य पूर्ति के रूप में होता है, अतः जो द्रव्य पूंजी की अवस्था में होता है और जिसका रूप संभाव्य द्रव्य पूंजी का होता है, उसमें भी, और विशिष्टतः उसमें ही, वृद्धि करता है। यही बात तव भी होती है- जहां तक वह उत्पादक पूर्ति के रूप में और द्रव्य पूर्ति के रूप में भी पेशगी से संबंध रखती है, - जव परिचलन काल के कारण आवश्यक हुआ पूंजी का दो भागों- अर्थात पहली कार्य अवधि के लिए पूंजी और परिचलन काल के लिए प्रतिस्थापन पूंजी - में विभाजन पूंजी व्यय में वृद्धि के कारण नहीं, वरन उत्पादन के पैमाने के घटने के कारण होता है। यहां द्रव्य रूप में बंधी पूंजी की राशि उत्पादन के पैमाने के प्रसंग में और भी ज्यादा बढ़ती है। पूंजी के इस मूलतः उत्पादक पूंजी और अतिरिक्त पूंजी में पृथक्करण से सामान्यतः जो हासिल किया जाता है, वह है कार्य अवधियों का निरंतर अनुक्रम , उत्पादक पूंजी की हैसियत से पेशगी पूंजी के समान भाग का सतत कार्य। अव हम दूसरे उदाहरण पर नजर डालेंगे। उत्पादन प्रक्रिया में निरंतर नियोजित पूंजी ५०० पाउंड है। चूंकि कार्य अवधि पांच हफ्ते है, इसलिए पचास हफ्ते के दौरान (जिन्हें वर्ष के वरावर माना गया है ) वह दस वार काम करती है। इसलिए वेशी मूल्य के अलावा उसका उत्पाद ५०० पाउंड का १० गुना, यानी ५,००० पाउंड हुआ। उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष और अविच्छिन्न काम करनेवाली पूंजी-५०० पाउंड पूंजी मूल्य - के दृष्टिकोण से परिचलन काल शून्य बना दिया गया लगता है। आवर्त काल कार्य अवधि से एकरूप हो जाता है और परिचलन काल को शून्य के वरावर मान लिया जाता है। किंतु यदि ५०० पाउंड पूंजी की उत्पादक सक्रियता में पांच हफ्ते के परिचलन काल द्वारा नियमित व्यवधान डाला जाये, जिससे कि वह दस हफ्ते की समूची आवर्त अवधि ख़त्म होने पर ही फिर उत्पादन योग्य हो सके, तो साल के पचास हफ्तों में हर दस सप्ताह के पांच यावर्त होंगे। इनमें पांच हफ़्ते की पांच उत्पादन अवधियां होंगी अयवा ५०० पाउंड के पांच गुना, यानी २,५०० पाउंड के कुल उत्पाद और पांच हफ्ते की पांच परिचलन अवधियों अथवा उसी प्रकार पच्चीस हफ्तों के कुल परिचलन काल के साथ कुल पच्चीस उत्पादक हफ्ते होंगे।