परिवर्ती पूंजी का प्रावर्त २७६ --- , - में वेशी मूल्य की वृद्धि भी वही एक सी होती है। लेकिन ख के मामले में हर ५ हफ्ते जहां ५०० पाउंड के मूल्य का प्रतिस्थापन तथा ५०० पाउंड के वेशी मूल्य का उत्पादन तो होता है, यह मूल्य प्रतिस्थानिक नई पूंजी नहीं बनता , क्योंकि वह द्रव्य रूप में नहीं होता है। क के मामले में पुराना पूंजी मूल्य नये पूंजी मूल्य द्वारा प्रतिस्थापित ही नहीं होता, वरन अपने द्रव्य रूप में पुनःप्रतिस्थापित भी हो जाता है ; अतः अपना कार्य करने में क्षम नई पूंजी की हैसियत से प्रतिस्थापित होता है। जहां तक स्वयं वेशी मूल्य के उत्पादन का सवाल है, मूल्य प्रतिस्थानिक का देरसवेर द्रव्य में , और इस प्रकार उस रूप में, जिसमें परिवर्ती पूंजी पेशगी दी जाती है, परिवर्तन प्रत्यक्षतः महत्वहीन है। यह उत्पादन नियोजित परिवर्ती पूंजी के परिमाण पर तथा श्रम के ममुपयोजन की मात्रा पर निर्भर करता है। किंतु वह परिस्थिति साल भर में श्रम शक्ति की एक निश्चित प्रमात्रा को गतिशील करने के लिए पेशगी दी जानेवाली द्रव्य पूंजी के परिमाण को आपरिवर्तित कर देती है और इसलिए वह वेशी मूल्य की वार्षिक दर को निर्धारित करती है। . ३. सामाजिक दृष्टिकोण से परिवर्ती पूंजी का प्रावर्त याइये , क्षण भर के लिए इस मामले पर समाज के दृष्टिकोण से विचार करें। मान लीजिये , मजदूर की हफ़्तावार मजदूरी १ पाउंड और कार्य दिवस १० घंटे है। क और ख दोनों के मामले साल में १०० मजदूर काम पर लगाये जाते हैं (१०० मजदूरों के लिए हप्तावार १०० पाउंड अथवा ५ हफ्ते के लिए ५०० पाउंड या ५० हफ्ते के लिए ५,००० पाउंड ) और इनमें से हर मजदूर ६ दिन के प्रत्येक सप्ताह में ६० घंटे काम करता है। इस तरह १०० मजदूर ६,००० घंटे प्रति सप्ताह और ५० सप्ताह में ३,००,००० घंटे काम करते हैं। इस श्रम शक्ति को क और ख कब्जे में ले लेती हैं और इसलिए वह समाज द्वारा और किसी चीज़ के लिए ख़र्च नहीं की जा सकती। इस हद तक सामाजिक दृष्टि से क और ख दोनों का मामला एक सा है। फिर क और ख दोनों के मामले में किसी के द्वारा भी नियोजित १०० मजदूरों को साल में ५,००० पाउंड मजदूरी मिलती है ( अथवा कुल मिलाकर २०० मजदूरो को १०,००० पाउंड) और वे समाज से उतनी रकम के निर्वाह साधन निकालते हैं। इसलिए यहां तक क और ख दोनों के मामलों में सामाजिक दृष्टि से वात एक ही है। चूंकि दोनों ही मामलों में मजदूर हफ़्तावार मजदूरी पाते हैं, इसलिए वे समाज से अपने निर्वाह साधन हफ़्तावार निकालते हैं और हर मामले में द्रव्य रूप में साप्ताहिक समतुल्य परिचलन में डालते हैं। लेकिन भेद यहीं से शुरू होता है। पहला। क का मज़दूर जो द्रव्य परिचलन में डालता है, वह उसकी श्रम शक्ति के मूल्य का द्रव्य रूप (वस्तुतः पहले ही किये जा चुके श्रम की अदायगी का माध्यम ) ही नहीं होता , जैसे वह ख के मजदूर के लिए होता है ; व्यवसाय शुरू होने के वाद दूसरी आवर्त अवधि