पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२६०

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पेशगी पूंजी के परिमाण पर आवर्त काल का प्रभाव २५६ . 1 यदि इन १०० पाउंड में उस नियतकालिक अतिरिक्त द्रव्य पूंजी के, जिससे हप्तावार मजदूरी की अदायगी होती है, २० पाउंड और वे ८० पाउंड समाहित हों, जो हप्ते भर की नियतकालिक अतिरिक्त उत्पादक पूर्ति के रूप में विद्यमान थे, तो जहां तक इन ८० पाउंड का संबंध है, कारखानेदार के हाथ में न्यूनित अतिरिक्त उत्पादक पूर्ति कपास विक्रेता के हाथों में वर्धित माल पूर्ति के अनुरूप है। यह कपास उसके गोदाम में माल की हैसियत से जितना ही अधिक समय तक पड़ी रहेगी, उतना ही वह कारखानेदार के गोदाम में उत्पादक पूर्ति की हैसियत से कम समय तक रहेगी। अब तक हम यह मानते थे कि व्यवसाय क में परिचलन काल का संकुचन इसलिए होता है कि क अपना माल ज़्यादा तेजी से बेच देता है, उनका पैसा ज्यादा जल्दी पा लेता है या उधार के मामले में उसकी अदायगी कम अवधि के भीतर हो जाती है। इसलिए, संकुचन का कारण मालों की विक्री जल्दी होना, माल पूंजी के द्रव्य रूप में रूपांतरण, मा' -द्र, परिचलन प्रक्रिया के पहले दौर का जल्दी पूरा होना माना गया था। लेकिन उसका मूल दूसरे दौर , द्र मा, में और इसलिए एक समकालिक परिवर्तन में भी हो सकता है, यह परिवर्तन चाहे कार्य अवधि में हो , चाहे ख, ग, आदि उन पूंजियों के परिचलन में हो, जो पूंजीपति क को उसकी प्रचल पूंजी के उत्पादक तत्व प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, यदि परिवहन के पुराने तरीकों से कपास , कोयला , वगैरह को अपने उत्पादनस्थल या भंडारस्थल से पूंजीपति क के उत्पादनस्थल तक ले जाने में ३ हफ्ते लगते हैं , तो क की उत्पादक पूर्ति कम से कम ३ हप्ते चलनी चाहिए, जव तक नई पूर्ति न आ जाये। जब तक कपास और कोयला परिवहन में हैं, तब तक वे उत्पादन साधनों का काम नहीं कर सकते। तव वे परिवहन उद्योग के लिए और उसमें नियोजित पूंजी के लिए श्रम की वस्तु ही होते हैं ; कोयले के उत्पादक या कपास विक्रेता के लिए वे परिचलन प्रक्रिया में माल पूंजी भी हैं। मान लीजिये , परिवहन में सुधार परिवहन को घटाकर २ हफ्ते कर देते हैं। तव उत्पादक पूर्ति को त्रिसाप्ताहिक पूर्ति से पाक्षिक पूर्ति में बदला जा सकता है। इससे इस प्रयोजन के लिए अलग रखी गई ८० पाउंड की अतिरिक्त पेशगी पूंजी मुक्त हो जायेगी और इसी प्रकार मजदूरी के लिए अलग किये २० पाउंड मुक्त हो जायेंगे, क्योंकि ६०० पाउंड की श्रावर्तित पूंजी एक हप्ता पहले वापस आ जायेगी। दूसरी ओर, उदाहरण के लिए, अगर कच्चे माल की पूर्ति करनेवाली पूंजी की कार्य अवधि घटा दी जाये ( जिसकी मिसालें पिछले अध्यायों में दी जा चुकी हैं), जिससे कि कच्चे माल की पूर्ति का कम समय में नवीकरण करने की संभावना पैदा हो जाती है, तो उत्पादक पूर्ति घट सकती है, और उसके नवीकरण की अवधियों के बीच का अंतराल कम हो सकता है। इसके विपरीत , यदि परिचलन काल और इसलिए आवर्त अवधि को भी बढ़ा दिया जाये , तो अतिरिक्त पूंजी पेशगो देना ज़रूरी होगा। यदि पूंजीपति के पास अतिरिक्त पूंजी है, तो वह उसी की जेब से आयेगी। किंतु तब वह किसी न किसी रूप में मुद्रा वाजार में उपलब्ध पूंजी के एक भाग की तरह निवेशित हो जायेगी। उपलभ्य बनाने के लिए उसे उसके पुराने रूप से छुड़ाना होगा। मसलन, स्टॉक वेचना होगा, जमा धन निकालना होगा, जिससे कि इस प्रसंग में भी मुद्रा बाजार पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। अथवा अतिरिक्त पुंजी उधार लेनी होगी। 2 1