पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२७५

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पूंजी का प्रावत हम पहले ही (Buch I. Kap. IV)* ('मुद्रा का पूंजी में रूपांतरण'), और आगे (Buch I, Kap. XXI)" ('माधारण पुनरुत्पादन' ) में देख चुके हैं कि सामान्यतः पूंजी मूल्य पेगो दिया जाता है , व्यय नहीं किया जाता, क्योंकि अपने परिपथ के विभिन्न दौरों से गुजरने के बाद वह अपने प्रस्थान बिंदु पर लांट पाता है और वेशी मूल्य से समृद्ध होकर लौटता है। यही उसे पंगगी मूल्य होने का स्वरूप प्रदान करता है। उसके प्रत्यान क्षण से प्रत्यावर्तन क्षण तक जो वक़्त बीतता है, वही वह समय है, जिसके लिए उसे पेशगी दिया गया था। पूंजी मृत्य द्वारा संपन्न मारी वृत्तीय गति को यदि उसके पेशगी दिये जाने से प्रत्यावर्तन काल तक मापा जाये, तो यह उसका प्रावतं होगा, और इस प्रावर्त की मीयाद ही प्रावतं अवधि होती है। जब यह अवधि समाप्त हो जाती है और परिपथ पूरा हो जाता है, तब वही पूंजी मूल्य उसी परिपय को फिर से चालू कर सकता है, अतः नये सिरे से स्वप्रसार कर सकता है , वेशी मूल्य का निर्माण कर सकता है। यदि परिवर्ती पूंजी साल में १० वार श्रावर्तित होती है, जैसे कि पूंजी क के प्रसंग में , तो पूंजी की वही पेशगी साल भर में वेशी मूल्य की १० गुना माना पैदा करेगी जो एक प्रावतं अवधि के अनुरूप होती है। पूंजीवादी समाज के दृष्टिकोण से इस पेशगी के स्वरूप की स्पष्ट समझ प्राप्त करना अावश्यक है। पूंजी क , जो सालाना १० वार प्रावर्तित होती है, वर्ष में १० वार पेशगी दी जाती है। हर नई पावर्त अवधि के लिए वह नये सिरे से पेशगी दी जाती है। किंतु साथ ही क वर्ष के दौरान ५०० पाउंड के इसी पूंजी मूल्य से अधिक कुछ पेशगी नहीं देती और वस्तुतः हमारे द्वारा विवेचित उत्पादन प्रक्रिया के लिए इन ५०० पाउंड से अधिक कभी कुछ नहीं लगाती। जैसे ही ये ५०० पाउंड एक परिपथ पूरा करते हैं, क उन्हें उसी परिपथ में नये सिरे से लगा देती है ; पूंजी अपनी प्रकृति से ही अपना पूंजी का स्वरूप केवल इसलिए वनाये रखती है कि वह प्रानुक्रमिक उत्पादन प्रक्रियानों में सदा पूंजी की हैसियत से कार्य करती है। इसके अलावा वह ५ हफ्ते से ज्यादा के लिए कभी पेशगी नहीं दी जाती। यदि आवर्त अधिक चले , तो वह अपर्याप्त सिद्ध होती है। यदि आवर्त घट जाये, तो उसका एक भाग फालतू हो जाता है। ५०० पाउंड को १० पूंजियां पेशगी नहीं दी जातीं, वरन ५०० पाउंड की एक पूंजी क्रमिक अंतरालों पर १० बार पेशगी दी जाती है। अतः वेशी मूल्य की वार्पिक दर ५०० पाउंड की पूंजी की १० पेशगियों, अथवा ५,००० पाउंड के लिए नहीं, वरन ५०० पाउंड की पूंजी की एक पेशगी के लिए परिकलित की जाती है। यह वैसी ही बात है, जैसे १ शिलिंग १० वार परिचालित होता है, फिर भी वह परिचलन में १ शिलिंग से ज्यादा को कभी प्रकट नहीं करता है, यद्यपि वह कार्य १० शिलिंग का करता है। लेकिन प्रति हस्तांतरण के बाद वह जिस जेब में पहुंचता है, उसमें उसका वही पहले जैना १ शिलिंग का मूल्य बना रहता है। उसी प्रकार पूंजी क प्रत्येक ऋमिक प्रत्यावर्तन पर और उसी तरह वर्ष के अंत में अपनी वापसी पर यह सूचित करती है कि उसके स्वामी ने हमेशा ५०० पाउंड के उसी पूंजी मूल्य में काम किया है। अतः उसके पास प्रति वार केवल ५०० पाउंड ही लौटकर आते हैं। इसलिए हिंदी संस्करण : भाग २।-सं० हिंदी संस्करण : अध्याय २३।-सं० 50