पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२७२

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परिवर्ती पूंजी का आवर्त २७१ भर के लिए परिकलित व्युत्क्रम आवर्त काल से गुणित किया जा सकता है। क के लिए आवर्त काल वर्प का १/१० है ; व्युत्क्रम आवर्त वर्ष का १०/१; अतः १०/१ का ५०० गुना अथवा ५,००० है। ख के प्रसंग में यह १/१ का ५,००० गुना अथवा ५,००० है। हर आवों की व्युत्क्रम संख्या से गुणित प्रावर्तित पूंजी को प्रकट करता है ; क के प्रसंग में १/१० का ५,००० गुना ; ख के प्रसंग में १/१ का ५,००० गुना । श्रम ( सवेतन श्रम और निवेतन श्रम दोनों का योग) की प्रति वर्ष प्रावर्तित दोनों परिवर्ती पूंजियों द्वारा गतिशील की जानेवाली अलग-अलग मात्राएं इस मामले में समान हैं, क्योंकि प्रावर्तित पूंजियां स्वयं ही समान हैं और इसी प्रकार उनके विस्तार की दरें भी समान हैं। प्रति वर्ष प्रावर्तित परिवर्ती पूंजी का परिवर्ती पेशगी पूंजी से अनुपात यह सूचित करता है : १) किसी निश्चित कार्य अवधि में पेशगी दी जानेवाली पूंजी का नियोजित परिवर्ती पूंजी से अनुपात । यदि आवों की संख्या १० हो, जैसे पूंजी क के प्रसंग में है , और वर्ष में ५० हपते माने जायें, तो आवर्त अवधि ५ सप्ताह होगी। इन ५ हफ़्तों के लिए परिवर्ती पूंजी पेशगी देनी होगी और ५ सप्ताह के लिए पेशगी दी जानेवाली पूंजी एक हफ्ते में नियोजित परिवर्ती पूंजी से ५ गुना बड़ी होगी। दूसरे शब्दों में पेशगी पूंजी (इस प्रसंग में ५०० पाउंड ) का पांचवां भाग ही एक हफ्ते के दौरान नियोजित हो सकता है। दूसरी ओर पूंजी ख के मामले में, जहां आवर्तो की संख्या १/१ है, आवर्त काल एक वर्ष , अथवा ५० हपते है। अतः प्रति सप्ताह नियोजित पूंजी से पेशगी पूंजी का अनुपात ५० : १ है। यदि ख के लिए भी वात वैसी ही होती, जैसी क के लिए , तो ख को प्रति सप्ताह १०० पाउंड के वदले १,००० पाउंड निवेशित करने होते । २) इससे यह नतीजा निकलता है कि परिवर्ती पूंजी की उसी मात्रा को और इसलिए - वेशी मूल्य की दर दी हुई होने के कारण - श्रम ( सवेतन और निर्वतन ) की समान मात्रा को गतिशील करने के लिए और इस प्रकार वर्ष में बेशी मूल्य की भी समान मात्रा को पैदा करने के लिए ख ने क के मुक़ाबले १० गुना पूंजी ( ५,००० पाउंड ) का नियोजन किया है। वेशी मूल्य की वास्तविक दर किसी निश्चित कालावधि में नियोजित परिवर्ती पूंजी के उसी अवधि में उत्पादित वेशी मूल्य के साथ अनुपात अथवा इस काल में परिवर्ती पूंजी द्वारा गतिशील किये निर्वतन श्रम की मात्रा के अलावा और कुंछ प्रकट नहीं करती। इसका परिवर्ती पूंजी के उस भाग से कतई कुछ भी संबंध नहीं होता, जो उस समय पेशगी दिया जाता है, जब वह नियोजन में नहीं होता है। अतः इसी प्रकार इसका एक निश्चित कालावधि में पेशगी दिये जाने- वाले पूंजी ग्रंश तथा उसी अवधि में नियोजित दूसरे अंश के वीच अनुपात से भी कोई संबंध नहीं होता, जिसे आवर्त अवधि विभिन्न पूंजियों के लिए आपरिवर्तित और विभेदित करती है। ऊपर जो कुछ कहा गया है, उससे वल्कि यही नतीजा निकलता है कि वेशी मूल्य की वार्पिक दर केवल एक ही मामले में वेशी मूल्य की वास्तविक दर से पूरा मेल खाती है, श्रम के समुपयोजन की मात्रा प्रकट करती है, अर्थात उस प्रसंग में, जहां पेशगी पूंजी का प्रावर्त साल में केवल एक बार होता है और इस प्रकार पेशगी पूंजी साल में आवर्तित पूंजी के वरावर होती है; अत: जब वर्ष में उत्पादित वेशी मूल्य की मात्रा का इस उत्पादन में वर्ष के दौरान