पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२८९

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पूंजी का प्रावत , - - 1 नीज, निम वितरण के नमर्गिक नियम बल प्रयोग के बिना उन्हें क्रमशः वंचित कर देंगे प्रयया, यदि महकारी यम की नहायता मिली, तो कुछ ही वर्षों के भीतर उन्हें वंचित कर देंगे" (विनियम टॉमनन , An Inquiry into the Principles of the Distribution of rocalth, नंदन , १८५०, पृष्ठ ४५३ । यह पुस्तक मूलतः १८२४ में प्रकाशित हुई थी)। 'एमके बारे में कम ही सोचा जाता है, ज्यादातर लोगों को इसका गुमान भी नहीं होता कि विस्तार अथवा प्रभाव के विचार से समाज के वास्तविक संचय का मावनजाति की उत्पादक शक्तियों ने, एक ही पीड़ी के कुछ ही वर्षों के साधारण उपभोग से भी कितना अल्प अनुपात होता है। कारण स्पष्ट है, किंतु परिणाम अत्यंत भयंकर है। जो धन हर साल खपता है, अपने उपभोग के साथ लुप्त होता जाता है, वह क्षण भर को दिखाई देता है और भोग या उपयोग कर्म का समय छोड़कर मन पर छाप नहीं डालता। किंतु धन का जो भाग उपभोग में धीरे-धीरे प्राता है, जैसे फ़र्नीचर, मशीनें , इमारतें , वह सब वचपन से बुढ़ापे तक मानव प्रयत्न का टिकाऊ स्मारक बनकर अांख के सामने रहता है। राष्ट्रीय संपदा के इस स्थिर, स्थायी अथवा क्रमशः खपनेवाले भाग पर- भूमि पर और जिन सामग्रियों पर काम करना होता है , जिन उपकरणों से काम किया जाता है और काम करते समय जिन मकानों में पाश्रय लिया जाता है- उन पर अपने अधिकार द्वारा इन चीजों के मालिक समाज के सभी वस्तुतः कुशल उत्पादक श्रमिकों की वार्षिक उत्पादक शक्तियों को अपने ही लाभ के लिए लगा लेते हैं, यद्यपि उस श्रम के प्रावों उत्पाद से इन चीजों का अनुपात बहुत ही कम हो सकता है। चूंकि ब्रिटेन और वायरलड की पावादी दो करोड़ है और हर व्यक्ति मर्द, औरत और बच्चे का औसत उपभोग २० पाउंट के लगभग है, इसलिए इस तरह यह ४० करोड़ की संपत्ति बनती है , जो साल भर में खपे श्रम का उत्पाद है। अनुमान लगाया गया है कि इन देशों की संचित पूंजी की कुल राशि १२० करोड़ या समाज के वार्षिक श्रम के ३ गुने से ज्यादा नहीं है ; अथवा यदि बरावर वांटा जाये, तो वह हर व्यक्ति के लिए ६० पाउंड की पूंजी है। यहां हमें अनुपातों से सरोकार है, इन अनुमानित रफ़मों की एकदम मही राशि से नहीं। इस पूंजी स्टॉक का व्याज सारी अावादी को उसकी वर्तमान मुख-सुविधा के साथ साल में लगभग २ महीने रख सकता है और ( अगर ख़रीदार मिल जायें, तो) सारी संचित पूंजी स्वयं उसे ३ साल खाली बैठाये उसका अनुपोपण कर मकती है ! यह समय बीतने पर भोजन , वस्त्र और घर के बिना उसे भूखों मरना या उनका गुलाम बनना होगा, जिन्होंने निष्क्रियता के ३ वर्षों में उसका भरण-पोपण किया था। तीन साल का एक स्वस्थ पीढ़ी के जीवन काल - कह लीजिये ४० वर्प - के लिए जो परिमाण और महत्व होता है, वही अनुपात केवल एक पीढ़ी की उत्पादक शक्तियों का समृद्धतम समुदाय की भी वास्तविक संपदा , संचित पूंजी के लिए होता है ; समान सुरक्षा के लिए विवेकपूर्ण व्यवस्था के अंतर्गत वे क्या पैदा करते , खासकर सहकारी श्रम की सहायता से उसका नहीं, बल्कि उसका , दोषपूर्ण और अवसादकारी साधनों के अंतर्गत निश्चयात्मक रूप में पैदा करते विद्यमान पूंजी की विराट प्रतीत होनेवाली राशि को (बल्कि वार्पिक श्रम के उस उत्पाद पर नियंत्रण को, जिसे वह एकाधिकार में लेने के साधन का काम करती है ) उसकी वर्तमान बलात विभाजित अवस्था में निरंतर बनाये रखने के लिए असुरक्षा की सारी बुराइयों , अपराधों और मुसीबतों के मारे भयानक तंत्र को निरंतर कायम रखने की कोशिश की जाती है। चूंकि पहले अावश्यकताओं की पूर्ति किये बिना कोई संचय संभव नहीं है और चूंकि मानव प्रकृति का प्रचंट प्रवाह भोग की ओर है, इसलिए किसी क्षण विशेप में समाज की वास्तविक संपदा जो वे अमुरक्षा . 1 ,