पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूंजी का प्रावत 1 गई पूंजी उपमुक्त गरी श्रम गति में रूपांतरित हो गये हैं। उसके द्वारा श्रम शक्ति श्रम प्रक्रिया में उत्पादक दंग ने मामुक्त की जाती है। ५ हत्ते के अंत में १,००० पाउंड मूल्य के उत्पाद का सृजन हो जाता है। इसका प्राधा - ५०० पाउंड-श्रम शक्ति की अदायगी पर व्ययित परिवर्ती पूंजी का पुनन्दादिन मूल्य है। बाक़ी प्राधा हिता- ५०० पाउंड - नवोत्पादित वेशी मूल्य है। किंतु ५ हत्ते को श्रम शक्ति भी विनिमय के जरिये, जिसके लिए एक पूंजी अंश परिवर्ती पूंजी में परिवर्तित किया गया था, इसी प्रकार व्ययित होती, उपमुक्त होती है, यद्यपि उत्पादक ढंग में। जो श्रम कल मक्रिय था, वह वही श्रम नहीं है, जो आज सक्रिय है। वह और उसने जिस वेगी मूल्य का सृजन किया है, उसका मूल्य अब ऐसी चीज़ के मूल्य के रूप में, जो श्रम शक्ति ने भिन्न है. यानी उत्पाद के मूल्य के रूप में विद्यमान है। किंतु उत्पाद को द्रव्य में परिवर्तित करके उसके मूल्य के उस भाग का , जो पेशगी परिवर्ती पूंजी के मूल्य के वरावर है , श्रम शक्ति में फिर विनिमय किया जा सकता है, और इस प्रकार वह पुनःपरिवर्ती पूंजी की हैसियत से कार्य कर सकता है। यह बात महत्वहीन है कि न केवल पुनरुत्पादित पूंजी मूल्य द्वारा, वरन द्रव्य रूप में पुनःपरिवर्तित पूंजी मूल्य द्वारा भी उन्हीं मजदूरों, अर्थात श्रम शक्ति के उन्हीं वाहकों को काम दिया जाता है। पूंजीपति के लिए यह संभव है कि वह दूसरी पावर्त अवधि के लिए अन्य मजदूरों को भाड़े पर रख ले। अतः यथार्य में ५०० पाउंड की नहीं, वरन ५,००० पाउंड की पूंजी ५-५ सप्ताह की १० पावतं अवधियों में क्रमशः मजदूरी पर व्यय होती है और इस मजदूरी को मज़दूर फिर निर्वाह साधन मरीदने में खर्च करेंगे। ५,००० पाउंड की इस तरह पेशगी हो जाती है। उसकी हस्ती मिट जाती है। दूसरी ओर उत्पादन प्रक्रिया में ५०० पाउंड की नहीं, ५,००० पाउंड की श्रम शक्ति को क्रमशः समाविष्ट किया जाता है और वह खुद अपने ५,००० पाउंड के मूल्य का पुनरुत्पादन ही नहीं करती, वरन उसके अलावा ५,००० पाउंड के बेशी मूल्य का उत्पादन भी करती है। दूसरी पावर्त अवधि में पेशगी लगाई जानेवाली ५०० पाउंड परिवर्ती पूंजी ५०० पाउंड की वही सर्वसम पूंजी नहीं है, जो पहली पावर्त अवधि में पेशगी लगाई गई थी। वह खप गई है, मजदूरी पर खर्च कर दी गई है। किंतु उसकी ५०० पाउंड की नई परिवर्ती पूंजी से प्रतिस्थापना हो जाती है, जो पहली प्रावतं अवधि में मालों के रूप में उत्पादित हुई थी और द्रव्य रूप में पुनःपरिवर्तित हो गई थी। अतः ५०० पाउंड की यह नई द्रव्य पूंजी पहली प्रावर्त अवधि में नवोत्पादित मालों की मात्रा का द्रव्य रूप है। पूंजीपति के हाथ में द्रव्य की वहीं नवनम रागि, ५०० पाउंड , फिर या जाती है, अर्थात वेशी मूल्य के अलावा ठीक उतनी ही द्रव्य पूंजी, जितनी उसने मूलत: पेशगी दी थी, - यह तथ्य इस परिस्थिति को छिपा देता है कि वह नवोत्पादित पूंजी से काम कर रहा है। ( जहां तक पूंजी के स्थिर अंगों को प्रतिस्थापित करनेवाले माल पूंजी के मूल्य के अन्य घटकों का प्रश्न है, उनके मूल्य का नवोत्पादन नहीं होता, केवल वह रूप बदल जाता है, जिसमें यह मूल्य विद्यमान होता है।) याइये, अब हम तीसरी पावर्त अवधि को लेते हैं। यहां यह स्पष्ट है कि ५०० पाउंड की पूंजी, जो तीसरी बार पेशगी दी जाती है, पुरानी नहीं, नवोत्पादित पूंजी है, क्योंकि वह मालों की उन मात्रा का द्रव्य रूप है, जिसका उत्पादन पहली आवर्त अवधि में नहीं, दूसरी में हुअा है, अर्थात वह मालों की इस मान्ना के उस भाग का द्रव्य रूप है, जिसका मूल्य पेशगी परिवर्ती पूंजी के मूल्य के बराबर है। पहली प्रावर्त अवधि में उत्पादित पण्य वस्तुओं की माना