पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पेणगी पूंजी के परिमाण पर आवर्त काल का प्रभाव २५३ . . , 1 लिए पेणगी पूंजी अंश की हैसियत से आगे कोई और कार्य नहीं करता। जहां उत्पादन का पैमाना और अन्य परिस्थितियां , जैसे कीमतें, वगैरह यथावत बनी रहती हैं, पेशगी पूंजी की मूल्य राशि ६०० पाउंड से घटकर ८०० पाउंड हो जाती है। मूलतः 'पेशगी दिये मूल्य का शेष भाग, १०० पाउंड , द्रव्य पुंजी के रूप में अलग हो जाता है। इस रूप में वह मुद्रा बाज़ार में प्रवेश करता है और वहां कार्यशील पूंजियों का अतिरिक्त भाग वन जाता है। इससे यह पता चलता है कि द्रव्य पूंजी का वाहुल्य किस तरह उत्पन्न हो सकता है- केवल इस अर्थ में नहीं कि द्रव्य पूंजी की पूर्ति मांग की अपेक्षा अधिक है; यह सदा केवल मापेक्ष बाहुल्य होता है , जो मसलन किसी संकट की समाप्ति पर नये चक्र का आरंभ करनेवाली अवसादक अवधि" के दौरान प्राता है ; वरन इस अर्थ में भी कि पेशगी पूंजी मूल्य का एक निश्चित भाग सामाजिक पुनरुत्पादन की समूची प्रक्रिया के प्रचालन के लिए फ़ालतू हो जाता है, जिसमें परिचलन प्रक्रिया भी शामिल होती है, और इसलिए वह द्रव्य पूंजी के रूप में अलग हो जाता है - यह आवर्त अवधि के संकुचन मात्र से , जब कि उत्पादन का पैमाना और कीमतें वैसी ही बनी रहती हैं , जनित बाहुल्य है। परिचलन में द्रव्य राशि ने - चाहे वड़ी, चाहे छोटी- उस पर जरा भी प्रभाव नहीं डाला है। इसके विपरीत मान लीजिये कि परिचलन अवधि बढ़ जाती है, यथा ३ से ५ हफ्ते हो जाती है। उस हालत में अगले आवर्त में ही पेशगी पूंजी का पश्चप्रवाह २ हफ़्ते अधिक विलंब से होगा। इस कार्य अवधि की उत्पादन प्रक्रिया का आखिरी हिस्सा स्वयं पेशगी पूंजी के प्रावर्त की क्रियाविधि द्वारा और आगे चालू न रखा जा सकेगा। यदि यह हालत कुछ देर तक बनी रहे , तो वैसे ही उत्पादन प्रक्रिया में संकुचन हो सकता है , उसका परिमाण घट सकता है, जैसे पूर्व प्रसंग में विस्तरण हुआ था। लेकिन प्रक्रिया को उसी पैमाने पर चालू रखने के लिए परिचलन अवधि के समस्त प्रवर्धन काल में पेशगी पूंजी में २/६ की , अथवा २०० पाउंड की वृद्धि करना आवश्यक होगा। यह अतिरिक्त पूंजी केवल मुद्रा वाज़ार में प्राप्त की जा सकती है। यदि परिचलन अवधि का प्रवर्धन व्यवसाय की एक अथवा अनेक बड़ी शाखाओं में हो, तो वह मुद्रा बाज़ार पर दवाव डाल सकता है, वशर्ते कि इस प्रभाव को किसी प्रतिप्रभाव द्वारा ध्वस्त न कर दिया जाये। पूर्वोक्त वाहुल्य की तरह इस मामले में भी यह प्रकट और स्पष्ट है कि इस दवाव का पण्य वस्तुओं के भावों की गति से अथवा विद्यमान परिचलन माध्यम की राशि की गति से किसी भी तरह का संबंध नहीं था। [प्रकाशन के लिए इस अध्याय की तैयारी में काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बीजगणित में मार्क्स का पूरा दखल था, किंतु आंकड़ों, खास तौर से व्यापार गणित में , वह माहिर नहीं थे, यद्यपि उनकी कापियों का काफ़ी मोटा बंडल मौजूद है, जिनमें भांति-भांति के वाणिज्यिक अभिकलन के बहुत से उदाहरण हैं, जिन्हें उन्होंने खुद हल किया था। किंतु परिकलन के विभिन्न तरीक़ों का ज्ञान और दैनिक व्यावहारिक व्यापार गणित का अभ्यास , एक ही चीज़ नहीं है। फलतः पावतों के अभिकलन में मार्क्स इतना उलझ गये कि उनमें अधूरे छोड़े स्थानों के अलावा कई चीजें ग़लत और परस्पर विरोधी भी हैं। ऊपर जो सारणियां उद्धृत की गई हैं, उनमें मैंने सरलतम गणित के विचार से सही आंकड़ों को ही रहने दिया है। ऐसा करने का मेरे लिए मुख्यतः कारण यह था : इस श्रमसाध्य परिकलन के अनिश्चित परिणामों के फलस्वरूप मार्क्स ने एक परिस्थिति को अनावश्यक महत्व दिया है, जो मेरी दृष्टि में वस्तुतः वहुत ही कम महत्व की है। मेरा