पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२५२

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पेशगी पूंजी के परिमाण पर आवर्त काल का प्रभाव २५१ - पास उत्पादन के सामान्य विकास के साथ बढ़ता जाता है। ख (२) में जिस प्रसंग का उल्लेख है, उसमें ऐसा इसलिए होता है कि कुल पेशगी पूंजी में वृद्धि होती है। ख (१) में ऐसा इसलिए होता है कि पूंजीवादी उत्पादन के विकास के साथ परिचलन अवधि और बड़ी होती जाती है; अत: जिन प्रसंगों में कार्य अवधि परिचलन अवधि से कम होती है, वहां आवर्त अवधि भी बढ़ती है तथा दोनों अवधियों के बीच कोई नियमित अनुपात नहीं रह जाता। उदाहरण के लिए, पहले प्रसंग में हमें प्रति सप्ताह १०० पाउंड लगाने पड़े थे। इस कारण ६ हफ्ते की कार्य अवधि के लिए ६०० पाउंड की और ३ हफ़्ते की परिचलन अवधि के लिए ३०० पाउंड की - कुल मिलाकर ६०० पाउंड की ज़रूरत हुई। इस स्थिति में ३०० पाउंड लगातार मुक्त होते हैं। दूसरी ओर, यदि प्रति सप्ताह ३०० पाउंड लगाये जायें, तो हमारे अवधि के लिए १,८०० पाउंड और परिचलन अवधि के लिए ६०० पाउंड होंगे। अतः ३०० पाउंड के बदले ६०० पाउंड नियतकालिक रूप से मुक्त होते हैं। घ) कुल पूंजी , मसलन ६०० पाउंड , ऊपर की तरह दो हिस्सों में बांटनी होगी, ६०० पाउंड कार्य अवधि के लिए और ३०० पाउंड परिचलन अवधि के लिए। जो भाग दरअसल श्रम प्रक्रिया में लगाया जाता है, वह इस प्रकार एक तिहाई - ६०० से ६०० पाउंड - घट जाता है। फलतः उत्पादन का पैमाना एक तिहाई घट जाता है। दूसरी ओर , ३०० पाउंड केवल कार्य अवधि को अविच्छिन्न बनाने के लिए कार्य करते हैं, ताकि श्रम प्रक्रिया में वर्ष के प्रति सप्ताह १०० पाउंड लगाये जा सकें। निरपेक्षतः ६०० पाउंड ८ के ६ गुना, या ४८ सप्ताह काम करें ( उत्पाद ४,८०० पाउंड ), चाहे ६०० पाउंड की कुल पूंजी श्रम प्रक्रिया में ६ हफ्ते के भीतर ख़र्च कर दी जाये और फिर ३ हफ्ते की परिचलन अवधि में निष्क्रिय पड़ी रहे , वात एक ही है। वादवाले मामले में ४८ हफ़्तों के दौरान वह ६ का ५१/३ गुना, यानी ३२ हफ़्ते काम करेगी ( उत्पाद ६०० का ५१/३ गुना अथवा ४,८०० पाउंड ) और १६ हफ़्ते निष्क्रिय रहेगी। लेकिन निष्क्रिय १६ हफ्तों में स्थायी पूंजी की ज्यादा बरबादी के अलावा और श्रम की मूल्य वृद्धि के अलावा, जिसे मारे साल पैसा देना होता है, चाहे उसका साल के कुछ ही भाग में इस्तेमाल किया जाये - उत्पादन प्रक्रिया का इस तरह का नियमित अंतरायण आधुनिक बड़े उद्योग के संचालन से विल्कुल असंगत है। यह निरंतरता स्वयं श्रम की एक उत्पादक शक्ति है। अव यदि हम मुक्त पूंजी, बल्कि कहिये कि निलंवित पूंजी को ज़रा ध्यान से देखें , तो पता चलता है कि उसके खासे भाग को निरंतर द्रव्य पूंजी के रूप में रहना होता है। हम अपना उदाहरण ही लेते हैं : कार्य अवधि ६ हफ्ते , परिचलन अवधि ३ हप्ते , प्रति सप्ताह निवेश - १०० पाउंड । दूसरी कार्य अवधि के मध्य में 8 वें हफ्ते के अंत में ६०० पाउंड लौट आते हैं और वाक़ी कार्य अवधि के लिए उनमें से केवल ३०० पाउंड लगाने होते हैं। अतः दूसरी कार्य अवधि के अंत में ३०० पाउंड मुक्त हो जाते हैं। ये ३०० पाउंड किस अवस्था में हैं ? हम मान लेंगे कि एक तिहाई मजदूरी के लिए और दो तिहाई कच्चे माल और सहायक सामग्री के लिए निवेशित किया गया है। इसलिए वापस आये हुए ६०० पाउंड में से २०० पाउंड द्रव्य रूप में मजदूरी के लिए और ४०० पाउंड उत्पादक पूर्ति के रूप में स्थिर प्रचल उत्पादक पूंजी के तत्वों के रूप में विद्यमान रहते हैं। लेकिन चूंकि इस उत्पादक पूर्ति का आधा भाग ही दुसरी कार्य अवधि के उत्तरार्ध के लिए दरकार होता है, अत: उसका दूसरा भाग ३ हफ्ते अतिरिक्त उत्पादक पूर्ति के रूप में, अर्थात एक कार्य अवधि की आवश्यकताओं से अधिक पूर्ति - -