पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२८६

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२८५ अध्याय १७ बेशी मूल्य का परिचलन हमने अभी देखा कि आवर्त अवधि में अंतर वेशी मूल्य की वार्षिक दर में अंतर पैदा कर देता है, यद्यपि वेशी मूल्य की सालाना पैदा होनेवाली राशि एक जैसी रहती है। किंतु वेशी मूल्य के पूंजीकरण में , संचय में और वर्ष में उत्पादित वेशी मूल्य की मात्रा में भी इसके अलावा अनिवार्यतः और भी अंतर होते हैं, जब कि वेशी मूल्य की दर एक सी बनी रहती है। शुरू में ही हम देखते हैं कि पूंजी क ( पिछले अध्याय के उदाहरण की) की एक चालू आवधिक प्राय होती है, जिससे कि व्यवसाय का समारंभ करनेवाली आवर्त अवधि छोड़कर वह वेशी मूल्य के अपने उत्पादन से साल भीतर ख द अपनी खपत की अदायगी कर देती है और उसे उसकी अपनी ही निधि से पेशगी से पूरा करने की ज़रूरत नहीं रहती। किंतु ख के प्रसंग में ऐसा करना होता है। यद्यपि वह समय के उतने ही अंतरालों में क जितना ही वेशी मूल्य पैदा करती है, फिर भी उसके वेशी मूल्य का सिद्धिकरण नहीं होता, इसलिए उसकी खपत न तो उत्पादक , और न व्यक्तिगत रूप में हो सकती है। जहां तक व्यक्तिगत खपत का सवाल है, वेशी मूल्य पूर्वापेक्षित होता है। इस कार्य के लिए धन पेशगी देना होता है। उत्पादक पूंजी का एक भाग, जिसे वर्गीकृत करना कठिन है, यानी स्थायी पूंजी के अनुरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए आवश्यक अतिरिक्त पूंजी , भी अब उसी प्रकार नई रोशनी में दिखाई देने लगता है। क के मामले में यह पूंजी अंश उत्पादन के प्रारंभ में - पूर्णतः अथवा अधिकांशतः- पेशगी नहीं दिया जाता। उसका उपलब्ध होना या अस्तित्वमान होना भी आवश्यक नहीं है। वह वेशी मूल्य के पूंजी में प्रत्यक्ष रूपांतरण द्वारा , अर्थात पूंजी रूप में उसके प्रत्यक्ष नियोजन द्वारा स्वयं व्यवसाय से निकलता है। वेशी मूल्य का एक भाग , जो नियतकालिक रूप से उत्पन्न ही नहीं होता, वरन जिसका साल के भीतर सिद्धिकरण भी कर लिया जाता है , जीर्णोद्धार , वीरह का ज़रूरी खर्च चुका सकता है। इस प्रकार व्यवसाय को उसके मूल पैमाने पर चलाते रहने के लिए आवश्यक पूंजी का एक भाग कारवार के दौरान स्वयं व्यवसाय द्वारा वेशी मूल्य के पूंजीकरण द्वारा पैदा हो जाता है। पूंजी ख के लिए यह असंभव है। उसके मामले में विचारा- धीन पुंजी अंश को मूलतः पेशगी दी पूंजी का अंश बनना होता है ! दोनों ही मामलों में पूंजीपतियों के बही-खातों में यह अंश पेशगी पूंजी की तरह प्रकट होगा, जो वह सचमुच है,