पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२८५

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पूंजी का प्रावत में भाग्नीय मामान को अनविकी पूर्ति जमा है। और इसके अलावा, विक चुकी और खप नरी पूर्ति के काफ़ी अंग की अदायगी अभी नहीं हुई है। इसलिए मुद्रा वाज़ार में जो संकट जान पड़ता है, वह वास्तव में उत्पादन और पुनरुत्पादन की प्रक्रिया में ही विद्यमान असामान्य परिस्थितियों की अभिव्यंजना ही है। तीसरा। जहां तक स्वयं नियोजित प्रचल पूंजी (स्थिर और परिवर्ती पूंजी ) का संबंध है, कि प्रावतं अवधि की दीर्घता कार्य अवधि से उत्पन्न होती है, इसलिए आवतं अवधि की दीर्घता यह अंतर पैदा करती है : साल के भीतर कई पावर्त होने के मामले में परिवर्ती या स्थिर प्रचल पूंजी एक तत्व की पूर्ति उसके अपने उत्पाद द्वारा हो सकती है, यथा कोयले के उत्पादन , तैयार कपड़ों के व्यवसाय , वगैरह में। अन्य मामलों में ऐसा नहीं हो सकता , में कम उसी वर्ष के भीतर तो बिल्कुल भी नहीं। कम